चीनी तिब्बती संस्कृति संरक्षण व विकास संघ और स्छ्वान प्रांत के कानची तिब्बती स्वायत्त प्रिफैक्चर सरकार के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राजा केसर से जुड़े हुए एक हज़ार से अधिक थांगखा चित्रों की प्रदर्शनी राजधानी पेइचिंग में आयोजित हो रही है।"वर्ष 2008 पेइचिंग ऑलंपिक सांस्कृतिक उत्सव"के एक अंक के रूप में मौजूदा प्रदर्शनी पर विभिन्न जगतों का ध्यान केंद्रित हुआ है।
राजा केसर से जुड़े हुए थांगखा चित्रों की कुल संख्या 1288 है। स्छ्वान प्रांत के कानची तिब्बती प्रिफैक्चर के एक सौ से ज्यादा तिब्बती ललित कलाकारों ने दस वर्ष से अधिक समय तक लगातार लग कर इन्हें पूरा किया है, जिन में विशेष थांगखा कला का प्रयोग कर तिब्बती जाति के श्रेष्ठ लोक साहित्य महाकाव्य《राजा केसर》को पूरी तरह प्रत्यक्ष तौर पर प्रदर्शित किया गया है। मौजूदा प्रदर्शनी में कुल 260 चित्र दर्शकों के सामने हैं, जो हज़ार से ज्यादा थांगखा चित्रों से चुने गए श्रेष्ठ चित्र हैं । स्छ्वान प्रांत के राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन के उपाध्यक्ष श्री छङ क्वांगची ने जानकारी देते हुए कहा :
"हज़ारों वर्षों से केसर तिब्बती जाति के दिलों में वीर के रूप में जीवित है । केसर संस्कृति का चीन में और विश्व में व्यापक तौर पर प्रसार किया जा रहा है । महाकाव्य《राजा केसर》को विश्व में सब से लम्बे महाकाव्य के रूप में चीन सरकार ने प्रथम राष्ट्र स्तरीय गैरभौतिक सांस्कृतिक अवशेषों की नामसूचि में शामिल किया है। राजा केसर से जुड़े हुए एक हज़ार से अधिक थांगखा चित्र केसर की कहानी के आधार पर चीन में बनाए गए सब से ज्यादा थांगखा चित्र हैं । यह एक सृजनात्मक कार्य है, जिस से श्रेष्ठ चीनी परम्परागत संस्कृति के प्रसार के लिए लाभ मिलेगा ।《राजा केसर से जुड़े हुए एक हज़ार से अधिक थांगखा चित्रों》 को चीनी राष्ट्रीय सांस्कृतिक अवशेष ब्यूरो ने चीनी राष्ट्र की मूल्यवान कलात्मक वस्तु माना है और इसे पेइचिंग ऑलंपिक सांस्कृतिक उत्सव की महत्वपूर्ण परियोजना में शामिल किया गया है ।"
राजा केसर तिब्बती जाति का एक महत्वपूर्ण महाकाव्य है , जिस में पौराणिक कथा, लोक काव्य तथा लोककथा आदि विषय शामिल हैं । इस महाकाव्य में प्राचीन तिब्बत में दसियों स्थानीय राज्यों के बीच जटिल संबंधों व घमासान लड़ाइयों का वर्णन किया गया है, जिस से प्राचीन तिब्बती जाति का जीवन उजागर हुआ है । इस महाकाव्य से तिब्बती जाति के शांतिपूर्ण व सुखमय जीवन खोज करने की अभिलाषा तथा तिब्बती और हान जाति व अन्य विभिन्न जातियों के बीच घनिष्ठ संपर्क भी जाहिर हुआ है ।
महाकाव्य《राजा केसर》प्राचीन समय में तिब्बती लोक संस्कृति की सब से उच्च स्तरीय कामयाबी मानी जाती है । अब तक 150 किस्म की प्रतियां सुरक्षित रखी हुई हैं । सारे महाकाव्य में एक करोड़ पचास लाख अक्षर हैं । यह महाकाव्य प्राचीन यूनान के महाकाव्य《इलियड》और भारत के《महाभारत》से दस गुना से भी ज्यादा लम्बा है । आज"वर्तमान विश्व में एकमात्र सब से लम्बा जीवित महाकाव्य"माने जाने वाला महाकाव्य राजा केसर बोलने व गाने, तिब्बती ऑपेरा तथा चित्र के रूप में तिब्बती और मंगोल जाति बहुल क्षेत्रों में प्रसिद्ध है ।
चीनी तिब्बती संस्कृति संरक्षण व विकास संघ के महासचिव श्री चू वेईछुन ने जानकारी देते हुए कहा:
"हज़ारों वर्षों में तिब्बती जाति गंभीर प्राकृतिक पर्यावरण में सृजन करती रही है । तिब्बती जाति ने चीन में अन्य विभिन्न जातियों की संस्कृतियों तथा विदेशी संस्कृतियों के बीच आदान-प्रदान करने तथा एक दूसरे से सीखने के दौरान अपनी विशेष जातीय संस्कृति रची है, जिसे चीनी संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है और उस ने चीनी सभ्यता व विश्व सभ्यता के लिए महत्वपूर्ण योगदान किया है। महाकाव्य《राजा केसर》तिब्बती जाति द्वारा रचा गया महान महाकाव्य है । यह तिब्बती परम्परागत संस्कृति का श्रेष्ठ प्रतिनिधि है, और चीनी राष्ट्र की संस्कृति का मूल्यवान अंग भी है ।"
इस लेख का दूसरा भाग अगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े। (श्याओ थांग)