2008-09-10 16:16:26

जापानी नेत्रहीन ज्यूडो खिलाड़ी सातोशी

तीन दिन की तीव्र प्रतिस्पर्धा के बाद पेइचिंग पैराआलंपिक नेत्रहीन ज्यूडो के सभी इवेन्ट 9 तारीख को समाप्त हो गए है। इस इवेन्टों की प्रतिस्पर्धा में पिछली तीन पैराआलंपिक नेत्रहीन ज्यूडो के पुरूष 66 किलोग्राम चैम्पियनशिप, जापानी खिलाड़ी सातोशी ने पैराआलंपिक के ज्यूडो प्रतियोगिता में जापान प्रतिनिधि मंडल के लिए एक रजत पदक जीता, अफसोस की बात यह है कि वह चौथी बार इस इवेन्ट का स्वर्ण पदक हासिल नहीं कर सके।

श्री सातोशी अपनी बाए आंख जन्म के समय खो बैठे थे, उनकी दाए आंख की दृष्टि केवल 0.2 ही है। वह दूसरी श्रेणी के नेत्रहीन विकलांग माने जाते हैं। इस साल 33 वर्षीय श्री सातोशी ने 1996 अटलांटा पैराआलंपिक, 2000 सिडनी पैराआलंपिक व 2004 एथन्स पैराआंलपिक में भाग लिया था , जिस में उन्होने निरंतर पुरूष की 66 किलोग्राम ज्यूडो इवेन्ट के स्वर्ण पदक बटोरे थे। उन्होने कहा लेकिन सात तारीख रात के नेत्रहीन पुरूष 66 किलो ज्यूडो के फाइनल में पेइचिंग पैराआलंपिक में उन्हे अपने चौथे स्वर्ण पदक पाने में निराश होना पड़ा, आखिरकार उक्त स्वर्ण पदक अल्जीरिया के खिलाड़ी सिडाली के हाथ पड़ा, उन्होने एक रजत पदक हासिल किया। मैच के बाद श्री साताशी ने दुखी के आंसू बहाते हुए हमारे संवाददाता को बताया अपना चौथा स्वर्ण पदक जीतने के सपने को साकारने के लिए, मैंने बहुत दुख झेले हैं और न जाने कितनी कठिनाईयों को दांत दबा कर हल किया है, लेकिन अन्त के परिणाम में मैं अपना सपना साकार न सका, केवल रजत पदक ही जीत सका।

श्री साताशी ने सच्चे दिल से कहा कि ज्यूडो को बेहद प्यार करने वाले एक खिलाड़ी होने के नाते, उन्हे इस तरह दुखित नहीं होना चाहिए, लेकिन बहुत कुर्बानियां की है, इस लिए अन्त की घड़ी में स्वर्ण पदक न पाने के दुख को काबू नहीं कर पा सका। उन्होने हमें बताया यही पेशावर व शौकीन खिलाड़ियों के बीच का फर्क है। मेरे जैसे शौकीन खिलाड़ी नौकरी करते समय अभ्यास भी जारी रखते हुए , अपने प्रतिद्वंद्वी से पंगा लेना बहुत ही मुश्किल है ,उन्हे हराना तो कहीं ज्यादा मुश्किल है। जबकि पेशवार खिलाड़ी को खर्चे व अभ्यास की सुनिश्चता है , हम जैसे अव्यवसायी ज्यूडो खिलाड़ी हमेशा अव्यवसायी श्रेणी में ही रहते हैं।

जापानी ज्यूडो खिलाड़ियों में श्री साताशी की तरह सभी शौकीन खिलाड़ी है, श्री साताशी जापान के एक नेत्रहीन मासाज प्रशिक्षण स्कूल के एक अध्यापक है, यह उनके बचपन का स्कूल भी है। उन्होने कहा हर हफ्ते मैं 18 घन्टे की क्लास पढ़ाता हूं, यह मेरा असली पेशा है, ज्यूडो मेरे जीवन की कमाई का माध्यम नहीं है। खाली समय में हम ज्यूडो के अभ्यास में भाग लेते हैं। करीब शाम के पांच बजे नौकरी की छुटटी के बाद ,हम अपने समय निकाल कर ज्यूडा का अभ्यास करते हैं, एक दिन में औसत दो घन्टे का अभ्यास करना पड़ता है।

श्री साताशी ने पांच साल की उम्र में ज्यूडो सीखना शुरू किया था, मिडिल स्कूल में वह स्वस्थय लोगों के ज्यूडो क्लब में भर्ती हुए और इस कल्ब के मात्र नेत्रहीन सदस्य थे। अब तक कल्ब के दोस्त उन्हे अकसर ज्यूडो अभ्यास में मदद देते है, नजदीक की पुलिस ब्यूरो ने भी उन्हे प्रशिक्षण स्थल प्रदान किया है।