2008-06-24 10:34:49

इतिहास से तिब्बत को देखना

पुराने तिब्बत में अधिकांश बच्चे भू-दास और भू-दास की संतान के रूप में दुनिया में आते थे । जन्म के बाद से ही उन का भू-दास का जीवन शुरू हो जाता था । वे भूख, ठंड और भय के वातावरण में बड़े होते थे। जीवन की स्थिति इतने गंभीर होने के कारण अनेक बच्चे छोटी उम्र में ही मर जाते थे । अगर सौभाग्य से वे बड़े हो गए, तो उन्हें कुलीन के लिए कार्य करना पड़ता था । लेकिन भारी श्रम न कर सकने वाले बच्चों को कभी-कभार कुलीन लकड़ियों व पत्थरों से मारते थे ।

पुराने तिब्बत में भूदासों की कुल संख्या तत्कालीन तिब्बत की कुल जन संख्या का 95 प्रतिशत थी । उन का नियंत्रण चंद कुछ अधिकारी, कुलीन और मठों के उच्च स्तरीय भिक्षु करते थे । इन व्यक्तियों की संख्या पांच प्रतिशत से कम थी , लेकिन उन के पास तिब्बत की सारी खेती, सारे घास मैदान व वन तथा पहाड़ और अधिकांश पशु थे । 17 शताब्दी के छिंग राजवंश के आंकड़ों के अनुसार तत्कालीन तिब्बत में कुल दो लाख हैक्टर से ज्यादा खेती योग्य भूमि थी, शत प्रतिशत खेती योग्य भूमि अधिकारियों, कुलीनों और मठों के उच्च स्तरीय भिक्षुओं में बंटी हुई थी । वर्ष 1959 में तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार किए जाने के पूर्व सारे तिब्बत में पीढ़ी वाले 197 कुलीन परिवार, 25 बड़े कुलीन परिवार थे, उन में सब से बड़े कुलीन परिवार सात आठ थे, हर परिवार के पास दसियों उद्यान और हज़ार हैक्टर वाली खेती योग्य भूमि थी । 

चीनी तिब्बती शास्त्र अनुसंधान केंद्र के तिब्बतविद श्री चो य्वान ने कहा:

"राजनीतिक और धार्मिक सामंती वाली भू-दास व्यवस्था का मूल उच्च स्तरीय भिक्षु और कुलीन व्यापक भूदासों पर संयुक्त विशेष प्रशासन करना है । वे तिब्बत के उत्पादन संसाधन और व्यापक भूदासों को काबू रखने के जरिए उन का आर्थिक शोषण करते थे । यह सामंती भू-दास व्यवस्था के उत्पादन संबंध का आधार था ।"

पुराने तिब्बत में भूदासों को गंभीर सज़ाएं दी जातीं थीं । स्थानीय सरकार अदालत और जेल की स्थापना कर सकती थी, अधिकांश बड़े मठों के भिक्षु और बड़े कुलीन भी निजीगत जेल रख सकते थे । भूदासों को सज़ा देने में हाथों को काटना, आंखों को खोदना और ज़ुबान काटना आदि शामिल था । पुराने तिब्बत में पोटाला महल के नीचे एक गुहा थी, जिसे लोग बिच्छु गुहा कहते थे, जिस में अनेक बिच्छु पाले जाते थे । ये बिच्छु कैदियों को मारने के लिए इस्तेमाल होते थे । कैदी को गुहा में धकेल दिया जाता था, तुरंत ही बिच्छु उसे जगह-जगह डंक मार कर उस की जान ले लेते थे।

एक ब्रिटिश व्यक्ति चार्स बेल ने खुद अपनी आंखों से पुराने तिब्बत की स्थिति को देखा था। उन की लिखित पुस्तक तरहवें (दलाई लामा) नामक पुस्तक में वर्णन किया गया है कि अगर आप युरोप व अमरीका से तिब्बत आएं, तो आप कई सौ साल पूर्व के समय में आ पहुंचेंगे ।

वर्ष 1959 के बाद, व्यापक जनता और तिब्बत के उच्च स्तरीय देशभक्ति व्यक्तियों के अनुरोध पर तिब्बत में सौ वर्षों से लागू सामंती भूदास व्यवस्था समाप्त की गई, लोकतांत्रिक सुधार किए गए और जातीय स्वशासन सरकार की स्थापना की गई । लाखों भू-दास अपने भाग्य के मालिक बन गए । चीनी तिब्बती शास्त्र अनुसंधान केंद्र के उपनिदेशक श्री गेलेग ने कहा:

"वर्ष 1959 लोकतांत्रिक सुधार तिब्बत के आधुनिकीकरण का आरम्भ माना जाता है । ऐसा क्यों?क्योंकि इस के तीन महत्वपूर्ण अर्थ हैं । पहला, स्वतंत्र न होने वाले भू-दास को मालूम था कि वे भी खड़े होकर अपनी बात कह सकते हैं और चुनाव भी कर सकते हैं । दूसरा, अधिकांश भूदासों को मालूम था कि पुराना समाज अन्यायपूर्ण था । तीसरा, समाज का मूल सवाल भूमि व्यवस्था था । लोकतांत्रिक सुधार से प्रथम बार जमा की गई भूमि को सभी गरीबी लोगों व भूदासों में बांटा गया, जिससे इन लोगों को अपनी भूमि प्राप्त हो गई ।"

वर्ष 1965 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थापना के बाद से लेकर अब तक तिब्बती जनता संविधान व कानून के अनुसार चुनाव अधिकार व चुनाव किए जाने के अधिकार का उपभोग करती है । तिब्बती जातीय और अन्य अल्पसंख्यक जातीय कर्मचारी तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के कर्मचारियों का प्रमुख अंग बन गए हैं । आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2006 के अंत तक तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में तिब्बती जातीय व अन्य अल्पसंख्यक जातीय कर्मचारियों की संख्या 60 हज़ार थी, जो सारे प्रदेश के कर्मचारियों का सत्तरवां भाग बनता है ।