2008-07-24 10:56:49

छंग तेह शहर के मंदिर चीन की हान व तिब्बती जातीय वास्तु शैलियों की ठेठ मिसाल ही है

क्योंकि छिंग राजवंश की सरकार ने विभिन्न अल्पसंख्यक जातियों के विश्वास का सम्मान कर जातीय एकता को प्राथमिकता दे दी है , इसलिये फू निंग मंदिर तिब्बत व मंगोल जैसे विभिन्न क्षेत्रों व छिंग राजवंश की सरकार का धार्मिक व राजनीतिक आदि क्षेत्रों में प्रत्यक्ष सम्पर्क बनाने का प्रमुख अखाड़ा बन गया । साथ ही फू निंग मंदिर ने वास्तु कला की विशेष पहचान बनायी है। श्री वांग ह्वी ने आगे कहा कि फू निंग मंदिर दो भागों में बटा हुआ है , अगला भाग बिल्कुल हान जाति की विशेष वास्तु कला पर आधारित है , जबकि पिछला भाग तिब्बती लामा बौद्ध की विशेष निर्माण शैलियों से युक्त है , यह मंदिर चीन की हान व तिब्बती जातीय वास्तु शैलियों की एक ठेठ मिसाल ही है ।

आज के फू निंग मंदिर में 80 लामा रहते हैं, वे यहां पर हर रोज मंदिर के नियम के अनुसार सूत्र पढ़ते हैं और अन्य विविध विषयों का अध्ययन भी करते हैं , वे अच्छी तरह तिब्बती भाषा , चीनी भाषा और अंग्रेजी भाषा पर महारत हासिल कर चुके हैं । दैनिक जीवन भी अपने जातीय रीति रिवाजों का कड़ाई से पालन किया जाता है ।

प्रिय दोस्तो , आप जानते ही हैं कि हो पेह प्रांत का छंग तेह शहर एक शाही शीतकालीन महल की वजह से देश विदेश में काफी विख्यात है । इस शीतकालीन महल के बगल में स्थित आठ बाहरी मठ भी बहुत चर्चित हैं।

इस पर्यटन क्षेत्र के प्रबधन विभाग के प्रधान श्री वांग ह्वी ने जिस चुनकर दंगे फसाद की चर्चा की है , वह छिंगराजवंश के छ्येन लुंग के 20 व 22 वर्ष यानी सन 1755 व 1757 में डिस्ट्रेस लु ते मंगोल चुनकर काबिले के सरगना दावाछी द्वारा छेड़ा गया विद्रोह ही है । छिंग राजवंश की सरकार ने इस विद्रोह को विफल बनाकर राज्य के एकीकरण व प्रादेशिक अखंडता की रक्षा की है।

क्योंकि छिंग राजवंश की सरकार ने विभिन्न अल्पसंख्यक जातियों के विश्वास का सम्मान कर जातीय एकता को प्राथमिकता दे दी है , इसलिये फू निंग मंदिर तिब्बत व मंगोल जैसे विभिन्न क्षेत्रों व छिंग राजवंश की सरकार का धार्मिक व राजनीतिक आदि क्षेत्रों में प्रत्यक्ष सम्पर्क बनाने का प्रमुख अखाड़ा बन गया । साथ ही फू निंग मंदिर ने वास्तु कला की विशेष पहचान बनायी है। श्री वांग ह्वी ने आगे कहा कि फू निंग मंदिर दो भागों में बटा हुआ है , अगला भाग बिल्कुल हान जाति की विशेष वास्तु कला पर आधारित है , जबकि पिछला भाग तिब्बती लामा बौद्ध की विशेष निर्माण शैलियों से युक्त है , यह मंदिर चीन की हान व तिब्बती जातीय वास्तु शैलियों की एक ठेठ मिसाल ही है ।

आज के फू निंग मंदिर में 80 लामा रहते हैं, वे यहां पर हर रोज मंदिर के नियम के अनुसार सूत्र पढ़ते हैं और अन्य विविध विषयों का अध्ययन भी करते हैं , वे अच्छी तरह तिब्बती भाषा , चीनी भाषा और अंग्रेजी भाषा पर महारत हासिल कर चुके हैं । दैनिक जीवन भी अपने जातीय रीति रिवाजों का कड़ाई से पालन किया जाता है ।

39 वर्षिय आचार्य मोरकनटू भिक्षुओं के दैनिक जीवन व पढाई का प्रबंध करते हैं । उन्हों ने कहा कि सरकार हमारा समर्थन करती है। हम स्वतंत्र रूप से बौद्ध धार्मिक गतिविधियां करते हैं । यहां पर खाने पीने व रहने में सुविधाएं उपलब्ध हैं। हालांकि हमारा यह मंदिर तिब्बती बौद्ध धर्म का है , पर हान बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध आचार्य भी हमारे मंदिर में धार्मित गतिविधियां करने भी आते हैं ।

बाहरी आठ मठों में फू निंग मंदिर के अतिरिक्त हान व तिब्बती जातीय एकता व इन दोनों जातीय वास्तु कलाओं की अभिव्यक्ती करने वाले अन्य दो मठ भी उपलब्ध हैं और वे हैं फूटोचुंगछंग मठ और शुमिफूशो मठ। बारही आठ मठ प्रबंधन विभाग के कर्मचारी ली रान ने इन दोनों मंदिरों के नामों में गर्भित गहरे महत्व को समझाते हुए कहा कि फूटोचुंछंग का अर्थ ल्हासा के पोलाता महल का चीनी अनुदित नाम है , यह मठ सन 1771 में स्थापित हुआ , वह विशेष तौर पर दलाई लामा के लिसे लिये निर्मित हुआ है , उस की वास्तु शैली ल्हासा पोताला महल की वास्तु शैली पर आधारित है । जबकि शुमिफूशो चाशलुंनबु मठ का चीनी अनुदित नाम ही है , वह तिब्बत के शिकाजे के चाशलुनबु मठ की वास्तु शैली के आधार पर निर्मित हुआ है , यह शाही मंदिर राजा छ्येन लुंग ने विशेष तौर पर पचन अर्दनी के लिये स्थापित किया था ।

फूटोचुंछंग मठ राजा छ्येन लुंग ने तिब्बती धार्मिक नेता दलाई के लिये निर्मित किया , हालांकि दलाई लामा रहने के लिये यहां नहीं आये , पर यह मंदिर फिर भी चीनी राष्ट्रीय एकता के इतिहास में एक अन्य महत्वपूर्ण घटना का साक्षी है । कहा जाता है कि राजा छ्येन लुंग 36 वर्ष यानी सन 1771 में वोल्गा नदी के नीचले घाटी में स्थानांतरित चीनी मंगोल जाति के टोरगुट काबिला शाही रूस में अत्याचार व शोषण पर बर्दाश्त न कर बड़ी कठोरता के साथ लम्बे अभियान करके फिर मातृभूमि के गोद में वापस लौट आया ।

शुमिफूशो मठ छिंग राजा छ्येनलुंग ने विशेष तौर पर तिब्बत के अन्य एक नेता पंचन अर्दनी के लिये निर्मित किया है , तत्काल में पचन अर्दनी एक साल से अधिक समय में करीब दस हजार किलोमीटर का रास्ता तय कर इसी मठ में ठहरे , यह चीनी हान व तिब्बत जातीय एकता के इतिहास में एक कमाल की बात ही है।