चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में यत्र-तत्र फैले चरगाह क्षेत्रों में हर जगह तंबू खड़े नजर आते हैं , तंबू तिब्बती चरवाहों के आम आवास हैं । लेकिन तिब्बत के शहरों, कस्बों और गांवों में रिहाईशी मकान बहुधा सम छत वाला ब्लॉक हाउस नुमा यानी किलानुमा होते हैं । किला नुमा प्रकार का तिब्बती रिहाइशी मकान चोकोण होता है, जो देखने में किला सरीखा दिखता है। इसलिए इस प्रकार का आवासी मकान ब्लॉकहाउस नुमा यानी किलानुमा मकान कहलाता है । ब्लॉकहाउस नुमा मकान का यह नाम सन् 1736 से अब तक चला आया है । शुरू शुरू में किलानुमा मकान पत्थरों से निर्मित हुआ था, उस की दीवार जहां जहां एक मीटर भी मोटी होती है और अधिकांश मकान की भित्ति ऊपरी भाग में पतली है और निचले भाग में चौड़ी है । इस तरह की दीवार की भित्ति सीढिनुमा होती है । कुछ किलानुमा मकान मिट्टी और लकड़ी से बनाये गए हैं , लेकिन उस का रूपाकार पत्थर के किलानुमा मकान सरीखा है । लकड़ी के मकान की दीवार ज्यादा पतली होती है । किलानुमा तिब्बती मकान में गर्मियों के दिनों वातावरण शीतल और सर्दियों के दिनों गर्म महसूस होता है ।
आम तौर पर ब्लॉकहाउस नुमा मकान बहुमंजिला होता है । उस की तला वाली मंजिल पर पशु बाड़ा और गोदाम का काम आता है और दूसरी मंजिल पर परिवार रहता है , तीसरी मंजिल पर पूजा कक्ष या खुले छज्जे का काम होता है । अपनी अपनी आर्थिक शक्ति के अनुसार मकान भी छोटे या बड़े के साइज में है । बहुत से किलानुमा मकान एक दूसरे से सटे बनाए गए हैं , ज्यादा व कम ऊंचाई में बने श्रृंखलाबद्ध किलानुमा मकान समूह देखने में बहुत मनोहर लगता है । ल्हासा में जो तीन या इस से अधिक मंजिला किलानुमा मकान सुरक्षित हैं , वे अधिकांश पुरानी जमाने में तिब्बती कुलीन वर्ग द्वारा निर्मित किए गए थे ।
तिब्बत के विभिन्न स्थानों में ब्लॉकहाउस नुमा मकान देखने को मिलते हैं । लेकिन उन की वास्तु शैली कम या ज्यादा भिन्न है । ल्हासा में किलानुमा मकान गलियारे के आकार में है , बाहर से देखने में उन की खिड़कियां ही खिड़कियां नजर आती हैं , लेकिन अन्दर जा कर वह भूल-भूलैयां जैसी है । जबकि तिब्बत के लोका क्षेत्र में किलानुमा मकान के बाहर प्रांगन है , जो परिवार के लिए बाहर अन्दर आने जाने हेतु सुविधाजनक है । सभी मकानों की छत समतल है , जिस पर लोग विचरण करते और मनोरंजन करते हैं । हरेक मकान की छत पर चारों छोर की दीवारें ऊंची है, जिन में त्योहार के समय रंगबिरंगी झांडियां फहरायी जाती हैं । छत पर पूजा अनुष्ठान भी आयोजित हो सकता है ।
तिब्बती चरवाहों के तंबू
इतिहास में तिब्बती चरवाहे घुमंतु जीवन बिताते थे । वे इधर-उधर घूमते थे और तंबू उन के रहने के मकान थे । वर्तमान में अधिकांश तिब्बती चरवाहे स्थाई रिहायशी मकानों में रहते हैं और स्थाई जीवन बिताने लगे हैं । लेकिन तंबू उन के जीवन में अपरिहार्य वस्तु है ।
घास मैदान में घास प्रचुरता से होने के कारण तिब्बती चरवाहे आम तौर पर इधर-उधर घूमते हैं । क्योंकि एक ही स्थल पर घास सीमित होती है और घास दुबारा उगने में भी समय लगता है । इस तरह घास न होने वाली शरत् ऋतु और सर्दियों में चरवाहे स्थाई मकानों में रहते हैं ।
तिब्बती चरवाहे आम तौर पर पालतु गायों व भेड़ों की ऊंन से तंबू बनाते हैं । नीलगाय की ऊन से बने हुए तंबू का रंग काला होता है, इस प्रकार के तंबू को काला तंबू कहा जाता है । जबकि भेड़ों की ऊन से बने हुए तंबू का रंग सफ़ेद होता है और इसे सफ़ेद तंबू कहा जाता है । लेकिन आम तौर पर तिब्बती चरवाहों के तंबू शुद्ध सफेद और शुद्ध काले रंग के नहीं होते हैं । विशेष कर शुद्ध काले रंग वाले तंबू बहुत कम दिखाई पड़ते हैं । क्योंकि तिब्बती लोगों को काला रंग पसंद नहीं है । इस तरह तंबू बनाने के वक्त शुद्ध काले रंग वाली सामग्री का प्रयोग नहीं किया जाता है । आम तौर पर तिब्बती चरवाहों के तंबू काले और सफेद मिश्रित रंग के होते हैं । गाय व भेड़ ज्यादा होने वाले पठार में कपड़े से बने हुए तंबू बहुत कम होते हैं, इस तरह इसे बहुत मूल्यवान भी समझा जाता है ।
तिब्बती चरवाहे तंबुओं का आम तौर पर अपने लिए ही प्रयोग करते हैं । परिवार के सदस्यों की संख्या के अनुरूप वे तंबू बनाते हैं । परम्परागत रीति के अनुसार तिब्बती चरवाहों के तंबू का द्वार पूर्व की ओर खुला होता है । तंबू को जोड़ने वाली रस्सियों पर रंगबिरंगे सूत्र झंडे बंधे रहते हैं, जो खुशहाली व शुभकामना के प्रतीक हैं ।