संयोग से उस ने एक लोमड़ी पकड़ी और उसे खा खा कर पेट भरने को तैयार हो गया ।
लेकिन इसी वक्त लोमड़ी ने उस से कहा कि बाघ रे बाघ , तुम मुझे नहीं खा सकते हो , क्योंकि मैं भगवान से यहां भेजा गया हूं , उस ने मुझे जानवरों का राजा नियुक्त किया है , अगर तुम ने मुझे खा डाला , भगवान तुझे सजा देगा ।
लोमड़ी की बातों पर बाघ को आशंका आयी , उसे पता नहीं कि लोमड़ी की बातों पर विश्वास करना चाहिए अथवा नहीं। वह भूख से भी मारा जा रहा था , इसलिए बड़ी दुविधा में वह पड़ गया ।
बाघ की दुविधा देख कर लोमड़ी ने फिर कहा कि तुम मेरी बातें झूठी समझते हो , तो आओ , मैं आगे आगे चला जाऊंगा , तुम मेरे पीछे आओगे , तो तुम देख सकते हो कि जंगल के जानवर मुझ से डरते हो या नहीं । अगर वे मुझे देख कर दूर दूर भाग नहीं गए , तो तुम मुझे खा डालोगे ।
लोमड़ी की बातें उचित समझ कर बाघ उस के साथ जंगल में आगे बढ़े , लोमड़ी आगे आगे चल रहा था , तो बाघ उस के पीछे पीछे हो लिया जा रहा था । सचमुच ही जंगल के सभी जानवर उन दोनों को देख कर दूर दूर भाग गए थे ।
बाघ को मालूम नहीं था कि असल में जानवर उसे देख कर भय के मारे भागते हैं , वह समझता था कि जानवर लोमड़ी से डर रहे हैं । इसलिए वह भी लोमड़ी से डर कर भाग गया ।
इस कथा से यह शिक्षा मिल सकती है कि किसी भी बात की असलियत जानना चाहिए , लोमड़ी बाघ के रोब के सहारे अन्य जानवरों को डराता था, ऐसी चाल में न पड़ जाना चाहिए।