2008-06-27 14:59:46

मैना की कहानी

एक मैना था , अपने मालिक से प्रशिक्षण पाने के बाद मनुष्य के बोलने की नकल करने लगा । उस ने महज दो तीन वाक्य ही सीखे थे , किन्तु वह रोज मनुष्य से सीखे हुए उन दो तीन वाक्यों की नकल करता नहीं अधाता था । वह इतना घमंडी हो गया , मानो वह सचमुच तीस मार खां हो ।

एक दिन , झींगुर पेड़ पर गाना गा रही थी , मैना उस के गाने से बहुत अखुश था और उस ने झुंकुर से कहा ,

"हेलो हेलो , थोड़ा गाना बन्द करो , तुम केवल एक ही स्वर की अप्रिय आवाज देती हो , फिर जब गाना गाती हो , तो बन्द करने का नाम भी नहीं लेना चाहती हो । देखो , मैं मनुष्य का बोलना जानता हूं । पर मैं तुम्हरी तरह कभी अपनी हुनर पर घमंडी नहीं हूं और अपनी हुनर को दूसरों के सामने नहीं प्रदर्शित करता हूं ।"

झींगुर को मैना की बातों पर गुस्सा नहीं आया , वह मुस्कराते हुए बोला,

"मेना भेया , तुम मनुष्य के बोलने की नकल जानते हो , यह सचमुच एक हुनर है , लेकिन तुम रोज हजारों बार सीखे हुए जिन वाक्यों की नकल करते रहते हो , असल में इस का कुछ भी मतलब नहीं है , वह निरर्थक है । मैं मनुष्य के बोलने की नकल नहीं जानती हूं , मेरी आवाज इतनी सुरीली भी नहीं है , लेकिन वह मेरी अपनी आवाज है , मैं अपनी आवाज से अपना विचार प्रकट कर सकती हूं । क्या तुम नकली बोलों से अपना मतलब बता सकते हो।"

इस अकाट्य तर्क पर मैना का मुख लाल पड़ गया , उस से कुछ बोलना नहीं बनता , उस से अपने सिर को अपने पंखों के नीचे डाल कर अपना मुख नहीं दिखाना चाहा । तभी से मेना ने अपने मालिक से बोलने की नकल करना छोड़ दिया ।

इस नीति कथा की शिक्षा है --- भाषा लोगों में संपर्क होने का साधन है । मैना केवल मनुष्य के बोलने की नकल करता है , लेकिन अपना विचार नहीं बता सकता है , व्यर्थ ही बोलने की नकल करने का हुनर सीखा गया है ।

अभी आप ने सुना "मेना द्वारा मनुष्य के बोलने की नकल" शीर्षक प्राचीन चीनी नीति कथा , इस नीति कथा में निहित शिक्षाप्रस्द विषय भी जाना । आप को जरूर वह पसंद आया , और इस प्रकार की नीति कथा सुनने में रूचि आयी , तो आगे सुनिए, दूसरी चीनी नीति कथा , शीर्षक है "पौधों को लम्बा खींचा"।

प्राचीन समय , चीन के सुङ राज्य वंश में एक किसान रहता था , वह तेज मिजाजी आदमी था । अपने खेत में फ़सल के पौधों के उगने की गति पर वह असंतुष्ट था , उसे आशा थी कि पौधे जल्दी से जल्दी बढ़ता जाएंगे और कम समय में ही पक जाएंगे । वह रोज खेत पर जा कर पौधों का विकास क्रम देखता रहा , कभी वह खेत में झुक कर हाथों की ऊंगली से पौधों की लम्बाई नाप रहा था , तो कभी नजर से नाप रहा था । उस की नजर में पौधा बढ़ता ही नहीं जाता , रोज़ पहले दिन का जितना लम्बा बना रहता था । एक दिन वह इस सोच विचार में घूम रहा था कि "क्या किसी तरीके से पौधों को जल्दी से उगने दिया जा सके"। वह घूमता सोचता रहा , घूमता सोचता रहा । अनायास दिमाग में यह विचार चकाचौंध गया , "वाह कितना अच्छा तरीका है , मैं हरेक पौधे को खींच खींच कर लम्बा कर दूं , तो क्या वह एकदम लम्बा नहीं हो सकता । हां , इस से पौधे जरूर जल्द ही उग -बढ़ जाएंगे ।"

वह तुरंत अपने फैसले पर अमल करने लगा , झुक झुक कर खेत के सभी पौधों को एक एक खींच कर ऊंचा कर दिया । दोपहर से शाम तक वह मेहनत करता रहा । जब संध्या वेला आयी , तब बहुत थके हुए घर का रास्ता अपनाया । घरमें प्रवेश करके ही वह अपने थके हुए कमर में थपकी देते हुए बकने लगा, "ओह , कमर चूर चूर टूट गया , आज मैं सचमुच थका मरा जा रहा हूं" । उस के पुत्र ने पिता की ऐसी दशा पर आश्चर्य चकित हो कर पूछा, "पिता जी , आज क्या हुआ कि आप इतना थक गये हैं , क्या कोई भारी काम किया है" । किसान बड़े बड़पन के भाव में बोला , "आज मैं खेत में सभी पौधों को जल्दी से उगने में मदद दी है , वह सब पहले से बहुत ज्यादा ऊंचा उगा है "। पुत्र पिता जी की बातों पर ताजुब हुआ , वह फटाफट ही खेत की ओर भागा , वहां यह दृश्य देख कर उस के मुंह से हाहाकार फूट निकला, "हाय रे हाय , यह क्या आफत हुआ , खेत में सभी पौधे मुरझे हो गए , जो शुरू शुरू में खींचे गए थे , वे तो सुख कर मर गए , जो बाद में खींचे गए थे , उन के पत्ते मुरझ गए थे ।

दोस्तो , यह चीन में एक बहुत मशहूर प्राचीन नीति कथा है , इस नीति कथा पर आधारिक एक कहावत हर चीनी की जबान पर है । हां , चीनी भाषा में वह कहावत या म्यो जु चांग कहलाता है । अर्थात पौधों को लम्बा खींच कर उसे उगने की मदद देना । इस नीति कथा का अर्थ बहुत साफ है , यानी प्रकृति अपनी नियम के अनुसार चलती है , सभी चीजों का अपना अपना नियम होता है , उस के नियम के विरूद्ध काम लेने का बिलकुल विपरीत परिणाम निकलता है । इसलिए हमें प्रकृति या समाज का नियम जानने की कोशिश करना चाहिए और नियमों के मुताबित काम करना चाहिए ।