साहित्य के क्षेत्र में छाओ छाओ, छाओ चि (192-232, छाओ छाओ का पुत्र) और थाओ य्वानमिङ (365-427) जैसे प्रसिद्ध कवि इसी काल की देन हैं, जिन्होंने अपनी कविताओं से चीन के साहित्य भण्डार को समृद्ध बनाया। सुप्रसिद्ध लेखक ल्यू श्ये ने"वन शिन त्याओ लुङ"नामक पुस्तक लिखकर साहित्य समीक्षा में महत्वपूर्ण योगदान किया। इसी काल के लिपिकार वाङ शीचि भी बहुत मशहूर हैं।
चीन में बौद्धधर्म की लोकप्रियता में वृद्धि के साथ-साथ पत्थर को तराशकर बौद्ध देवताओं की मूर्तियां गढ़ने की कला का भी प्रचलन हुआ। प्राकृतिक अथवा मानवनिर्मित गुफाओं में बनाई गई इस तरह की प्रस्तर-प्रतिमाओं में से अनेक आज भी सुरक्षित हैं – जैसे युनकाङ (शानशी प्रान्त के ताथुङ में), लुङमन (हनान प्रान्त के ल्वोयाङ शहर के निकट) और तुनह्वाङ (कानसू प्रान्त में) की प्रतिमाएं। इन सभी बौद्ध प्रतिमाओं की रचना इसी काल में हुई थी। ये बड़ी भव्य व आकर्षक हैं तथा उनकी गढ़न व चित्रकारी में उस काल का समुन्नत तकनीकी कौशल झलकता है। कला की दृष्टि से, ये प्रस्तर-प्रतिमाएं विश्वप्रसिद्ध अनमोल निधि हैं।
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