2008-09-12 12:58:07

पश्चिमी एशिया व अफ्रीकी देशों के पैरा आलम्पिक खिलाड़ियों की मुलाकात

पश्चिम एशिया और अफ्रीका में वर्तमान दुनिया में ज्यादा अविकसित देश केंद्रित हुए हैं । पर ऐसा होने पर भी इन क्षेत्रों के बहुत से देशों ने पेइचिंग 2008 पैरा आलम्पिक में भाग लेने के लिये अपने खिलाड़ियों को भेज दिया है ।

इधर सालों में इराक युद्धाग्नि और अदरूनी उथल पुथल परिस्थित के दौर में फंस पड़ा है । पर इस देश ने फिर भी दो खिलाड़िनों समेत 20 खिलाड़ियों को पेइचिंग पैरा आलम्पिक में भेज दिया है । 52 वर्षीय हमिद इराकी वालीबाल टीम के नेता हैं और अपनी टीम में सब से बुजुर्ग खिलाड़ीन भी हैं , उन्हों ने इराक की ओर से अनेक बार पैरा आलम्पिक और विश्व कप प्रतियोगिताओं में भाग लिया था । उन का विचार है कि हालांकि दैनिक अभ्यास बहुत कठिन है , पर अपनी मातृभूमि की ओर से पैरा आलम्पिक में भाग लेने का भारी महत्व है । उन का कहना है

इराक में जब हमें अभ्यास के लिये स्टेडियम जाना था , तो स्टेडियम की ओर जाने वाले रास्ते निषेधक थे , जब व्यायामशाला जाना था , तो वहां जाने वाले रास्ते भी निषेधक थे , मजबूर होकर हम सड़क पर अभ्यास करना चाहते थे , लेकिन सड़क पर प्रतिबंध भी लगाया गया । अंत में इराकी आलम्पिक कमेटी के प्रयास के जरिये हमें अभ्यास के लिये विदेशी छावनी में जाना पड़ा । आज हम पेइचिंग पैरा आलम्पिक में भाग लेने आ गये हैं , यह इराकी जनता का गर्व है ।

23 वर्षिय ईरानी लड़के मानसूरी को अपने बचपन से ही बीमारी की वजह से पैर लगवा हो गया , 2001 में उस ने पहियादार कुर्सी बास्केटबाल खेलने में लग गया । उस ने 2006 सुदूर पूर्व और प्रशांत महा सागरीय क्षेत्र के पैरा खेल समारोह में चैम्पियन और 2007 एशियाई चैम्पियनशीप प्रतियोगिता में रनरअप रहा । उस ने कहा कि हालांकि ईरान में ट्रेनिंग स्थिति काफी संतोषजनक नहीं है , पर फिर भी सरकार ने उन्हें यथासंभावित समर्थन व सहायता प्रदान की है । उस का कहना है

ईरान में बहुत से स्टेडियम चीनी स्टेडियम जितने बढ़िया नहीं हैं और वहां पर सरंजाम भी काफी संपूर्ण नहीं हैं , पर ईरानी खेल अधिकारियों ने हमें सुचारु अभ्यास के लिये अनुकूल स्थिति तैयार करने की बड़ी कोशिश की है ।

सुंदर तुर्की लड़की गिजम को अपनी 11 उम्र में दुर्घटना की वजह से लगवा हुआ और पहियादार कुर्सी का सहारा लेना पड़ा । इस नये बाधित जीवन में समर्थ होने के लिये उसे अंगिनत कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करना पड़ा । घर वालों के समर्थन व सहायता में वह फिर से स्कूल में लौट गयी और विश्वविद्यालय की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह निशानेबाजी खेल में लग गयी । सुश्री गिजम ने संवाददाता से कहा

मेरे मन में छोड़ने का विचार कभी भी नहीं आया , क्योंकि चाहे विकलांग हो या स्वस्थ व्यक्ति , हरेक व्यक्ति के जीवनकाल में कुछ न कुछ कठिनाइयां या टक्करें प्रकाश में आती हैं , लेकिन हमें इन परेशानियों के सामने अपना सिर नहीं झुकाना चाहिये , उल्टे कठिनाइयों को दूर कर विजेता बनने चाहिये , यह ही हमारा सही जीवनी रवैया है ।

हालांकि अविकसित क्षेत्रों व देशों से आय़े खिलाड़ियों को जीवन व ट्रेनिंग जैसे क्षेत्रों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है, पर इस पैरा आलम्पिक में भाग लेने के उन के उत्साह पर कुप्रभाव नहीं पड़ा है। वे समान लक्ष्य , खेलकूद कार्य और दोस्ती के लिये पेइचिंग पैरा आलम्पिक में भाग लेने आये हैं ।