2008-08-08 15:01:28

स्वेइ और थाङ के काल की संस्कृति

स्वेइ-थाङ काल में बौद्धधर्म ने अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त कर ली थी। लेकिन थाङ राजवंश के अन्तिम काल में बौद्ध-विरोधी आन्दोलन का उदय हुआ। बौद्ध-विरोधी नेताओं में हान य्वी और फू ई प्रमुख थे। इस काल के ऐसे विचारकों में, जिनका झुकाव भौतिकवाद की ओर था, ल्यू चुङय्वान (773-819) और ल्यू य्वीशी (772-842) के नाम उल्लेखनीय हैं। इन दोनों ने प्रकृति और मनुष्य के सम्बन्धों को भौतिकवादी दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया।

थाङ काल का साहित्य विकास के एक नए उच्च शिखर पर पहुंच गया था। थाङ काव्य उस काल के चीनी समाज का दर्पण है। वह विश्व-साहित्य की एक मूल्यवान निधि भी है। उस काल में लिखि गई कविताओं में से लगभग 50,000 आज भी उपलब्ध हैं। इनकी रचना 2,200 से अधिक कवियों द्वारा की गई थी, जिन में ली पाए, तू फू और पाए च्वीई नामक सुप्रसिद्ध कवित्रय उल्लेखनीय हैं।

ली पाए (701-862) के काव्य में हमें कल्पना की उन्मुक्त उड़ान देखने को मिलती है। उन्होंने अपनी कविताओं में मातृभूमि के अनुपम सौन्दर्य का ओजपूर्ण गुणगान किया है। वे काव्य में स्वच्छंदतावाद के सिद्धहस्त चितेरे थे।

सम्राट श्वेनचुङ के शासनकाल के उत्तरार्ध के कवि तू फू (712-770) ने अपने जीवनकाल में थाङ राजवंश को समृद्धि और वैभव से ह्रास और पराभन में संक्रमण करते हुए देखा था। अतः उनकी कविता में उस काल के सामाजिक अन्तरविरोधों और जनसाधारण के दुखों की अभिव्यक्ति हुई है। वे काव्य में यथार्थवादी चित्रण प्रतिभा के धनी थे तथा यथार्थवादी कविता के विकास पर उन का गहरा असर पड़ा था। चीनी साहित्य के इतिहास में वे उतने ही प्रसिद्ध हैं जितने कि लि पाए।

पाए च्वीई (772-846) चीन के साहित्य-क्षितिज पर उस काल में उदित हुए जबकि थाङ राजवंश का अपकर्ष हो चुका था। उनकी कविताओं पर अपने पूर्वकालीन कवि तू फू का गहरा प्रभाव दिखाई देता है तथा वे संत्रस्त जनता के प्रति गहरी संवेदना व सहानुभूति से परिपूर्ण हैं। उन्होंने अपनी अनेक कविताओं में चीनी समाज के कालिमामय पक्ष को भी चित्रित किया है। सरल-सुबोध भाषा में लिखित किन्तु गहन भाव लिए उनकी कविताएं हमेशा से लोकप्रिय रही हैं।

थाङ राजवंश अपने गद्य साहित्य के लिए भी उतना ही मशहर है। वेइ-चिन काल से लेकर प्रारम्भिक थाङ काल तक पद्यमय गद्य सर्वाधिक लोकप्रिय रहा, जिस में वाक्यांशों और शब्दों के समानान्तर प्रयोग के साथ-साथ स्वरारोह और तुकान्तता में उचित समन्वय भी अपेक्षित होता था। यह देखने में तो परिष्कुत व सुन्दर था, किन्तु विषयवस्तु की दृष्टि से सामान्यतया निस्सार । अतः अधिकांश विद्वान और साहित्यिक इस से संतुष्ट नहीं थे और उन्होंने चओ, छिन व हान राजवंश काल में प्रचलित गद्यलेखन की पुरानी शैली को पुनः अपनाने पर जोर दिया। थाङ राजवंश के मध्यकाल के बाद, गद्यरचना की परंपरागत शैली को पुनर्स्थापित करने का आन्दोलन तेजी से विकसित हुआ। इस आन्दोलन में हान य्वी (768-824) औक ल्यू चुङय्वान का योगदान सबसे अधिक था तथा उन के ही समर्थन से प्राचीन शैली धीरे-धीरे गद्य की सर्वाधिक लोकप्रिय विधा बन गई।

थाङ काल में इतिहास-लेखन ने प्रगति की । सम्राट थाएचुङ के आदेश पर एक इतिहास संस्थान कायम किया गया तथा उसे थाङ राजवंश और उसके पूर्ववर्ती राजवंशों के इतिहास लेखन व संकलन का कार्य सौंपा गया। फलस्वरूप, "थाङ राजवंश के इतिहास" के साथ-साथ "चिन राजवंश का इतिहास", "ल्याङ राजवंश का इतिहास","छन राजवंश का इतिहास", "उत्तरी छी राजवंश का इतिहास", "चओ राजवंश का इतिहास"और "स्वेइ राजवंश का इतिहास"नामक ग्रन्थों की रचना हुई। इस के अलावा , इतिहास-लेखन का कार्य राजकीय संरक्षण या सहायता के बिना व्यक्तिगत रूप से भी किया गया। "दक्षिणी राजवंशों का इतिहास"और "उत्तरी राजवंशों का इतिहास"जैसे ग्रन्थ इसी तरह के प्रयासों का फल थे।

जहां तक इतिहास की समीक्षा का प्रश्न था, ल्यू चिची द्वारा लिखत पुस्तक "इतिहास- लेखन के बारे में "एक श्रेष्ठ कृति साबित हुई। तू यओ की "रीतियों के बारे में"शीर्षक ऐतिहासिक पुस्तक थाङ काल की राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्थाओं से संबंधित है।