चीनी तिब्बतविदों का प्रतिनिधि मंडल जून की 23 से 29 तारीख तक बेल्जियम की सात दिवसीय यात्रा की । यात्रा के दौरान प्रतनिधि मंडल ने क्रमशः युरोपीय संसद, बेल्जियम संघीय संसद, स्थानीय अकादमिक जगत, बेल्जियम में रह रहे चीनी विद्वानों तथा वहां पढ़ने वाले चीनी विद्यार्थियों से मुलाकात की और विभिन्न पक्षों को उन के रूचि वाले तिब्बत से जुड़े सिलसिलेवार सवालों का परिचय दिया । सुनिए इस संदर्भ में एक रिपोर्ट।
मौजूदा बेल्जियम यात्रा करने वाले तिब्बतविद प्रतिनिधि मंडल के कुल छह सदस्य हैं । वे चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी, तिब्बत स्वायत्त प्रदेश, छिंगहाई प्रांत के सामाजिक विज्ञान अकादमी से आए तिब्बती इतिहास, धर्म व अर्थतंत्र का अनुसंधान करने वाले विशेषज्ञ हैं । युरोपीय संसद और बेल्जियम के संबंधित सांसदों से मुलाकात के दौरान प्रतनिधि मंडल ने तिब्बत के इतिहास व वर्तमान स्थिति, आर्थिक व सामाजिक विकास, सांस्कृतिक व धार्मिक संरक्षण, 14 मार्च ल्हासा में हुई तोड़-फोड़, लूटमार व आगजनी हिंसक घटना तथा दलाई लामा गुट की तिब्बती स्वाधीनता कुचेष्टा आदि सवालों पर पश्चिमी देशों की शंकाओं, यहां तक कि उन द्वारा लगाए गए आरोपों का प्रबल स्पष्टीकरण और खंदन भी किया। युरोपीय संसद के चीन संबंधी प्रतिनिधि मंडल के अध्यक्ष, सांसद श्री डिर्क स्टेर्क्स ने मुलाकात के बाद संवाददाता से कहा कि चीनी तिब्बतविदों के साथ हुई मौजूदा संगोष्ठी द्विपक्षीय आवाजाही व पारस्परिक समझ व विश्वास की मज़बूती के लिए बहुत महत्वपूर्ण है । उन्होंने कहा:
"आज मैं ने तिब्बत के समाज के बारे में बहुत सी जानकारी पायी है । मेरा विचार है कि हमें इस प्रकार की वार्ता जारी रखना चाहिए । हमारे बीच भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण व समझ मौजूद हैं, इस तरह हमें ज्यादा विचार विमर्श करना चाहिए । हम न केवल चीनी लोगों के साथ इस प्रकार का विचार विमर्श करते हैं और दूसरे देशों के साथ भी करते हैं । हम और अमरीका के बीच भी मतभेद है । मुझे लगता है कि हमारे और चीनी विद्वानों के बीच मानवाधिकार तथा राजनीतिक प्रचलन के क्षेत्रों में मौजूद मतभेद और ज्यादा है । लेकिन हमें इस प्रकार के विचार विमर्श को बनाए रखना चाहिए ।"
चीन के साथ संसदों के बीच आदान प्रदान की चर्चा में श्री डिर्क स्टेर्क्स ने कहा:
"गत वर्ष हम ने चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की यात्रा की थी । हर वर्ष हम दो बार चीन की यात्रा करते हैं । इस के साथ ही हमारे चीनी समकक्षी लोग भी कभी कभार ब्रुसेल्स और स्ट्रास्बर्ग की यात्रा करते हैं । मेरा विचार है कि हमारे दोनों पक्षों के बीच विचारों का आदान प्रदान करना बहुत जरूरी है । हमें एक दूसरे से सीखना चाहिए । अगर समान सवाल का सामना करना पड़ेगा, तो एक दूसरे को सहायता दे सकते हैं, कम से कम हम सवालों के समाधान के उपायों पर विचार विमर्श कर सकते हैं ।"
बेल्जियम के संघीय संसद के सीनेट की वैदेशिक संबंध समिति के अध्यक्ष सुश्री मार्लीन टेमेर्मान ने तिब्बतविदों के साथ हुई बातचीत में उन्हें परिचित किए गए तिब्बत के इतिहास, भाषा, संस्कृति व शिक्षा आदि क्षेत्रों की स्थिति में बड़ी रूचि दिखायी । उन्होंने कहा कि पहले उन्हें इन के बारे में बहुत कम जानकारी थी । उन का कहना है:
"मुझे बड़ी खुशी हुई कि तिब्बत और तिब्बती अकादमिक जगत का प्रतिनिधि मंडल युरोप आ गया है । क्योंकि सच्चे माइने की वार्ता करने के जरिए पारस्परिक समझ बढ़ जाएगी । कभी-कभार हमें पक्षपाती सूचना प्राप्त होती है । चीन, चीन के तिब्बत और दलाई लामा से संबंधित सूचना प्राप्त होना हमारे लिए लाभदायक है , लेकिन अगादमिक जगतों से संबंधित जानकारी प्राप्त करना और अच्छा होगा ।"
सुश्री मार्लीन टेमेर्मान का विचार है कि युरोपीय लोगों को तिब्बत के बारे में ज्यादा जानकारी दिलाने तथा और वस्तुगत रूप से तिब्बत को समझने देने के लिए वार्तालाप व आदान प्रदान सब से अच्छा उपाय है । उन्होंने कहा:
"मेरा विचार है कि यह उपाय आम नागरिकों और राजनीतिक जगतों के व्यक्तियों के लिए समान महत्वपूर्ण है । हम ने एक दूसरे को और अच्छी तरह समझ लेना शुरू किया है । मुझे लगता है कि खुली वार्ता पारस्परिक समझ को आगे बढ़ाने का अच्छा उपाय है । दोनों पक्षों के बीच पारस्परिक समझ बढ़ानी, विशेष कर असली स्थिति की जानकारी लेनी चाहिए । मेरा सुझाव है कि तिब्बत जाकर खुद देखें ।"
बेल्जियम की यात्रा के दौरान चीनी तिब्बतविदों के प्रतिनिधि मंडल ने बेल्जियम के अकादमिक अनुसंधान क्षेत्र के विशेषज्ञों क विद्वानों के साथ व्यापाक रूप से विचारों का आदान प्रदान किया । उन्होंने नए चीन में तिब्बत के विकास और प्राप्त प्रगति, दलाई लामा के राजनीतिक स्वरूप और तिब्बती आबाद क्षेत्रों की वर्तमान स्थिर स्थिति के बारे में सउदाहरण सूचना व सामग्री प्रदान की । अनेक लोगों ने कहा कि इस प्रकार के प्रत्यक्ष वार्तालाप से उन्हें बड़ा लाभ मिला है। पहले कभी चीन की यात्रा पर नहीं गए पश्चिमी नागरिकों में चीन के प्रति पूर्वाग्रह होने के कारण की चर्चा में बेल्जियम के रॉयल विज्ञान अकादमी के प्रोफैसर श्री चार्लेस विलेमन ने कहा:
" यह गलतफ़हमी है । बेशक यह ग़ल्तफ़हमी है । इस प्रकार की स्थिति न सिर्फ़ चीनियों और युरोपीयों के बीच मौजूद है, बल्कि युरोपीय लोगों के बीच तथा चीनी लोगों के बीच भी मौजूद है । हर क्षेत्र में ग़लतफ़हमी हो सकती है । मुझे बड़ी खुशी हुई है कि चीनी तिब्बतविदों का प्रतिनिधि मंडल गलतफ़हमी को दूर करने के लिए यहां आया है।"
प्रोफैसर श्री चार्लेस विलेमन ने तीन बार चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की यात्रा की थी । वे चीनी भाषा, बौद्ध धर्म और तिब्बत शास्त्र के अनुसंधान के क्षेत्र में एक विशेषज्ञ हैं । उन के विचार में पूर्व और पश्चिम के बीच अनेकों क्षेत्रों में मतभेद और विचारधाराओं की भिन्नता मौजूद है, राजनीतिक और धार्मिक क्षेत्रों में परस्पर संबंध जटिल है । इस तरह अपिरचित वस्तुओं पर अपना निषकर्ष निकालने के वक्त पक्षपाती सूचना पर विश्वास करना तथा अपनी कल्पना पर निर्भर करना हितकारी नहीं है । प्रत्यक्ष संपर्क करना तथ्यों को जानने का अच्छा रास्ता है । श्री चार्लेस विलेमन ने कहा:
" पारस्परिक समझ को आगे बढ़ाने का एकमात्र उपाय आदान प्रदान है । लोग कभी कभी इस प्रकार का कारगर उपाय भूल जाते हैं । एक दूसरे के यहां की यात्रा करने और पारस्परिक आवाजाही के जरिए लोगों का विचार ज्ञानेंद्रिय रूप से सैद्धांतिक रूप में बलद सकता है। लोगों का विचार सैद्धांतिक बनने के बाद सवालों के समाधान का उपाय जरूर मिल सकता है। अगर अपनी भावुकता के आधार पर सवाल का निपटारा करेगा, तो इस का समाधान कभी नहीं किया जा सकता ।"