भारत के अखबारों ने पेइचिंग में आयोजित हो रहे पैरालंपिक की सकारात्मक समीक्षा कर कहा कि इससे विकलांगों में जीवटता की जंग छिड़ी है । पैरालंपिक का संदेश साफ है कि जीतने की चाह हो तो शरीरिक अक्षमता भी आड़े नहीं आ सकती है । प्रतिभा तो किसी में भी हो सकती है , जरूरत है बस उसे निखारने की । पेइचिंग पैरालंपिक में बहुत से ऐसे खास एथलीट हैं जिन की जीवटता ओलंपिक एथलीटों के मुकाबले में कहीं अधिक है । वे प्रशंसा के साथ ही इनाम के हकदार भी हैं । इस के बावजूद इन विकलांग एथलीटों को इन सब बातों की कोई परवाह नहीं होती , उन्हें तो बस अपना मुकाबला जीतने की धुन लगी रहती है । पेइचिंग में 6 से 17 सितंबर तक आयोजित हो रहे पैरालंपिक में एथलीटों को बहुत ही कम इनामी राशि मितली है और जीतने के बाद कोई कंपनी उन्हें अपना ब्रांड एम्बैसेडर भी नहीं बनाती , लेकिन इन सभी बातों से कहीं दूर यह एथलीट पूरी लगन से प्रतिस्पर्द्धा में भाग लेते हैं । यह दृढ़ संकल्प का ही प्रभाव है कि शारीरिक अक्षमता इन एथलीटों के आड़े नहीं आती है । यह दौड़,जूडो, साइकिलिंग , बास्केटबाल , हैमरथ्रो , तैराकी जैसी कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते हैं और स्वयं को सर्वश्रेष्ठ साबित करने का भरपूर प्रयास करते हैं । ह्वीलचेयर मैराथन को एक घंटा बीस मिनट में पूरा करने वाले, हैंड साइकिल को 30 मील प्रति घंटा दौड़ाने वाले और अपने शरीर के भार अनुपात में भार उठाने वाले भारोत्तोलक भी यहां नजर आ रहे हैं । पेइचिंग पैरालंपिक के आयोजन से लोगों का सोचने का नजरिया बदला है कि जीतने के लिए शारीरिक क्षमता से अधिक जरूरी है लगन। आशा है कि इन साहसी एथलीटों की जीवटता जारी रहेगी ।