गणना किये गये 7,000 लोग, जो अठारह सर्ष की आयु से अधिक के थे, में एक्कीस प्रतिशत ने यह स्वीकार किया की एक न एक वक्त वे मानसिक बीमारियों के शिकार बने हैं और सतारह प्रतिशत लोगों ने यह कहा की वे वर्तमान में मानसिक अस्वास्थ्यता से पीड़ित है।
आज चीन में सभी प्रकार के मानसिक रोगों में बढ़ोत्तरी हो रही है। विद्यार्थि खास करके ऐसे मानसिक रोगों का और तनावों का शिकार बन रहे हैं। कई सारे युवाओं को खुल कर अपने मानसिक तनावों के बारे में अपने माता-पिता से बातचीत करना एक बड़ी समस्या का रुप धारण कर ली है। साथ ही माता-पिताओं का अपने बच्चों से बढ़ते उम्मीदों के वजह से बच्चों में मानसिक असुरक्षा और नकामयाबी का डर सदा के लिए उनके दिलों में छुपा हुआ होता है। ऐसे में स्वभाविक है की आज की युवाएँ मानसिक बिमारियों के चपेट में आते हैं।
आज वक्त आ गया है की हम युवाओं और अन्य बजुर्ग लोग जो ऐसे बीमारियों का शिकार हैं, के समस्या को सुलझाने के लिए विशेष सेवाओं के बारे में ध्यान दे और अनुकूल सेवाओं और माहौल का इंतजाम करें।
आज कई विकासशील देशों में सर्जरी के पूर्व और पशचात्, मानसिक रोगियों को कौन्सिलिंग दिया जाता है, खास कर उनको जो जीवन-लेवा खतरनाक बीमारियों के शिकार हैं।ऐसे मौकों पर देखा गिया है की कौन्सिलिंग एक अहम भूमिका निभाता है।
खेद की बात यह है की आज चीन में सामाजिक वजहों से कौन्सिलिंग और उसके फायदे के बारे में लोग उतने जागरुक नहीं है। लोगों का रवैया कौन्सिलिंग के प्रति नकारात्मक है।
हाल में क्लिनिकल साइकोलोजि के क्षेत्र में की गये कई प्रेयक्षण इस बात का प्रमाण है की आम तौर पर मानसिक बीमारियों का हल किया जा सकता है, बशर्ते उनका इलाज सही समय में किया जाय। चीन में आम तौर पर रोगियों के परिवर जन ही समस्या का मुख्य श्रोत बन जाते हैं क्यों की ऐसे परिवारों के साथ लोग घुलना मिलना कम या बिल्कुल बंद कर देते हैं, जिसे संक्षेप में सोशल स्टिग्मा का नाम दिया गया है।
निरक्षरता और अजागरुकता ही ऐसे अंधविशवासों का मुख्य कारण माना जाता है। ऐसे में मानसिक रोगि कई बार एक साधारण या आम रोग से पीड़ित होने पर भी, सही इलाज सही समय पर न मिलने के कारण बाद में अपने रोगों का शिकार बन जाते हैं।
ऐसे में आज जरुरी है की आम लोगों में ऐसे बीमारियों के बारे में जानकारी बढ़ाया जाय और मानसिक रोगों से पीड़ित लोगों को समाज में उचित स्थान दिया जाय।