वर्तमान चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में जनता देश के मालिक के अधिकार का उपभोग कर रही है । अधिकांश तिब्बती परिवारों के पास स्थाई रिहायशी मकान हैं और सभी किसानों व चरवाहों ने मुफ्त इलाज पर आधारित सहयोगी चिकित्सा व्यवस्था में भाग लिया है। 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग नौ वर्ष की अनिवार्य शिक्षा में भागी दारी कर रहे हैं । लेकिन पचास साल पूर्व तिब्बत में राजनीतिक व धार्मिक सामंतवादी भूदास समाज था । 95 प्रतिशत तिब्बती भू दास का दुखी जीवन बिता रहे थे । तो अब हम एक साथ उस समय के तिब्बती जनता के दुखी इतिहास को देखें ।
तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के ऐतिहासिक संग्रहालय में एक कुलीन द्वारा दूसरे कुलीन को भेजा गया पत्र सुरक्षित रखा हुआ है, जिस में लिखा है कि"परसों मैं आप के साथ ताश खेल रहा था, तो मैंने जो तीन भू-दास, सात घोड़े और चालीस य्वान हारे थे । उन्हें अब आप को पहुंचा रहा हूं।"
दोस्तो, पुराने तिब्बत में भू-दास मुद्रा के रूप में खरीदा बेचा जाता था । इस की चर्चा में चीनी तिब्बती शास्त्र अनुसंधान केंद्र के उप निदेशक श्री गेलेग ने याद करते हुए कहा:
"मेरी मां की मां पहले इस कुलीन परिवार की नहीं थी, वह दूसरी कुलीन का साधन थीं । उपहार के रुप में उसे इस कुलीन को भेंट किया गया था। इस तरह हम भी उन के साथ यहां आ गए थे । उस समय मानव उपहार के रूप में एक दूसरे को भेंट किया जाता था । हम जैसे व्यक्तियों की संख्या ज्यादा थी । मेरा जन्म गौशाला में हुआ । सुबह मां ने मुझे जन्म दिया और शाम को उसे कार्य काम पर जाना पड़ा था । बच्चे को जन्म देने के बाद भू-दास को शीघ्र ही कार्य करना पड़ता था।"
श्री गेलेग के बुजुर्गों के जमाने में राजनीतिक व धार्मिक व्यवस्था वाले पुराने तिब्बत में तिब्बती भू-दास का युग था । भूदासों के पास उत्पादन संसाधन और मानवीय अधिकार नहीं थे । उन्हें कुलीन पशु कहते थे । अनेक भू-दास गौशाला में जीवन बिताते थे और हर दिन भारी कार्य करते थे ।
70 वर्षीय त्से चोमा तिब्बत की राजधानी ल्हासा में रहती हैं । पुराने जमाने में उस की हैसियत भू-दास की थी । इस की चर्चा में त्से चोमा ने कहा:
"अगर कुलीन ने हमें पूर्व की ओर जाने को कहा, तो हम पूर्व की ओर जाते थे । अगर कुलीन ने हमें पश्चिम की ओर जाने के लिए कहा, तो हम पश्चिम की ओर जाते थे । सिर्फ़ कुलीन कहते थे, हमारे पास कहने का अधिकार नहीं था । मैं अपनी खेती का काम नहीं कर पाती थी। कुलीन बहुत समृद्ध था । हम सब उन के लिए काम करते थे,इस कारण उन की खेती की फ़सल बहुत शानदार थी । लेकिन हम गरीबी भरा जीवन बिताते थे ।"
सेशिन गांव ल्साहा से 70 किलोमीटर दूर है । सूर्य की किरणों में बच्चे आनंद के साथ खेल रहे हैं । लेकिन दसियों वर्ष पूर्व यहां दलाई लामा परिवार का उद्यान था । उस समय कुछ भू-दास उन के साथ किए गए भीषण दुर्व्यहार को नहीं सह पाने के कारण सामूहिक रूप से बाहर भाग गए थे । तत्काल युवा भू-दास चोस्पल और उस की बड़ी बहन चोमा य्वीचङ इस अभियान में भागे थे । आज बूढ़े चोस्पल ने खुशी के साथ खेलते बच्चों को देखते हुए भावविभोर होकर कहा कि पुराने समय में भूदासों की बालावस्था बहुत मुश्किल व भीषण थी ।
"पुराने जमाने में दलाई लामा के परिजनों ने हमें, सेशिन गांव के लोगों को ज्यादा काम करने को कहा । रात को हमें काम करना पड़ता था । हम सिर्फ़ आधी रात को ही थोड़े समय के लिए सो सकते थे । सुबह बहुत जल्दी उठना पड़ता था । कुलीन हमारे पीछे खड़े होकर काम देखते थे । इस तरह सब लोगों को बहुत थक जाते थे । कभी-कभार ज़मीन पर बैठते-बैठते सो जाते थे । ऐसी स्थिति में हमें कम खिलाया जाता था ।"
चोस्पल की बड़ी बहन चोमा य्वीचङ ने उस समय के जीवन की याद करते हुए कहा:
"उस समय खाने के लिए कुछ नहीं था । जीवन बहुत मुश्किल था । अगर कोई धीरे-धीरे काम करता था, तो हमें पत्थरों व लकड़ियों से मारा जाता था । अंत में हम असहनीय जीवन से तंग आ कर भाग गए।"
इस लेख का दूसरा भाग अगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े। (श्याओ थांग)