कहा जाता था कि महा वीर फान्गु द्वारा आसमान और जमीन को अलग कर दिया जाने के बाद देवी न्युवा इस में घूमती विचरती रही । यो जमीन पर पहाड़ों और नदियों का विकास हुआ , मैदानों और वादियों में पेड़ पौधों की उगाई हुई और पशुपक्षियों व कीट मछलियों का जन्म हुआ , पर पृथ्वी पर मानव का नामोनिशान नहीं था , इसलिए हर जगह निर्जनता व्याप्त हो रही थी । एक दिन न्युवा निर्जन जमीन पर चल रही थी , लेकिन उस का मन बड़ा उदास और अकेलेपन से भरा हुआ था , उसे लगा कि उसे आसमान और जमीन को कुछ और सजीव बनाना चाहिए ।
न्युवा विशाल जमीन पर विचरती जा रही थी , उसे पेड़ पौधों , फुल पुष्पों से असीम प्यार था , किन्तु उसे जो ज्यादा स्नेह मिलता था , वह जीवन से परिपूर्ण जीवजंतुओं से आया था । इन सजीव वस्तुयों को निहारते हुए न्युवा को ऐसा निचार आया कि फान्गु का यह सृजन संपूर्ण नहीं है , क्योंकि पशुपक्षियों तथा कीट मछलियों की बुद्धि काफी मंद लगती है , उसे ऐसे जीवन से ज्यादा श्रेष्ठ जीव बनाना चाहिए।
न्युवा पीली नदी के किनारे घूमती जा रही थी , नदी के स्वच्छ पानी में उस की सुन्दर परछाई पड़ी दिखती थी , न्युवा अपनी सुन्दर परछाई पर बड़ी खुश हो उठी । उस ने नदी तल की मिट्टी से अपनी आकृति जैसी मानव की मूर्ति बनाने की कोशिश की , न्युवा होशियार और कार्यकुशल थी , कुछ ही मिनट में उस ने अनेक मिट्टी के मानव बनाये। ये मानव सूरत शक्ल में उसी की भांति लगते थे , फिर उस ने मानव के शरीर के साथ अपने जैसे पूच्छ के बजाए दो दो पैर और हाथ जोड़ दिये । अंत में न्युवा ने इन छोटी मानव मूर्तियों में प्राण फूंक दिया , देखते ही देखते छोटी छोटी माव मुर्तियों में जीवन का संचार हुआ , वे सचमुच जीवित हो उठे , जो पैरों पर खड़े हो कर चलने पर आ गए , उन के हाथ बहुत चतुर और कार्यकुशल हो गए और मुहं से बोलना गाना संभव हुआ । न्युवा उन्हें मानव का नाम दिया ।
न्युवा ने कुछ मानव के शरीर में यांगछी यानी मर्द प्राण फूंक दिया , जिस से वे पुरूष के रूप में विकसित हो गए , कुछ अन्य मानव में येनछी यानी स्त्री प्राण फूंक डाला , जिस से वे नारी के रूप में दुनिया में पैदा हुई । ये पुरूष स्त्री न्युवा की चारों ओर घूमते उछलते थे , हर्षोल्लास करते थे , जिस से संसार में जीवन की लहर दौड़ने लगी ।
न्युवा चाहती थी कि उस के निर्मित ये मानव अनन्त भूमि पर फैल जाए , लेकिन वह काफी थकी हुई और उस के हाथ की गति भी धीमी आई । उसे एक तरीका सूझा , तो उस ने घास की एक रस्सी को नदी के तल में डाल कर तेजी से घूमाया , इस से रस्सी के निचले भाग में मिट्टी की एक मोटी परत चिपकी , न्युवा ने फिर जोर से रस्सी को अपार जमीन की ओर फिराया , उस पर लगी मिट्टी बूंद बूंद के रूप में जगह जगह गिर पड़ी , जहां मिट्टी की बूंद गिर पड़ी , वहां वे मानव के रूप में परिवर्तित हो गए और इसी तरह न्युवा के निर्मित मानव दुनिया की जगह जगह फैल गए ।
जमीन पर मानव पैदा हुए , न्युवा का काम भी समाप्त हुआ जान पड़ता था । किन्तु उस के दिमाग में नया विचार आया कि ये मानव किस तरह पीढ़ी दर पीढ़ी वंश जारी रखते है , मानव का जन्म हुआ , तो अवश्य उस की मृत्यु भी होती है , यदि बारबार नये मानव बनाये जाए , तो काम बहुत भारी और परेशानी देने वाला होगा । यह सोच कर न्युवा ने पुरूष और स्त्री को जोड़ा जोड़ा बना कर उन्हें स्वयं संतान का जन्म करने की शक्ति सौंप दी । इस के उपरांत मानव स्वयं अपना वंश जारी करने के योग्य हुए और उन की संख्या में भी निरंतर वृद्धि होती चली गई ।