2008-07-15 10:15:02

तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय का संक्षिप्त इतिहास

दलाई लामा व्यवस्था तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय की व्यवस्था है । दलाई लामा व्यवस्था गेलुग संप्रदाय और तिब्बती बौद्ध धर्म में उस के स्थान तथा तिब्बत समाज में उस के राजनीतिक स्थान से देखी जा सकती है ।

गुरू जोगखापा ने गेलुग संप्रदाय की स्थापना की । 14वीं शताब्दी के अंत से पंद्रहवीं शताब्दी के शुरू में तत्कालीन चीनी राजवंश की केंद्र सरकार और तिब्बत के स्थानीय प्रशासन ने शक्ति ने तिब्बती बौद्ध धर्म का भारी समर्थन किया, जिस से तिब्बती बौद्ध धर्म का बड़ा विकास हुआ। बौद्ध धर्म और राजनीति मिश्रित हो गयी, विभिन्न संप्रदायों के बीच मुठभेड़ दिन ब दिन गंभीर होती गई । ऐसी स्थिति में गुरू जोंगखापा को लगा कि सुधार की आवश्यकता है । उन्होंने"संन्यास लेना","बौद्ध सिद्धांतों का पालन करना"और"भिक्षुओं के लिए विवाह निषेध, शराब न पीना और हत्या न करना"आदि नियम बनाए । इस के अलावा उन्होंने मठों की संगठनात्मक व्यवस्था तथा भिक्षुओं की सूत्र सीखने की प्रणाली भी बनायी । इस तरह गुरू जोंगखापा ने एक नए संप्रदाय यानि गेलुग संप्रदाय की स्थापना की । उन के इस प्रकार के सुधारों को प्रशासक और ईमानदार भुक्षुओं की प्रशंसा व समर्थन प्राप्त हुआ । सुधार सुचारू रूप से चल रहा था और अंत में सफलता प्राप्त हुई । अन्य पुराने संप्रदायों से फ़र्क करने के लिए गुरू जोंगखापा और उन के शिष्य पीले रंग का टोपी पहनते थे, इस तरह गेलुग संप्रदाय को पीला संप्रदाय भी कहा जाता है ।

प्रशासकों के समर्थन में गुरू जोंगखापा ने कानतान मठ की स्थापना की । उन के शिष्यों ने क्रमशः जाइबान मठ और सेला मठ का निर्माण किया था । इन तीन मठों के स्थापना के बाद दूसरे स्थलों के मठों के अनेक भिक्षुओं ने क्रमशः गेलुग संप्रदाय में भाग लिया । उन्होंने पुराने मठों की मरम्मत की और नए मठों का निर्माण किया । इस तरह गेलुग संप्रदाय के मठ बड़ी तादाद में सामने आए और मठों में भिक्षुओं की संख्या भी दिन व दिन बढ़ती गई । गेलुग संप्रदाय तिब्बत में शक्तिशाली हो गया।

गेलुग संप्रदाय जीवित बौद्ध के अवतार वाली व्यवस्था अपनाता है। तिब्बती बौद्ध धर्म में गेग्यु संप्रदाय ने सब से पहले जीवित बुद्ध के अवतार वाली व्यवस्था लागू की थी, गेलुग संप्रदाय से गेग्यु संप्रदाय 250 वर्ष पुराना है । लेकिन गेलुग संप्रदाय ने जीवित बुद्ध के अवतार वाली व्यवस्था का और विकास किया । गेलुग संप्रदाय के बड़े व छोटे मठों में इस प्रकार की व्यवस्था लागू है । दलाई लामा और पंचन लामा इस संप्रदाय में सब से बड़े अवतार वाली व्यवस्थाएं हैं । इस के साथ ही गेग्यु संप्रदाय और निमा संप्रदाय में भी अनेक प्रकार के जीवित बुद्ध की अवतार व्यवस्था स्थापित हुई है। ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार छिंग राजवंश में केंद्र सरकार द्वारा निश्चित किए गए तिब्बती बौद्ध धर्म के बड़े जीवित बुद्धों की संख्या 160 से ज्यादा थी । छिंग राजवंश के शाह छ्यानलुंग ने तिब्बती बौद्ध धर्म के दलाई, पंचन और कर्मपा आदि जीवित बुद्ध अवतार से जुड़ी व्यवस्थाओं को लेकर स्पष्ट निर्धारण किया, जिस से धार्मिक व्यवस्था बनी और पीढी दर पीढ़ी लागू की गई ।

तिबब्ती बौद्ध धर्म के मठ

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में तिब्बती बौद्ध धर्म के मठ जगह जगह देखने को मिलते हैं । आंकड़ों के अनुसार आज तिब्बत में कुल 1700 से ज्यादा मठ सुरक्षित हैं । विभिन्न स्थानों व तिब्बती बौद्ध धर्म की शाखाओं के भिन्न-भिन्न होने के कारण मठों की शैली भी भिन्न-भिन्न है । लेकिन तिब्बती बौद्ध धर्म के मठों की आम शैली मिलती जुलती है ।

तिब्बती बौद्ध धर्म के मठ बहुत आलीशान है । इस का महत्वपूर्ण कारण है मठों के निर्माण स्थल का चुनाव । तिब्बत के अधिकांश मठ पहाड़ के पास या पहाड़ी ढलान पर निर्मित किये गये हैं । पहाड़ के ऊंचे होने से मठ के निर्माण भी ऊंचे होते हैं और ढ़लान पर निर्मित मठ ढालवां होता है । ल्हासा की पोताला महल पहाड़ की तलहटी से चोटी पर ऊर्ध्वगामी होता है , इस की कुल तेरह मंजिलें हैं , जो दूर से देखने में बहुत ऊंचा और आलीशान दिखता है ।

दूसरा कारण है मठों का पैमाना बहुत बड़ा । जिन में सूत्र भवन, बुद्ध मूर्ति भवन, जीवित बुद्ध के भवन और आम भिक्षुओं के आवास आदि शामिल हैं । मसलन, तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा स्थित द्रेपुंग मठ का क्षेत्रफल 2 लाख 80 हज़ार वर्गमीटर है । यहां तक कि कुछ तिब्बती बौद्ध धर्म के मठ पूरे एक पर्वत पर निर्मित है, जो असाधारण विशाल है और दूर से देखा जाए, तो एक बड़ा शहर लगता है । दसियों किलोमीटर दूर भी वह साफ साफ दिखाई देता है । इतना विशाल मठ बहुत आलीशान लगता है ।

तिब्बती बौद्ध धर्म के मठ बहुत शानदार भी है । मठ की छतों पर विशेष कर मुख्य भवनों की छतों पर स्वर्ण बुर्ज बनाये गये है , जो सूर्य की किरणों में बहुत चमकदार है और शानदार लगता है । तिब्बती मठ के द्वार पर सुन्दर सूत्र चक्र सुसज्जित होते हैं, जो आम तौर पर सोने, रजत और कांस्य से बने हुए हैं । तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी के विचार में सूत्र चक्र घूमाना उपासने का कारगर तरीका है ।