2008-09-19 14:33:18

प्रारम्भिक मिङ काल की राजनीति

जैसाकि पहले बताया जा चुका है, चू य्वानचाह ने 1367 में य्वान राजवंश का तख्ता उलट दिया था। 1368 में उस ने अपने को सम्राट घोषित कर दिया और मिङ राजवंश की स्थापना की तथा नानचिङ को अपनी राजधानी बनाया। इतिहास में चू य्वानचाङ सम्राट थाएचू के नाम से और उस का शासनकाल हुङऊ के नाम से मशहूर है। उस की मृत्यु के बाद उसका सब से बडा बेटा चू प्याओ पहले ही मर चुका था।

इतिहास में चू युनवन सम्राट च्येनवन के नाम से मशहूर है। नए सम्राट ने तमाम सामन्ती राजाओं की सैन्यशक्ति कम करने का हुक्म दिया। लेकिन उस के चाचा अर्थात चू य्वानचाङ के चौथे बेटे चू ती अथवा राजा येन ने विद्रोह कर दिया। वह नानचिङ पर कब्जा करने में सफल हो गया और अपनी राजधानी नानचिङ से हटाकर पेइचिङ ले आया। उस ने युङलो वर्षनाम से अपना शासन शुऱु किया तथा इतिहास में सम्राट छङचू के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

केन्द्रीय सरकार की सत्ता को सुदृढ करने के उद्देश्य से प्रारम्भिक मिङ काल के शासकों ने केन्द्रीय मंत्रालय व प्रधान मंत्री सचिवालय भंग कर दिए और उनके अधिकार प्रशासन , कार्यविधि, वित्त, प्रतिरक्षा, न्याय और सार्वजनिक निर्माण से संबंधित छै मंत्रालयों में वितरित कर दिए। प्रत्येक मंत्रालय का प्रधान सीधे सम्राट के प्रति जिम्मेदार होता था। एक परिनिरीक्षण कार्यालय था, जिस के दो प्रधान थे। उन्हें बायां व दायां निरीक्षक कहा जाता था। यह कार्यालय सरकारी अफसरों के काम व आचरण की निगरानी करता था। इन के अलावा महापारषदों का दफ्तर भी था। शुरू शुरू में इन महापार्षदों का काम सम्राट को सलाह देना था, लेकिन बाद में उन्होंने ज्यादा से ज्यादा अधिकार अपने हाथ में ले लिए, और अन्ततः महापार्षदों का प्रधान वस्तुतः प्रधान मंत्री बन या।

पूरे देश को 13 प्रान्तों में विभाजित किया गया था। प्रत्येक प्रान्त में एक गवर्नर होता था, जो नागरिक और वित्तीय मामलों के लिए जिम्मेदार एक न्यायाधीश और फौजी मामलों के लिए जिम्मेदार एक कमाण्डर भी होता था। प्रान्त के नीचे प्रिफेक्चर और काउन्दी थी। दूरवर्ती क्षेत्रों और अल्पसंख्यक जातियों के इलाकों में गैरिजन कमान के नाम से एक भिन्न प्रकार की प्रशासन व्यवस्था प्रचलित थी। गैरिजन कमान का प्रधान अपने इलाके के फौजी व नागरिक दोनों ही प्रकार के मामलों के लिए जिम्मेदार था।

मिङ राजवंश ने परीक्षा के जरिए अफसरों का चयन करने की प्रथा बनाए रखी , जो स्वेइ थाङ काल से शुरू हुई थी। हर प्रिफेक्चर, उपप्रिफेक्चर और काउन्टी के अपने अपने विद्यालय थे, जिन के स्नातकों को अपेक्षित परीक्षाओं में उत्तरीर्ण होने के बाद श्यू छाए नामक उपाधि दी जाती थी। श्यू छाए उपाधि प्राप्त व्यक्ति अपने प्रान्त की राजधानी में आयोजित प्रान्तीय परीक्षा में शामिल हो सकता था, जिस में सफलता प्राप्त करने के बाद उसका उल्लेख च्वी रन (अनुशंसित व्यक्ति ) के रूप में किया जाता था। च्वी रन को देश की राजधानी में आयोजित राष्ट्रीय परीक्षा में भाग लेने का अधिकार था, जिस में सफल होने पर वह राजप्रासाद में सीधे सम्राट की देखरेख में आयोजित शाही परीक्षा में भाग ले सकता था।

राजप्रासाद में आयोजित परीक्षा में सफल होने वाले व्यक्ति को चिन शी (उच्च विद्वत्ता) की उपाधि से विभूषित किया जाता था तथा केन्द्रीय सरकार अथवा स्थानीय सरकार में अफसर के पद पर नियुक्त किया जा सकता था। मिङ राजवंशकाल में अफसर बनने का मुख्य रास्ता उक्त परीक्षा व्यवस्था ही थी।