चीनी अल्पसंख्यक जाति---तिब्बती जाति के विशेष रीति रिवाज़ हैं, तिब्बती जाति के अनेक विशेष पर्व हैं । इस लेख में आप को तिब्बती जाति के सब से मशहूर पर्व श्वेतुन त्योहार का परिचय दिया जाएगा । आखिर कार तिब्बती लोग श्वेतुन त्योहार कैसे मनाते हैं?यह किस प्रकार का त्योहार है?नार्बुलिका पार्क में श्वेतुन त्योहार मना रहे तिब्बती बंधु दहची ने हमारे संवाददाता को बताते हुए कहा:
"श्वेतुन त्योहार का एक और नाम है दही-उत्सव । यह ल्हासा में एक बहुत महत्वपूर्ण त्योहार है । वर्तमान में इस त्योहार की खुशियां मनाने के लिए सात दिनों की छुट्टियां होती हैं । जाइबुंग मठ और सेला मठ में अलग-अलग तौर पर एक विशाल लोह ढांचे पर बुद्ध का शानदार चित्र फैला कर दिखाया जाता है । हम श्वेतुन त्योहार के प्रथम दिन की सुबह पहले जाइबुंग मठ जाते हैं और फिर दोपहर बाद सेला मठ जाते हैं । इस के बाद ल्हासा के नागरिक परिवारजनों के साथ नार्बुलिका आकर खुशियां मनाते हैं । नार्बुलिका पार्क , ड्रैगन झील और ल्हासा स्थित कुंगयिंग सिनेमा घर में तिब्बती ऑपेरा प्रस्तुत किया जाता है । इस के साथ ही ल्हासा की व्यायामशाला में तरह-तरह की अभिनय प्रदर्शनियां आयोजित की जाती हैं ।"
तिब्बती पंचांग के अनुसार, हर वर्ष के सातवें महीने की पहली तारीख को श्वेतुन त्योहार मनाया जाता है। यह तिब्बती लोगों का परम्परागत त्योहार है, जिस का लम्बा पुराना इतिहास है । तिब्बती भाषा में"श्वे"का मतलब है"दही"और"तुन"का मतलब"खाना"। इस तरह"श्वेतुन"का अर्थ है"दही खाना"। जाहिर है कि श्वेतुन त्योहार दही खाने के उत्सव के रूप में मनाया जाता है । किन्तु कालांतर में श्वेतुन त्योहार के विषयों में काफी परिवर्तन आ गया और दही खाने की जगह मुख्य तौर पर तिब्बती ऑपेरा ने ले ली, इस के कारण इस त्योहार को तिब्बती ऑपेरा त्योहार भी कहा जाने लगा।
श्वेतुन त्योहार के प्रथम दिन की सुबह तिब्बती लोग विभिन्न स्थानों से राजधानी ल्हासा के पश्चिम भाग में स्थित जाइबुंग मठ में एकत्र होते हैं। इस दिन मठ में एक विशाल लोह ढांचे पर बुद्ध का शानदार चित्र फैला कर दिखाया जाता है। यह श्वेतुन त्योहार की शुरूआती रस्म है । ज़ाइबुंग मठ के भिक्षु धार्मिक वाद्य यंत्रों की धुन में तिब्बती थांग्खा चित्रकला शैली में खिंची हुई एक शानदार बुद्ध तस्वीर को एक लोह के ढ़ांचे पर फैला कर रखते हैं, जिस पर बौद्ध धर्म के त्रिकाल भगवान के रंगीन चित्र दिखाई देते हैं। त्रिकाल भगवान में भूत काल, वर्तमान काल और भविष्य काल के तीन रूपों के बुद्ध विद्यमान हैं । शानदार बुद्ध चित्र की प्रदर्शन रस्म संपन्न होने के बाद तिब्बती लोग बड़ी आस्था के साथ आगे बढ़ कर चित्र के सामने पूजा प्रार्थना करते हैं और बुद्ध तस्वीर पर शुभ सूचक तिब्बती सफेद हाता और धन दौलत भेंट चढ़ाते हैं । ऊंचे विशाल पहाड़ पर रखे जाने के कारण यह विशाल बुद्ध तस्वीर दस किलोमीटर दूर से भी साफ-साफ दिखाई देती है । बुद्ध तस्वीर दिखाने की रस्म बहुत शानदार है । तिब्बती बंधु और पर्यटक इस से बहुत प्रभावित होते हैं । शांगहाई से आए एक पर्यटक ने बुद्ध तस्वीर देखते हुए हमारे संवाददाता से कहा:
"बुद्ध तस्वीर दिखाने के वक्त जाइबुंग मठ स्थित पहाड़ पर भीड़ होती है,यहां-वहां तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी पूजा करते हैं । मैं इस से बहुत प्रभावित हुआ हूं ।"
विशाल बुद्ध तस्वीर देखने के बाद तिब्बती लोग एक साथ ल्हासा स्थित नार्बुलिका उद्यान में जाकर लिन खा में जुटते हैं । लिन खा का मतलब है तिब्बती लोगों का पार्क या जंगल में आराम करने जाना । इस दौरान वे पार्क में घास पर बैठ कर रिश्तेदारों व दोस्तों के साथ खाना खाते हैं, गाते हैं, नाचते हैं, शराब पीते हैं और ताश खेलते हैं ।
तिब्बती बंधु तोची और उस के परिजनों के साथ नार्बुलिका में लिनखा बिताने वाले दक्षिण चीन के शांगहाई से आए एक पर्यटक ने कहा:
"हमें लगता है कि तिब्बती जाति बहुत जोशीली है और मेहमान नवाज भी । वे मेहनत से काम करते हैं और त्योहार के वक्त खूब मनोरंजन करते हैं । त्योहार के वक्त वे आम तौर पर अपने रिश्तेदारों के साथ एकत्र होकर खुशियां मनाते हैं । उन्होंने मुझे निमंत्रण दिया है। मैं बहुत आभारी हूँ ।"
श्वेतुन त्योहार के दौरान नार्बुलिनका उद्यान में हर रोज़ रंगबिरंगी सांस्कृतिक व कलात्मक प्रदर्शनी प्रस्तुत की जाती है, जिस में तिब्बती परम्परागत तिब्बती ऑपेरा, घुड़दौड़-प्रदर्शनी और तिब्बती सुरागाय दौड़ प्रतियोगिता आदि शामिल हैं । तिब्बती ऑपेरा अभिनय सब से ज्यादा दर्शकों को आकर्षित करता है, तिब्बती लोग चाहे पुरूष हों, या महिला, चाहे बूढ़े हों, या छोटे, सब तिब्बती ऑपेरा पसंद करते हैं ।
तिब्बती ऑपेरा देखने के बाद शांगहाई से आए पर्यटक ने इस का उच्च मूल्यांकन करते हुए कहा:
"भाषा की दृष्टि से देखा जाए, तो मुझे तिब्बती ऑपेरा समझ नहीं आता, लेकिन अभिनेता अभिनेत्री की भंगिमा और अंदाज से मैं कहानी का अर्थ समझ सकता हूं । मुझे लगता है कि तिब्बती ऑपेरा के अभिनेता-अभिनेत्री के वस्त्रों से तिब्बती संस्कृति की ठोस अभिव्यक्ति होती है।"
वर्तमान में तिब्बती जाति के ऑपेराओं को तिब्बती ऑपेरा कहा जाता है, जो ऑपेरा, नृत्य, संगीत आदि किस्म की कला का संगम है । तिब्बती ऑपेरा कला का इतिहास बहुत पुराना है और उस की जातीय विशेषता है । तिब्बत के विभिन्न क्षेत्रों में तिब्बती ऑपेरा मंडली की स्थापना की जाती है । इतिहास, भौगोलिक स्थल, भाषा और शैली के भिन्न-भिन्न होने से इस की भिन्न-भिन्न धाराएं मौजूद हैं । श्वेतुन त्योहार के दूसरे दिन नार्बुलिका पार्क और पोताला महल के आसपास स्थिति ड्रैगन झील पार्क में हर दिन सुबह ग्यारह बजे से शाम तक तिब्बती ऑपेरा की प्रस्तुति जारी रहती है ।
बुद्ध तस्वीर देखने और तिब्बती ऑपेरा को सुनने के बाद आप घुड़ दौड़ प्रदर्शनी और तिब्बती सुरागाय दौड़ प्रतियोगिता देख सकते हैं । परम्परागत घुड़दौड़ प्रदर्शनी श्वेतुन त्योहार की परम्परागत गतिविधि है, जिसे व्यापक तिब्बती नागरिक पसंद करते हैं । तिब्बती सुरागाय दौड़ प्रतियोगिता तिब्बत में एक परंपरागत विशेषता वाली खेलकूद प्रतियोगिता है । हर वर्ष की गर्मियों में श्वेतुन त्योहार के वक्त प्राचीन ल्हासा शहर स्वायत्त प्रदेश के विभिन्न स्थलों से आए तिब्बती सुरागाय दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेने वाले खिलाड़ियों का सत्कार करता है ।
श्वेतुन त्योहार तिब्बती जाति का महत्वपूर्ण त्योहार है, यह तिब्बती संस्कृति के विकास की ठोस अभिव्यक्ति भी है । वर्ष 1994 में ल्हासा सरकार ने इस भव्य त्योहार को मनाने के लिए सिलसिलेवार गतिविधियां चलायीं, इस तरह श्वेतुन त्योहार मनाने के वक्त सांस्कृतिक व कलात्मक अभिनय, खेलकूद प्रतियोगिता, पर्यटन और व्यापार शामिल किया गया । यह परम्परा और आधुनिकता को जोड़ने वाला मशहूर भव्य समारोह बन गया है। वर्ष 2006 की मई में ल्साहा के श्वेतुन त्योहार को चीनी गैर भौतिक सांस्कृतिक अवशेष की नामसूचि में शामिल किया गया।
दोस्तो, अगर आप तिब्बती जाति की परम्परागत संस्कृति की जानकारी लेना चाहते हैं और तिब्बती जनता के जीवन का अनुभव पाना चाहते हैं , तो तिब्बत की राजधानी ल्हासा में तिब्बती बंधुओं के साथ श्वेतुन त्योहार की खुशियां मनाने आएं । (श्याओ थांग)