2008-10-03 16:24:15

रूस व जर्मनी के शीर्ष नेताओं के बीच भेंटवार्ता


रूस-जर्मनी सेंट पीटर्सबर्ग वार्तालाप मंच दो तारीख को सेंट पीटर्सबर्ग में आयोजित हुआ। रूसी राष्ट्रपति मेडवेडेव और जर्मन प्रधान मंत्री मेर्केल मंच में उपस्थित थे और उन के बीच वार्ता हुई। इस वर्ष के अगस्त माह में रुस व जोर्जिया के बीच दक्षिण एसोटिआ समस्या पर सैन्य मुठभेड़ हुई। चूंकि इस समस्या पर रूस व जर्मनी में मतभेद है, इसलिए, दोनों के संबंधों पर इस का असर पड़ा। वर्तमान रूस व जर्मनी के नेताओं की वार्ता से द्विपक्षीय संबंधों को सक्रिय प्रगति मिलेगी या नहीं। यह ध्यानाकर्षक है।


सेंट पीटर्सबर्ग वार्तालाप मंच वर्ष 2001 में तत्कालीन रूसी राष्ट्रपति पुतिन और जर्मन प्रधान मंत्री श्रोयडर के संयुक्त आह्वान पर स्थापित हुआ, जिस का मकसद है रूस व जर्मनी के बीच गैर सरकारी आदान प्रदान को मजबूत करना । इस के बाद हर वर्ष में एक बार इस मंच का आयोजन किया गया है। वर्तमान शिखर वार्ता का मुख्य विषय है रूस व जोर्जिया के बीच मुठभेड़ के बाद रूस-जर्मनी संबंध पर विचार विमर्श करना, युरोपीय सामुहिक सुरक्षा की नयी व्यवस्था की स्थापना करना और दोनों के बीच ऊर्जा के साथ आर्थिक व व्यापारिक सहयोग करना आदि हैं। श्री मेडवेडेव और सुश्री मेर्केल ने वार्ता में रूस व नाटो के सहयोग संबंध, बड़े पैमाने वाले विध्वंसक हथियारों के प्रसार, मध्य पूर्व परिस्थिति, ईरानी नाभिकीय समस्या और आतंकवाद व मादक पदार्थों की तस्करी पर प्रहार करना आदि समस्याओं पर भी रायों का आदान प्रदान किया।

विश्लेषकों का इस पर ध्यान गया है कि श्री मेडवेडेव और सुश्री मेर्केल ने वार्ता में भिन्न भिन्न रुख व्यक्त किए। श्री मेडवेडेव ने रूस-जर्मनी संबंध तथा दोनों के बीच सहयोग का उच्च मूल्यांकन किया। उन्होंने कहा कि रूस-जर्मनी साझेदारी संबंध ऐतिहासिक सुलह, सामाजिक सामन्जस्य और आपसी आवश्यक्ता के दृढ़ आधार पर स्थापित किया गया है, कोई भी व्यक्ति दोनों देशों के और घनिष्ट होने में बाधा नहीं डाल सकता। श्री मेडवेडेव ने कहा कि हालांकि रूस व जर्मनी के बीच मतभेद मौजूद हैं, फिर भी दोनों देश एक दूसरे के हितों का ख्याल करेंगे। सुश्री मेर्केल ने बताया कि रूस व जोर्जिया की सैन्य मुठभेड़ पर जर्मनी व रूस की भिन्न भिन्न राय है। लेकिन, साथ ही उन्होंने कहा कि वे रूस के साथ विश्वास वाले संबंधों का पुनः निर्माण करने पर मंजूर हैं।

रूस के लिए युरोप, यहां तक सारी विदेशी राजनीति में जर्मनी का महत्वपूर्ण स्थान होता है।श्री मेडवेडेव के रूसी राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद यात्रा करने वाला प्रथम पश्चिमी देश जर्मनी ही है। जर्मनी के साथ संबंधों को मजबूत करना ऐसे रूस के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है,जिस का परम्परागत प्रभाव-दायरा नाटो व युरोपीय संघ के दबाव के कारण दिनोंदिन कम होता जा रहा है। रूस ने ध्यान दिया कि ऊर्जा के लिए रूस पर निर्भर करने वाले जर्मनी और नाटो एवं युरोपीय संघ के अन्य कुछ सदस्य देशों, खासकर पूर्वी युरोप के नये सदस्य देशों के बीच हितों के मतभेद मौजूद हैं। रूस-जर्मनी संबंध का विकास करने से नाटो व युरोपीय संघ से आये दबाव को कम किया जा सकता है। इस के अलावा, नाटो को पूर्व की ओर विस्तृत करने से रोकने और युरोप के साथ मिलकर अमरीका पर अंकुश लगाने के लिए रूस के वरिष्ठ नेताओं ने इस वर्ष अनेक बार नयी युरोपीय सामुहिक सुरक्षा व्यवस्था की स्थापना करने का आह्वान किया था। इसलिए, दक्षिण ओसेटिआ संकट के उत्पन्न होने के बाद अमरीका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों के साथ संबंधों में ठंड आने की स्थिति में जर्मनी के साथ संबंधों का सक्रिय विकास करने का रूस का मकसद यह है कि रूस अमरीका व नाटो के साथ संपर्क व्यवहार में पहलकदमी प्राप्त करना चाहता है।

जबकि जर्मनी के लिए रूस असाधारण महत्वपूर्ण भी है। व्यापार के क्षेत्र में रूस जर्मनी का बहुत महत्वपूर्ण साझेदार है। इधर के वर्षों में दोनों की व्यापार रक्म में प्रति वर्ष 20 प्रतिशत की वृद्धि आयी है। वर्ष 2007 में दोनों देशों की व्यापार रक्म 57 अरब युरो तक पहुंची है, जो इतिहास में एक रिकॉर्ड है। इस के अलावा, हाल में लगभग 4600 जर्मन कारोबार रूस में व्यापार कर रहे हैं।सब से कुंजीभूत समस्या यह है कि रूस जर्मनी का सब से महत्वपूर्ण ऊर्जा सप्लाई देश है। ऊर्जा के क्षेत्र में जर्मनी रूस पर बहुत ही निर्भर करता है। रूस द्वारा दी गयी प्राकृतिक गैस जर्मनी की प्राकृतिक गैस के खर्च के 40 प्रतिशत से भी ज्यादा है। अपने ऊर्जा हित की रक्षा करने के लिए जर्मनी महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समस्याओं पर कुछ समय मित्र देशों के साथ निर्धारित मार्ग से हट भी जाता है। उदाहरण के लिए, अमरीका व रूस के बीच मिसाइल भेदी व्यवस्था के विवाद में जर्मनी ने मध्यस्थक का रोल निभाकर इस समस्या पर रूस के बयान देने के अधिकार को मान्यता दी। जोर्जिया समस्या पर पश्चिमी देशों द्वारा रूस के खिलाफ प्रतिबंध लगाने की धमकी देते समय जर्मनी ने भी इसी तरह मध्यस्थक का रोल निभाया है।

विश्लेषकों ने बताया कि रूस व जर्मनी के बीच मतभेद होने के साथ साथ महत्वपूर्ण हितों के संबंध भी हैं। हालांकि दक्षिण ओसेटिआ संकट से दोनों का संबंध ठंडा रहा, फिर भी हालिया स्थिति के मद्देनजर, दोनों के हितों वाले संबंध में बुनियादी परिवर्तन नहीं आया है। दोनों देशों के संबंध में और शैथिल्य आने की संभावना है। वर्तमान रूस-जर्मनी शिखर सम्मेलन दोनों देशों के संबंधों के विकास में बढ़ावा दे सकेगा। (श्याओयांग)