म्याओ जाति चीन की 55 अल्पसंख्यक जातियों में से एक है, जो मुख्यतः क्वेई च्यो, युन्नान और हू पेई आदि प्रांतों में रहती हैं। म्याओ जाति का लम्बा इतिहास है, जिस के अपनी विशेषता वाले रीति रिवाज हैं। त्योहार के दौरान म्याओ जाति की लड़कियां अक्सर अपने हाथों से बनाये हुए कपड़े पहनती हैं और चांदी के गहनों से खुद को सजाती हैं। सौन्दर्य दिखाने के लिए म्याओ जाति में कपड़ों व चांदी की सजावट का विशेष अर्थ है।
इतिहास में म्याओ जाति की अपनी लिखित भाषा नहीं है। वे पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक भाषा का प्रयोग करते हैं। साथ ही उन्होंने पुरानी कहानियों, पूर्वजों की बस्तियों व मकानों और स्थानांतरण के रास्तों आदि के कथनों को अपने गीतों या पूजा की रस्म में जोड़ा है, और अपनी वेशभूषा व चांदी की सजावट मे भी शामिल किया है। वेशभूषा या चांदी की सजावट में भी म्याओ जाति के इतिहास की झलक देखी जा सकती है।
क्वेई च्यो प्रांत की म्याओ जाति तोंग जाति स्वायत प्रिफेक्चर की लेईशैन काऊंटी की शीच्यांग कस्बे में एक एक हजार से ज्यादा म्याओ जाति की बस्तियां हैं। यहां इंटरव्यू करते समय संवाददाता ने पता लगाया कि तितलियां के चित्र स्थानीय लोगों के कपड़ों पर अक्सर दिखाई पड़ते हैं। यहां के एक नेता श्री थांग ने हमें बताया,हमारी वेशभूषा या चांदी की सजावट में कुछ चित्र होते हैं। कहा जाता है कि हमारे पूवर्ज तितलियां थे, इसलिए, हम तितलियां को मा कह कर पुकारते हैं।
तितलियों की कहानी की चर्चा में क्वेईच्यो प्रांत के सांस्कृतिक संघ के उपाध्यक्ष प्रोफेसर ह क्वांग य्वू ने कहा,म्याओ जाति की चांदी की सजावट या वेशभूषा में कुछ चित्रों में अनेक तितलियां और मैपिल वृक्ष के पत्ते नजर आते हैं। चूंकि म्याओ जाति के लोग यह मानते हैं कि उन के पूर्वज पहले मैपिल वृक्ष पर रहने वाली एक एक तितली थी, बाद में इस तितली ने 12 अंडे दिए और इन अंडों से दुनिया में मनुष्य एवं पशु समेत सभी जीवित प्राणी पैदा हुए। इसलिए, म्याओ जाति के लोग तितलियों को अपनी मां मानते हैं और मैपिल वृक्ष को अपना पूर्वज मानते हैं।
म्याओ जाति के लोग प्रकृति के प्रति अपने सम्मान को अपने कपड़ों व चांदी की सजावटों के ज़रिए दिखाते हैं। तितलियों को छोड़कर ड्रैगन, मछलियां और चमगादिड़ आदि प्राणी भी अक्सर उन की वेशभूषा में देखे जा सकते हैं, जिन का अर्थ है सुखमय जीवन और अनेक बेटे-बेटियां । वास्तव में म्याओ जाति की वेशभूषा में दिखाई पड़ने वाले हर पशु व पेड़ के पीछे एक सुन्दर कहानी है।
इस लेख का दूसरा भाग अगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े।(श्याओयांग)