छांग-अ चांद की देवता थी , उस का पति हो-ई एक वीर यौद्धा था , उस के तीर का निशाना कभी भी नहीं चूकता था । आदि प्राचीन काल में धरती पर बड़ी संख्या में आदमखोर जानवर पैदा हुए , जो नरसंहार मचाते थे । स्वर्ग सम्राट ने यह खबर पाने के बाद हो-ई को जग लोक में जा कर धरती पर के इन दुष्ट जानवरों का विनाश करने भेजा । स्वर्ग सम्राट की आज्ञा बजाते हुए हो-ई अपनी लावण पत्नी छांग-अ के साथ जग लोक में आए । वह बहादुर और शक्तिशाली था , और उस ने अल्प समय में ही धरती पर के नृसंहारी जानवरों को नष्ट कर दिया । लेकिन न जाने कि इसी वक्त आकाश में दस सुर्य उत्पन्न हुए , वे स्वर्ग सम्राट के पुत्र थे , जो अपनी मनमाने मजा के उद्देश्य में जान बुझ कर आकाश में आ निकले थे , उन की तेज रोशनी से जमीन सूख पड़ी , फसल जल कर नष्ट हुई और मनुष्यों ने बड़ी संख्या में तपती हुई गर्मी से दम तोड़े और जमीन पर लाशों के ढेर ही ढेर नजर आए ।
दस सुरजों के कुकर्म को हो-ई बर्दाश्त नहीं कर सकता , उस ने समझा बुझा कर सुरजों को सलाह दी कि वे सामुहिक रूप में आकाश में न आए और बारी बारी से रोज केवल एक बाहर आये । लेकिन घमंड से अंधे दस सुरजों ने हो-ई की सलाह नहीं मानी , उल्टे उन्हों ने और अधिक कुकर्म मचाने लगे , वे जान बुझ कर धरती के निकट जा पहुंचे , जिस की असह्य तेज किरणों से जमीन पर भंयकर आग लगी । इस सब को देख कर हो-ई सुरजों की हठधर्मी और दुष्टता से बेहद क्रुद्ध हुए , उस ने सुरजों को मार गिराने की ठान ली । उस ने कंधे पर से धनुष उतारा और म्यान से बाण बाहर निकाला और सुर्यों को मार गिराने के लिए छोड़ा , एक ही सांस में हो-ई ने नौ सुरजों को मार गिराया , आसमान में मात्र एक सुर्य रह गया , उस ने हो-ई से माफ मांगी , तभी हो-ई ने उसे जिन्दी छोड़ा । धरती शांत हो गई , मनुष्य पुनः शांति चैन जीवन बिताने लगे, वे हो-ई के बहुत आभारी थे ।
इस महान कारनाम से हो-ई ने मनुष्य के लिए कल्याण तो किया था , पर वह स्वर्ग सम्राट के क्रोध के पात्र बना , सम्राट अपने पुत्रों को मार डाला जाने के कारण हो-ई पर घोर आक्रोश आया । उस ने हो-ई और उस की पत्नी छांग-अ को देव लोक से निकाल कर दोनों को फिर स्वर्ग लोक वापस आने की इजाजत नहीं दी । स्वर्ग लौटने नहीं जा पाने पर हो-ई और छांग -अ ने जग में बसने का संकल्प किया, ताकि धरती पर प्रजा की सेवा में ज्यादा हितकारी काम करें , वे वहां आखेट का जीवन बिताने लगे । लेकिन वक्त गुजरते गुजरते हो-ई की पत्नी छांग-अ जग के दूभर जीवन से असंतुष्ट हो गई , उस ने यह कह कर हो-ई की आलोचना की कि उस ने स्वर्ग सम्राट के पुत्रों को मार गिराने के सुझ बुझ से काम नहीं लिया।
यह विचार भी लगातार हो-ई को सताता रहा कि अपने ही कारण उस की पत्नी छांग-अ को भी स्वर्ग में वापस नहीं जा सकी । उस ने सुना कि खुनलुन पर्वत पर रहने वाले देवता सीवांगमु के पास दिव्य दवा है ,जिसे खाने के बाद मनुष्य स्वर्ग पर आरोहित हो सकता है । तो हो-ई लम्बी सफर तय कर लाखों मुसिबतों को सह कर खुनलुन जा पहुंचा , और सीवांगमु से दिव्य दवा मांगा । लेकिन यह दवा केवल एक व्यक्ति के लिए पर्याप्त थी , हो-ई का जी नहीं चाहता था कि अपनी प्यारी पत्नी को धरती पर छोड़ कर वह अकेला स्वर्ग जाए , लेकिन यह भी नहीं मानता था कि पत्नी उसे छोड़ कर अकेली स्वर्ग जाए । इस दुविधा से परेशान वह घर लौटा और दवा को छिपा कर गुप्त रखा ।
दिव्य दवा का रहस्य अंत में छांग-अ को पता चला , यो वह अपने पति से बहुत प्यार करती थी , लेकिन स्वर्ग लोक के आनंदिद जीवन से असीम आकृष्ट भी हुई थी । मध्य शरद में आठवें माह की 15 वीं तारीख को पूर्णानुमा की रात , जब हो-ई घर पर नहीं था , तो उस ने दिव्य दला की तलाश कर खाया , तुरंत उस का शरीर उत्तरोतर हल्का होता गया और धीरे धीरे वह आकाश की ओर उड़ने लगी , उड़ती उड़ती अंत में वह चांद पर जा पहुंची और वहां के शीत महल में रहने लगी । जब पता चला कि पत्नी स्वर्ग लोक चली गई , तो हो-ई को बड़ा गम हुआ , वह दिव्य बाण से पत्नी को मार गिराने को कतई तैयार नहीं था , इस तरह दोनों सदा के लिए जुदा हो गए ।
अब हो-ई अकेलेपन का जीवन बिताने लगा , वह शिकारी के जीवन पर आश्रित रहा , उस ने प्रजा की सेवा का काम जारी रखा । उस ने अनेक युवाओं को शिष्य बना कर उन्हें तीर मारने का कौशल सीखाया । शिष्यों में से फङमन नाम का एक व्यक्ति था , वह होशियार था , अल्पकाल में ही उस ने तीरंदाजी के बेहतरीन कौशल पर अधिकार किया । लेकिन इस शिष्य के मन में एक दुष्ट विचार आया था कि जब तक हो-ई रहेगा , तब तक वह खुद तीरंदाजी के नम्बर एक पर नहीं आ सकेगा , एक दिन जब शराब पी कर हो-ई गहरी नींद में सोया , तो फङमन ने उसकी तीर मार कर हत्या की ।
छांग-अ चांद पर तो आरोहित हुई थी , लेकिन वहां निर्जन महल में केवल एक खरगोश और एक बुढ़ा थे , जो महज औषधि बनाना तथा वृक्ष काटना जानते थे , उसे बड़ी उदासी और अकेलेपन की अनुभूति हुई । जब तब छांग-अ को अपने पति के साथ गुजरे सुन्दर दिन और जग लोक के स्नेह की याद आई , खास कर मध्य शरद के आठवें माह की 15 वीं तारीख को जब चांदनी रात निकली , तो उसे पहले के सुख चैन के जीवन की याद और अधिक सता रही थी ।