1971 के मई माह की एक सुबह परिवार की मालिकन जोन नदी के किनारे पर खड़ी थी , एकाएक उस ने देखा कि नाव के पास एक अनोखा जानवर खड़ा है , उस का चपटा -पतला चोंच आगे की ओर बढ़ा हुआ है और दो गोल गोल छोटी आंखें हैं तथा रूक रूक कर तीक्ष्ण आवाज भी निकलती है । मालिकन सहम हो गई और उस ने बेतशाह दौड़ कर घर वापस अपने पति और बेटी को यह बात बतायी । उस के पति ने कहाः घबराना नहीं , यह जरूर कोई छोटा डॉलफिन होगी ।
मालिकन डॉलफिन को खिलाने के लिए कुछ मछलियां ले भी गई , उस छोटा डॉलफिन ने बड़े चाव से मछली खाई , उस में जरा भय भी नहीं दिखा । मालिकन जोन ने उस का सुनम्दर नाम रखा था --टुली । जोन की दोनों बेटियों ने बड़ी खुशी से तालियां बजाते हुए पुकाराः नमस्ते टुली , टुली नमस्ते । टुली भी प्रसन्न सा पानी में हिल डोल रही थी । इसी के बाद टुली नाम का यह डॉलफिन जोन परिवार का एक सदस्य बन गया , परिवार के सभी लोग उसे मुन्नी कह कर पुकारते थे ।
जोन उतनी टुली को प्यार करती थी , जितनी अपनी संतान को । वह टुली के साथ बातें किया करती थी ,ऐसे अवसर पर टुली सिर को पानी से बाहर निकाले एकाग्रता से बातें सुनती थी । उस की आंखों से चंचल रोशनी निकलती थी , जैसा कि वह भी बोलने के आतूर हो ।
जोन ने घाट के निकट डॉलफिन के लिए घर बनाया । टुली उस का द्वार खुद खोल बन्द कर सकती थी । कभी कभी वह बाहर कहीं खेलने भी जाती थी । फिर जल्दी ही लौट आती थी । वह इस नए स्थान को अपना घर समझ चुकी थी ।
टुली और जोन की दो बेटियों में भी बहुत पटती थी । वह अकसर दोनों बहनों के साथ मिल कर जल में क्रिड़ा करती थी । कभी उन्हें अपनी पीठ पर लादे नदी में तेज गति से तैरती थी ।
परिवार जनों को मालूम नहीं था कि यह डॉलफिन कहां से आया है । असल में वह एक समुद्री जीव अनुसंधान केन्द्र का सदस्य था , लेकिन वह इतना चंचल और चतुर था कि ट्रेनिन देने वाले के आदेश का पालन नहीं करती थी , सो उसे पुनः समुद्र में छोड़ा गया ।पर वह मनुष्य के साथ रहने के आदि हो गई , फिर समुद्र में अकेले रहना पसंद नहीं करती थी । अंतः वह नदी में तैरते जोन के घर आई और यहां बस गई।
टुली का नाम मशहूर हो गया , एक फ्रांसीसी खोज दल विशेष तौर पर उसे देखने आया । चन्द ही दिनों में वह खोज दल के सदस्यों से भी मिल घुल हो गई । रोज सुबह वह समय पर दल के गोताखोरियों से जा मिलती थी , कभी उन के साथ रबड़ का नाव छीनने का खेल भी करती थी । कभी चोंच से रबड़ के नाव को धक्का देते हुए तेजी से तैरती थी । उस का जी चाहता था कि कोई उस के साथ पानी के अन्दर क्रिया करे । जब गोताखोरी पानी में डुबकी ले रहे थे , तो वह फटाफट उन के पास तैर कर पहुंचती और उन्हें खींच कर बाहर निकालती थी , मानो उसे भय हो कि कहीं गोताखोरी पानी में डूब कर मरने तो न जाए ।
1972 के जून में जोन परिवार टुली को साथ लिए यात्रा करने निकला , लौटते वक्त वे रबड़ के नाव पर सवार समुद्र में यात्रा कर रहे थे , टुली नाव के आगे पीछे तैरती चलती थी । रास्ते में किसी डॉतफिन ट्रेनिन दल से मुलाकात हुई । टुली अपने नाव से अलग हो कर अन्य डॉलफिनों के साथ मिल कर खेली । कुछ समय बाद वह फिर नाव के पास लौट आई , मानो उसे पता था कि घर लौटने के रास्ते में किसी खेल में मग्न होना गलत है ।
बाद में जोन ने टुली को डॉलफिन पालन झील में भेजा , वहां हर तरह की सुविधा मिलती थी , फिर भी वह हमेशा उदास रही । उसे घर की याद थी । घर वालों की याद ने उसे इतना सताया कि वह बहुत दुबली पतली हो गई । जोन भी अपनी मुन्नी की याद करती थी , वह उसे फिर घर लायी और उसे घर के पास नदी में छोड़ा , तभी से टुली पुनः पहले की तरह जोन परिवार के साथ घुल मिल कर रहने लगी ।