2008-10-06 16:56:00

तिब्बती संस्कृति का संरक्षण व विकास किया जा रहा है

आवाज़---

अभी आप ने जो आवाज़ सुनी, वह तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा के न्यांगरे लोक कलात्मक मंडल के अभिनेता व अभिनेत्री द्वारा गाए गए तिब्बती ऑपेरा《चोवा सांगमू》का एक अंश है। तिब्बती ऑपेरा तिब्बत स्वायत्त प्रदेश समेत तिब्बती बहुल क्षेत्रों में प्रचलित नाच-गान के जरिए प्रदर्शित एक मिश्रित किस्म वाली कला है ।

इधर के वर्षों में तिब्बत के आर्थिक व सामाजिक प्रगति के चलते तिब्बत में खुलेपन का कदम दिन ब दिन तेज़ विकास हो रहा है । तिब्बती ऑपेरा जैसी प्राचीन सांस्कृतिक वस्तुओं पर एक बार फिर लोगों का ध्यान केंद्रित हुआ है। तिब्बती ऑपेरा की अनेक कहानियां पुनः दर्शकों के सामने आ रही हैं । तिब्बती बंधु ची च्या एक अभिनेत्री हैं, जो 30 वर्ष से तिब्बती ऑपेरा गाने का कार्य कर रही हैं । उन्होंने कहा कि अब वे बहुत जोश से तिब्बती ऑपेरा गाती हैं, पहले ऐसा कभी नहीं हुआ । उन का कहना है:

"बचपन से ही मुझे तिब्बती ऑपेरा गाना पसंद है । लेकिन पहले मैं सिर्फ़ अपने लिए गाती थी । इस कलात्मक मंडल में भागीदारी के बाद हम अच्छे तिब्बती ऑपेराओं का चुनाव कर कार्यक्रम पेश करते हैं । आज चाहे स्थानीय लोग हों या देशी-विदेशी पर्यटक हों, हमारे कार्यक्रम देखने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है । इस तरह हमारा मंडल लगातार व्यापक हो रहा है और आर्थिक आय भी बढ़ रही है । मुझे लगता है कि इस का श्रेय सरकार के प्रशिक्षण व प्रेरणा को जाता है ।"

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थानीय सरकार प्राचीन सांस्कृतिक वस्तुओं की खोज, संकलन और विकास में संलग्न है । तिब्बती बंधु चीच्या जैसे कलाकार अपनी पसंदीदा परम्परागत कला में कार्यरत हैं, उन्हें स्थानीय सरकार का संरक्षण भी मिला हुआ है ।

आवाज़----

अब आप सुन रहे हैं तिब्बती कथा वाचक द्वारा गाया गया《राजा केसर》की प्रस्तुति का एक अंशः

85 वर्ष के तिब्बती बूढ़े सांगचू तिब्बती महाकाव्य《राजा केसर》के गायन वाचक हैं ।《राजा केसर》तिब्बती जाति का एक महत्वपूर्ण महाकाव्य है , जिस में पौराणिक कथा, लोक काव्य तथा लोककथा आदि के विषय शामिल हैं । इस महाकाव्य में प्राचीन तिब्बत में दसियों स्थानीय राज्यों के बीच जटिल संबंधों व घमासान लड़ाइयों का वर्णन किया गया है, जिस से प्राचीन तिब्बती जाति का जीवन उजागर हुआ है । इस महाकाव्य से तिब्बती जाति के शांतिपूर्ण व सुखमय जीवन की खोज करने की अभिलाषा तथा तिब्बती और हान जाति व अन्य विभिन्न जातियों के बीच घनिष्ठ संपर्क भी जाहिर हुआ है ।

तिब्बती जाति के श्रेष्ठ ऐतिहासिक महाकाव्य《राजा केसर》का विकास वा संरक्षण करने के लिए तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की सरकार ने बड़ी कोशिश की है। तिब्बत विश्वविद्यालय, तिब्बत सामाजिक विज्ञान अकादमी आदि अकादमिक संस्थाओं ने भी तिब्बती कथा वाचक सांगचू को आमंत्रित किया है । उन्होंने भाषण दिए हैं और राजा केसर की कहानियां गा कर सुनाईं हैं । इस के साथ ही तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के संबंधित विभागों ने सांगचू जैसे कलाकारों के लिए रिहायशी मकान का बंदोबस्त किया और उन्हें जीवन भत्ता प्रदान किया है ।

वर्ष 1980 से ही तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के संबंधित विभाग हर साल योजनानुसार महाकाव्य《राजा केसर》से जुड़ी एक या दो कहानियां प्रकाशित करते हैं, अब तक ऐसी कुल 30 कहानियां प्रकाशित की जा चुकी हैं ।《राजा केसर》एक ऐसा महाकाव्य है, जिस का विकास कथा वाचक के गायन से किया जाता है, वर्तमान में अधिकांश कथा वाचकों की उम्र ज्यादा है और वे बूढ़े हो गए हैं, यहां तक कि कुछ लोगों का देहांत भी हो गया है। इस तरह《राजा केसर》के बचाव, संकलन कार्य के सामने भारी कठिनाइयां व दबाव मौजूद हैं । तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के सामाजिक विज्ञान अकादमी के अधीन जाति अनुसंधान केंद्र के विशेषज्ञ श्री रन जंङ ने इस की चर्चा में कहा: "वर्तमान में हम ने कथा वाचक सांगचू आदि कलाकारों द्वारा सुनाई गई कहानियों को रिकॉर्ड किया है और इन्हें प्रकाशित किया है। यह वर्तमान में हमारा फौरी कार्य है । योजनानुसार पांच से आठ वर्षों के भीतर हम कथा वाचक सांगचू द्वारा सुनाई गईं साठ से ज्यादा कहानियों को प्रकाशित करेंगे । पिछले पांच वर्षों में हम ने कुल पचीस कहानियों को प्रकाशित किया है ।"

इस लेख का दूसरा भाग अगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े।(श्याआओ थांग)

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