2008-09-25 15:04:48

बिल्ली का नामकरण

बहुत पहले की बात थी कि चीन की किसी जगह छाओ आन नाम के एक घर में एक बिल्ली पाला जाता था , यह बिल्ली शक्ल सूरत में बहुत अनोखी लगती थी , इसलिए घर वाले उसे बाघ वाली बिल्ली कहते थे । छाओ आन को यह बिल्ली बहुत पसंद आती थी , और अकसर उसे मेहमानों को दिखा दिखा कर प्रशंसा लूटता था । एक दिन , कुछ दोस्तों को दावत देने के दौरान छाओ आन ने भी बाघ वाली बिल्ली को मेहमानों के सामने ला कर दिखाया , छाओ आन की खुशामद करने के ख्याल में मित्रों ने बिल्ली की तारीफ करने का बांध बनाना शुरू कियाः

कोई कहता था , सच है कि बाघ बहुत बहादूर और ताकतवर है , लेकिन ड्रैगन की तूलना में वह ज्यादा दिव्य नहीं है , मेरे विचार में इस बिल्ली का नाम ड्रेगन बिल्ली रखा जाना चाहिए ।

दूसरा मित्र तुरंत बोला , अच्छा नहीं है , ड्रैगन दिव्य जरूर है , पर बिना बादल के सहारे से वह गगन में जा नहीं सकता , इसलिए बिल्ली का नाम बाजल बिल्ली होगा ।

फिर एक मित्र ने कहा कि बादल सचमुच अद्वितीय है , वह आकाश को अपने लपेट में ले सकता है , फिर भी हवा के सामने वह नहीं टिकता है , हवा के झोंके से वह तितर बितर जाता है । मेरा सुझाव है कि इस बिल्ली को वायु बिल्ली कहना ठीक है ।

एक मेहमान ने फिर कहा , आप की बात तो ठीक है , हवा वाकई बहुत शक्तिशाली है , लेकिन दीवार उसे रोक सकती है , अतः बिल्ली का नाम दीवार बिल्ली रखा जाना चाहिए।

तो किसी और एक मेहमान का कहना था कि इस सुझाव पर मैं सहमत नहीं हूं , दीवार हवा को रोक सकती है , लेकिन चूहा के आगे वह कुछ का नहीं है , चूहा दीवार में गुफा बना सकता है , मेरा मानो कि वह चूहा वाली बिल्ली कह दीजिए ।

अंत में एक वृद्ध मेहमान ने उठ कर कहा , तुम लोग गजब के निकले हो , अपनी बुद्धि की बाग्घी करते करते दिमाग खराब हो गया है , सोचो , चूहा पकड़ने वाला कौन है , क्या वह बिल्ली नहीं है , बिल्ली तो बिल्ली ही है , वह कोई दूसरा कभी नहीं हो सकता , उस का इस तरह नामकरण करने की क्या जरूरत है ।

दोस्तो , इस दुनिया में ऐसे कुछ लोग मौजूद है , जो किसी चीज की असलियत की ओर आंखें बन्द कर केवल नाम पर शोर मचाते हैं , जैसे इस नीति कथा में बिल्ली का नाम ले कर इतना वाद प्रतिवाद करके करके अंत में अन्तरविरोध पैदा हुआ और एक बड़ा व्यंग बन गया । हमें चाहिए कि जो सत्य है , उसी के अनुसार काम लेना चाहिए ।

                                                                   पुराना तंतु साज अनमोल है

कहते हैं कि प्राचीन काल में कुंग जे -छाओ नाम का एक तंतु साज बनाने वाला शिल्पी था । एक दिन उसे एक बढ़िया लकड़ी हाथ लगी । शिल्पी ने इस उच्च गुणवत्ता वाली लकड़ी से एक तंतु साज बनाया , नया तंतु साज बजाने पर मधुर आवाज निकलती है , मानो आकाश में मेघ उड़ रहा हो , नदी में पानी कलकल बह रहा हो , मानो घंटी के बजने से कर्णप्रिय धुन सुनाई देती हो । शिल्पी उसे अव्वल दर्जे का तंतु साज समझता था और शाही दरबार में भेंट कर दरबारी वाद्य पदाधिकारियों को दिखाया , वाद्य पदाधिकारियों ने इस तंतु साज की जांच परख कर अस्वीकृति में सिर हिला हिला कर कहा कि यह तो पुराना साज नहीं है , वह बढिया कैसा हो सकता , उसे वापस ले जाओ ।

शिल्पी कुंग जे-छाओ ने तंतु साज घर ले कर उस पर साख से प्राचीन काल के चित्र बनवाए और प्राचीन कालीन अक्षर खुदवाये , फिर उसे डिब्बे में बन्द कर जमीन के नीचे दफनाया । एक साल बीतने के बाद शिल्पी ने तंतु साज को जमीन में से बाहर निकाला , डिब्बा खोल कर देखा , तो साज पर काले और गले धब्बे पड़ गए । शिल्पी ने साज को बाजार में ले जा कर बेचा , तो एक धनी लोग उसे ऊंच्चे दाम में खरीदा , साज को अनमोन चीज समझ कर धनी ने उसे दरबारी वाद्य पदाधिकारियों को भेंट किया । जब वाद्य पदाधिकारियों ने साज के डिब्बा खोला , तो उन्हों ने संतोष में सिर हिला हिला कर तंतु साज की सराहना करते करते नहीं थका । वाह , वाह , यह वाकई बढ़िया साज है , अनमोल प्राचीन तंतु साज है , वाह रे , दुनिया में इस का कोई सानी नहीं है ।

इस नीति कथा की शिक्षा बहुत स्पष्ट है । प्राचीन चीजों और बातों पर अंधविश्वास करना उचित नहीं है ।