2008-08-14 15:44:21

समुद्री कछुआ और चिंट्टियां

बहुत पहले की कहानी थी , पूर्वी चीन समुद्र में एक विशाल समुद्री कछुआ रहता था , वह इतना विशाल था कि वह अपने सिर पर फङ लाई पर्वत लादे अनंत सागर में तैर सकता था ।

                                                                  

समुद्र से कई सौ किलोमीटर दूर एक जगह पर आबाद एक लाल रंग की चिंट्टी को यह सुनने को मिला था कि सुमद्री कछुआ अपने पीठे पर विशाल पर्वत लादे तैर सकता है , तो उस ने चिंट्टियों का एक झुंड बुला कर उसे जायज करने का निश्चय किया ।

चिंट्टयों का यह दल पहाड़ों और मैदानों को पार करते हुए लम्बा रास्ता तय कर समुद्र -तट पहुंचा । वहां महीने का समय गुजरने के बाद भी वह समुद्री कछुआ समुद्र में से बाहर नहीं निकला । चिंट्टियों को बड़ी परेशानी हुई और उन्हों ने जब घर लौटने को कहा , तो समुद्र में तेज हवा चलने लगी तथा उफनती लहरें मारने लगी , जिस से विशाल जमीन भी कंप उठी । चिंट्टियों ने ऊंची आवाज दी , कछुआ बाहर आया है ,कछुआ बाहर आया है । समुद्र कई दिनों तक भीषण लहरें मारती रहा , फिर हवा शांत हो गई और लहरें थम गई । जमीर की कंपकंपा भी बन्द पड़ी । इस क्षण में समुद्री तिरक्षि पर एक विशाल पहाड़ तैरते हुए दिखाई पड़ा , यह गगनचुंबी पहाड़ एक दिव्य कछुआ के सिर पर लदा था , वह धीरे धीरे नजदीक आर रहा था , इस अनोखा दृश्य को देख कर चिंट्टियों को बड़ा आश्चर्य हुआ , सबों के मुंह से वाहवाही निकल पड़ी । किन्तु पास खड़ी उस लाल रंग की चिंट्टी ने बड़ी उपेक्षा के अंदाज में कहा , जिस तरह समुद्री कछुआ अपने सिर पर पहाड़ लादे तैर सकता है , उसी तरह हम चिंट्टी भी अपने सिर पर चावल का दाल उ

उठाए चल सकती हैं । उस का क्या बड़ापन है . वह पहाड़ लादे समुद्र में तैरता है , हम दाल उठाए जमीनी टीले पर चढ़ सकती हैं , वह समुद्र के अन्दर घूस सकता है , तो हम अपने गुफा में प्रवेश कर सकती हैं । मेरी नजर में दोनों कामों में कोई अन्तर नहीं है , बस दिखावा अलग है । उस की ही तरह की हम में भी ऊंच्ची क्षमता है , तो हम काहि कि समुद्री कछुआ का कला प्रदर्शन देखने आए हों , तो चलो , हम वापस जाए ।

                                                                           

 यह नीति कथा हमें बताती है कि दूसरे की खुबियों का सम्मान करना एक अच्छा नैतिक व्यवहार है . जबकि दूसरों की खुबियों को कम आंकते हुए अपना बड़ापन बघारने से किसी को लाभ नहीं मिल सकता , विनय से दूसरों से सीखने से कोई खुद प्रगति पाएंगा ।

                                                               सूखे कीचड़ में छपछपाती मछली

दो हजार वर्ष पहले की बात थी , प्रसिद्ध चीनी दार्शनिक च्वांग ची बहुत गरीब था , एक बार घर में दो वक्त का अनाज भी नहीं रहा । विवश हो कर उसे जस संसाधन का मामला देखने वाले अधिकारी से कुछ खाद्यान्न उधार लेने जाना पड़ा । वह अधिकारी जहां नम्बर एक का कंजूस था , वहां बड़ा चालाक भी निकला ।उस ने च्वांग ची से कहा, कोई खास बात नहीं , बस मेरे द्वरा जन साधारण से कर वसूल किये जाने तक इंतजार करना है , तभी मैं आप को तीन सौ ओंस सोना उधार दूंगा । आप परेशान न हों ।

अधिकारी की बातों पर च्वांग ची को बड़ा गुस्सा आया और उस के मुख का रंग भी बदल गया । वह बोला , जब मैं आप के यहां आ रहा था , तो रास्ते में कहीं मदद मांगने की आवाज सुनाई पड़ी , काफी ढूंढ निकालने पर पाया कि गाड़ी की पहियों के दबाव से सड़क पर किचड़ का एक गढा बना था , उस में एक बड़ी मछली पड़ी दिखी , जो पानी के अभाव के कारण बड़े मुश्किल से हांफ रही थी ।

मैं ने उस से पूछा , मछली जी , तुम क्या पुकार रही हो .

मछली ने कहा , मैं पूर्वी समुद्र के देवता का पुत्र हूं , दुर्भाग्य से आज मैं इस गढ़े में गिर पड़ा , यदि आप मुझे एक दो बाल्टी का शीतल पानी दे दें , तो मेरी जान बच सकेगी ।

मैं ने कहा , घबराने की कोई जरूरत नहीं है , अभी मैं देश के दक्षिण क्षेत्र में वुई और य्ये राज्य वंशों के राजाओं से मिलने जा रहा हूं , वहां जा कर मैं राजाओं से देश के पश्चिमी क्षेत्र में बहती सी-च्यांग नदी का पानी यहां ले आने को कहूंगा , तब तुम्हारी जान बच जाएगी ।

मछली ने मेरी बात पर क्रोध हो कर कहा , इस समय जान बचाने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है , और मेरी जिन्दगी जीवन मरण की नाजुक घड़ी से गुजर रही है , आप एक बाल्टी का शीतल पानी दे , मेरी जान बचायी जाएगी , लेकिन आप तो वही बेमतलब की अनाप शनाप बातें कर रहे हैं , आप अपनी बकवास बन्द करें , चाहे तो आप मुझे सूखी मछली बेचने वाले बाजार में छोड़ने जाए ।

यह चीन में काफी लोकप्रिय प्राचीन नीति कथा है , इस से हमें यह शिक्षा मिल सकती है , किसी को मदद देने के लिए ठोस और सार्थक काम करना चाहिए , अनर्थ बात करने से जहां मदद मांगने वाले को जरा भी लाभ नहीं मिलता है , वहां बात टालने वाले की बदनीयती भी जाहिर होती है । चीनी कहावत है कि किसी एक की जान बचाना सात मंजिला स्तूप बनाने का समान कल्याण माना जाता है ।