2008-07-11 10:42:16

थाङ राजवंश का प्रारम्भिक काल

थाङ शासकों ने करों से होने वाली आय को सुनिश्चित करने के लिए भूमि के समान वितरण की व्यवस्था और त्निपक्षीय कर व्यवस्था लागू की। भूमि के समान वितरण की व्यवस्था के अन्तर्गत 18 वर्ष से अधिक की अवस्था वाले प्रत्येक किसान को सरकार से 100 मू भूमि मिलती थी, जिस में से 20 मू भूमि (जिसे " स्थाई खेतों " का नाम दिया गया था) बेची या खरीदी जा सकती थी अथवा मौरूसी जमीन के रूप में संतानों को दी जा सकती थी, तथा शेष 80 मू वृद्धावस्था में काम न कर सकने की स्थिति में अथवा मृत्यु हो जाने पर सरकार को वापस करनी पड़ती थी। परिवार की विधवा स्त्नी को 30 मू भूमि मिलती थी और यदि उसका एक अलग परिवार होता था, तो ऐसी विधवा स्त्नी को 50 मू भूमि तक दी जा सकती थी। स्त्नियों में केवल विधवाओं को ही भूमि मिलती थी।

त्निपक्षीय कर व्यवस्था के अन्तर्गत प्रत्येक वयस्क पुरुष को अनिवार्यतः लगान के तौर पर 2 तान अनाज और नजराने के तौर पर 20 फुट रेशम तथा 3 औंस कच्चा रेशम हर साल सरकार को देना पड़ता था। इसके अलावा उसे हर साल 20 दिन की सरकारी बेगार भी करनी होता थी। जो व्यक्ति किसी कारणवश बेगार नहीं कर पाता था उसे अपनी अनुपस्थिति के बदले 3 फुट रेशम प्रति दिन के हिसाब से सरकार को देना पड़ता था।

जहां तक प्रशासकीय संगठनों का संबंध था, थाङ राजवंश ने थोड़े-बहुत परिवर्तनों के साथ स्वेइ राजवंश की व्यवस्था को अपनाया। स्थानीय प्रशासन में, प्रान्तों व काउन्टियों की दो-स्तरीय व्यवस्था कायम रही, किन्तु सीमावर्ती क्षेत्र तथा सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र इस के अपवाद थे, जहां का प्रशासन क्षेत्रीय गैरिजन कमानों के हाथ में था। गैरिजन कमान का सर्वाच्च अधिकारी अपने क्षेत्र के नागरिक व फौजी मामलों के लिए जिम्मेदार होता था। सम्राट थाएचुङ के शासनकाल में देश को स्थलाकृति के अनुसार 10 क्षेत्रों में विभाजित किया गया था और सम्राट श्वेनचुङ के शासनकाल में इस विभाजन का विस्तार कर 15 क्षेत्र बना दिए गए। प्रत्येक क्षेत्र में एक महानिरीक्षक ( इंस्पेक्टर जनरल) होता था, जो प्रान्त व काउन्टी स्तर के अधिकारियों के काम का परिनिरीक्षण करता था।

सम्राट थाएचुङ के शासनकाल में, "थाङ राजवंश की विधि संहिता" का 12 खण्डों में सम्पादन व संकलन किया गया। थाएचुङ के उत्तरवर्ती सम्राट काओचुङ के आदेश से इस संहिता की प्रत्येक धारा की सविस्तार व्याख्या व स्पष्टीकरण किया गया। परिणामस्वरूप, "'थाङ राजवंश की विधि-संहिता' की व्याख्यात्मक टीका" की रचना हुई, जिसके 30 खण्ड थे। इन दोनों ही ग्रन्थों को चीनी कानून के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

थाङ राजवंशकाल में सरकारी अफसरी की परीक्षा को, जिसकी शुरुआत स्वेइ राजवंशकाल में हुई था, और विकसित किया गया। विभिन्न प्रकार की परीक्षाओं की संख्या बढ़ाकर एक दर्जन से अधिक कर दी गई, जिनमें "श्यू छाए","चिन शि","मिङ चिङ" और "मिङ फ़ा"(विधि-विशेषज्ञ) की उपधियों के लिए होने वाली परीक्षाएं भी शामिल थीं। इन उपधियों में "चिन शि"की उपाधि सबसे महत्वपूर्ण व सम्मानित समझी जाती थी। इन परीक्षाओं में देश की राजधानी के महाविद्यलयों से स्नातक होने वाले विद्यार्थी अथवा प्रान्तों व काउन्टियों से आए ऐसे विद्यार्थी भाग लेते थे जिनकी सिफारिश प्रान्तीय अथवा काउन्टी सरकार द्वारा की जाती थी। प्रान्त अथवा काउन्टी के विद्यार्थियों को पहले स्थानीय स्तर की प्रारम्भिक परीक्षा में उत्तीर्ण होना पड़ता था;तभी वे राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा में बैठ सकते थे। राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित परीक्षा में सफल होने वाले परीक्षार्थियों को प्रशासन मंत्रालय द्वारा अधिकारी-पद पर नियुक्त किया जाता था। परीक्षा के जरिए अफसरों का चयन करने की इस व्यवस्था ने थाङ राजवंश की सामाजिक बुनियाद को पुख्ता कर दिया।

सम्राट थाएचुङ के शासनकाल में थाङ सरकार ने इतिहास के सबक को ध्यान में रखते हुए स्वेइ राजवंश के ह्रास व पतन की परिस्थितियों व कारणों का अध्ययन किया और अपने सामन्ती शासन को सुदृढ़ करने के उपाय खोजे। सम्राट थाएचुङ दूसरों की बात बड़े ध्यान से सुनता था और उनकी सलाह का स्वागत करता था। वह अपने मंत्रियों को राजनीतिक समस्याओं पर भिन्न-भिन्न राय प्रकट करने के लिए प्रोत्साहित करता रहता था। इस सबका उद्देश्य यह था कि जब भी कोई नीति लागू की जाए, तो उसके अच्छे से अच्छे नतीजे हासिल किए जा सकें। राजनीतिक दृष्टि से सम्राट थाएचुङ के सफ़ल होने का एक अन्य कारण यह भी था कि वह प्रतिभाशील व्यक्तियों को भर्ती में सरकार, अपेक्षाकृत रूप से, सत्ता के दुरुपयोग व भ्रष्टाचार से मुक्त रही और देश सुदृढ़ बना रहा।

सम्राट थाएचुङ के बाद उसका बेटा ली चि गद्दी पर बैठा और इतिहास में सम्राट काओचुङ के नाम से मशहूर हुआ। किन्तु इसके जीवनकाल में शासनसत्ता उसकी महारानी ऊ चथ्येन ने धीरे-धीरे अपने हाथ में ले ली। 690 में उसने थाङ राजवंश का नाम बदलकर चओ राजवंश कर दिया तथा स्वयं सम्राज्ञी की राजसी उपाधि धारण कर ली। 705 ई. में ऊ चथ्येन की मृत्यु के बाद ही यह राजवंश अपना पहले का नाम थाङ पुनः अपना सका। सम्राज्ञी ऊ चथ्येन के राज्यकाल में थाङ राजवंश की राजनीतिक व्यवस्था, जिसे सम्राट थाएचुङ ने स्थापित किया था, स्वस्थ बनी रही और सामाजिक अर्थ-व्यवस्था की प्रगति जारी रही।

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