2008-06-12 09:56:58

84 अनाथ व एक सपने के लिये:ली च्यांग शहर की ह्वा फिंग काऊंटी की मीडिल स्कूल की अध्यापिका, बाल-घर की प्रधान सुश्री च्यांग क्वेइ मेइ के साथ विशेष इन्टरव्यू

जून की नौ तारीख को दक्षिण चीन के युन्नान प्रांत के खुनमिंङ शहर में आयोजित ऑलंपिक मशाल रिले में एक ऐसी विशेष मशाल धारक हैं जो एक मीडिल स्कूल में अध्यापिका हैं, और टयूमर रोग से ग्रस्त भी हैं। यहां तक कि उन्होंने आत्महत्या करने की कोशिश भी की थी। लेकिन अब वे चौरासी पहाड़ी अनाथ बच्चों की मां बन गयीं हैं, और उन बेकस बच्चों को आशा दे रही हैं। उन का नाम सुश्री च्यांग क्वेइ मेइ है और वे ली च्यांग शहर के बाल-घर की प्रधान हैं। अब लीजिये सुनिये इस के बारे में एक रिपोर्ट।

जब सुश्री च्यांग क्वेइ मेइ हमारे संवाददाता के सामने आयीं, तो संवाददाता ने बहुत मुश्किल से विश्वास किया कि एक मीडिल स्कूल की अध्यापिका चौरासी अनाथ बच्चों की मां की जिम्मेवारी निभा रही हैं। क्योंकि एक सामान्य पहाड़ी अध्यापिका के लिये बाल-घर का अनाथाश्रम चलाना एक बहुत मुश्किल बात है।

हमारे अनाथाश्रम में सभी बच्चे पहाड़ से आए हैं। मुझे छोटे-छोटे बच्चों को गोद में खिलाना पड़ता है। दस बजे के बाद स्कूल जाकर कुछ विद्यार्थियों की देखभाल करना, और इस के बाद जल्द ही बालक घर वापस आकरके अनाथों की देखभाल करनी पड़ती है। इस के साथ मैं अपनी कक्षा की प्रधान अध्यापिका भी हूं।मैं हमेशा छुट्टी नहीं ले सकती। कभी-कभी मैं थकान से बेहोश हो जाती हूं। पर अस्पताल से वापस आने के बाद मुझे पहले की तरह काम करना पड़ता है। यह कहा जा सकता है कि मैं अनाथाश्रम की प्रधान से अभिभावक बन गयी हूं, और अंत में सभी बच्चों की मां भी बन गई हूं।

हर बार जब सुश्री च्यांग क्वेइ मेइ मां की चर्चा करती हैं, तो उन के चेहरे पर सुख के भाव दिखाई पड़ते हैं। लेकिन दस वर्ष पहले सुश्री च्यांग के मन में आत्महत्या करने का विचार भी आया था। वर्ष 1995 में कैंसर से उन के पति की मृत्यु हुई । सुश्री च्यांग बहुत दुखी थीं। अगले वर्ष जांच-पड़ताल के बाद उन्हें मालूम हुआ कि उन्हें टयूमर है। उस समय उन्हें अपने जीवन के प्रति बड़ी निराशा हुई थी। लेकिन जब वे ली च्यांग शहर के ह्वा फिंग काऊंटी मीडिल स्कूल पहुंची, तो यहां के कड़े जीवन के वातावरण, आशावान् पहाड़ी निवासी और उन के बच्चों ने, जो पढ़ने की बड़ी उत्सुकता में थे, ने सुश्री च्यांग क्वेइ मेइ को बचा लिया। उन्होंने कहा,

उस समय जब मैं यहां पहुंची, तो मेरे लिये जीने या मरने का कोई अर्थ नहीं था। मैं केवल इस घने जंगल में अपनी जिन्दगी के अंतिम दिन बिताना चाहती थी। मैं वास्तविकता का सामना नहीं कर पा रही थी। लेकिन अंत में उन पहाड़ी बच्चों ने मुझे बचा लिया। मैं अक्सर यह कहती हूं कि भगवान्, मुझे एक मौका दीजिये, मुझे दूसरों को धन्यवाद देने का एक मौका दीजिये। मैं पहाड़ी बच्चों के लिए कुछ काम करना चाहती हूं। और मुझे जान बचाने का कर्ज़ लौटाना पड़ेगा।

सुश्री च्यांग क्वेइ मेइ आठ वर्षों से लगातार यह कर्ज़ लौटा रही हैं। इस दौरान कुल मिलाकर चौरासी अनाथ उन की देखभाल में बड़े हो गये हैं। लेकिन अपने रिश्तेदार के प्रति सुश्री च्यांग को अफ़सोस है। वर्ष 2006 में सु्श्री च्यांग का भतीजा गंभीर रुप से बीमार हो गया। और उसे जल्द ही ऑपरेशन की जरुरत थी। पर चिकित्सा-खर्च बहुत अधिक था। उस समय सुश्री च्यांग के पास तीन लाख य्वान की रकम थी। लेकिन यह रकम अनाथाश्रम का सुधार करने के लिये थी। इसलिये सुश्री च्यांग ने आंसू बहाती हुई अपनी बड़ी बहन को ये पैसे उधार देने से इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि,

मेरी बड़ी बहन मेरे लिये महत्वपूर्ण है। क्योंकि उन्होंने बचपन से मुझे पाला पोसा। अगर मैं उन के बेटे को बचाती, तो जैसे उन के सभी परिवार को बचा लेती। लेकिन मैंने उन्हें पैसे नहीं उधार दिए और इस रकम को स्कूल की नयी इमारत के निर्माण में लगा दिया। इस कारण मेरे भतीजे का आपरेशन नहीं हो सका और वह मर गया। यह बात मुझे हमेशा चुभती रहेगी।

सुश्री च्यांग क्वेइ मेइ की नजरों में सभी पहाड़ी बच्चे समान हैं वे सब सीखना चाहते हैं व सुखमय जीवन जीना चाहते हैं। वे बच्चे आलंपिक की पवित्र मशाल की तरह से लोगों के जीवन में आशा पैदा कर सकेंगे। सुश्री च्यांग ने कहा ,

पहले, आलंपिक मशाल मुझ से बहुत दूर थी। क्योंकि मैं पहाड़ में एक साधारण अध्यापिका हूं। इसलिये मैं मशाल धारक बनने का मौका देने के लिए खूब धन्यवाद देना चाहती हूं। और इस बात से मुझे और सभी बच्चों को मालूम हुआ है कि लोग हमें नहीं भूले, वे लगातार हमारा ध्यान रख रहे हैं और हमें प्रेम करते हैं।