बेशक शुरू में वांग पौ छ्यांग के लिए कोई मुख्य भूमिका नहीं थी। उस ने फिल्म कंपनी के विभिन्न ग्रुपों में आम पात्र की भूमिका करने के लिए कड़ी प्रतिस्पर्द्धाओं में भाग लिया। अपने उस समय के जीवन की याद करते हुए वांग पौ छ्यांग ने कहाः
"हम पांच युवक किराए पर एक छोटे से कमरे में रहते थे। रोज़ सुबह हम बाहर जाते, फिल्म ग्रुप में काम पाने का प्रयास करते। कभी एक दिन में दर्जन य्वान कमा लेते, कभी दिन-भर कुछ भी नहीं मिल पाता।"
उस समय वांग पौ छ्यांग ने किसी भी फिल्म में सिर्फ एक वाक्य बोलने की भूमिका पानी चाही, लेकिन बहुत लम्बे समय तक उस के सामने आशा की कोई किरण नहीं चमकी। वांग पौ छ्यांग को वर्कसाइट पर श्रम करना पड़ा।
वांग पौ छ्यांग कहते हैं "पेइचिंग में मुझे कोई औपचारिक नौकरी नहीं मिली। मैं ने अपना स्वप्न साकार करने के लिए आम पात्रों की भूमिका की। पर इस से भी कुछ नहीं हुआ। इसलिए मुझे श्रम करना पड़ा। लेकिन मैं श्रम करने के लिए पेइचिंग नहीं आया था, मेरा अपना स्वप्न था। दिन के बाद दिन बीतते गए, मैं कुछ भी नहीं कर पाया। उस समय मैं ने सोचा कि कल्पना साकार करना बहुत कठिन है।"
जब वांग पौ छ्यांग दुख में फंसा हुआ था, तब एक दिन पिता जी की तरफ से एक चिट्ठी आई।
"पिता जी ने पत्र में यह कहा हैः सब दोष तो मेरा है। माफ करो। घर में तुम्हारा स्थान हमेशा सुरक्षित है। जब थकान महसूस करो, तो वापस आ जाओ।"
वांग पौ छ्यांग ने कहा कि पिता जी के पत्र से बहुत राहत मिली और पत्र पढ़कर मैं ने घर न जाने का फैसला किया। मैं अवश्य ही अपने पिता को जीत कर दिखाऊंगा।
सौभाग्य ने 16 वर्ष के वांग पौ छ्यांग के जीवन में प्रवेश किया। उस ने फिल्म "अंधा कुआं" में प्रमुख पात्र यानी शहर में श्रम करने वाले एक किसानी छात्र की भूमिका की। गांव से आए वांग पौ छ्यांग ने इस पात्र के अभिनय में सफलता पाई। वांग पौ छ्यांग ने कहाः
"निर्देशक ने किसानी छात्र की भूमिका में मेरा अभिनय देखा और मेरी प्रशंसा की। तब मैं ने सोचा कि निर्देशक की बात से यह साबित है कि मुझ में भी कुछ विशेष योग्यता है। मैं जरूर निर्देशक की आज्ञा से पात्र की भूमिका अच्छी तरह निभाऊंगा।"
फिल्म "अंधा कुआं" को 53वें बर्लिन अंतर्राष्ट्रीय फिल्म मेले में द्वितीय पुरस्कार यानी "रजत भालू पुरस्कार" मिला। इस के बाद वांग पौ छ्यांग को थाइवानी स्वर्ण फिल्म पुरस्कार मेले में सर्वश्रेष्ठ नव अभिनेता का पुरस्कार मिला। 20 साल की उम्र में वांग पौ छ्यांग को मशहूर चीनी निर्देशक श्री फंग श्याओ कांग की फिल्म "चोरी के बिना" में एक मुख्य भूमिका मिली।
इस फिल्म में वांग पौ छ्यांग ने एक ईमानदार और सीधा-सादे गांव के लड़के शा-गन की भूमिका की है। पर उस की ईमानदारी और भोलेपन से चोर दंपत्ति भी प्रभावित हुए। इस फिल्म में वांग पौ छ्यांग के साथ-साथ हांगकांग और थाइवान से आए विश्व मशहूर सितारे थे। पर वांग पौ छ्यांग के अभिनय ने भी फिल्म की सफलता के लिए योगदान दिया।
लेकिन वांग पौ छ्यांग की सच्ची सफलता वर्ष 2007 के टी. वी. ऑपेरा "सैनिकों की झपट" में दिखाई पड़ी। उस ने बतायाः
"मैं ने इसलिए फिल्मी सितारा बनना चाहा कि मेरा मकसद था कि मेरे माता पिता और गांव में सभी लोग फिल्म में मुझे देख सकें। मैं जेत ली की तरह आदमी बनना चाहता हूं। 'सैनिकों की झपट' ने मेरे गांव को हिला दिया है। गांववासियों ने मेरे पिता जी के साथ मेरी सफलता की बातचीत की है। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वे फिल्म या टी. वी. ऑपेरा में एक परिचित आदमी को देखेंगे। मैं ने उन के सामने यह सब साकार कर दिखाया है।"
चाहे "चोरी के बिना" या "सैनिकों की झपट", वांग पौ छ्यांग ने प्रसन्नता और ईमानदारी के अनेक गांव के युवक की भूमिका की है, जिसे दर्शकों का प्यार मिला है। किसी सामयिक चर्चा में यह कहा गया कि वांग पौ छ्यांग के पात्र ने हमेशा अपनी ईमानदारी और कठोर मेहनत से विजय प्राप्त की है। यह प्रशंसनीय है। वास्तविक जीवन में वांग पौ छ्यांग की कोशिशों और सफलता की समान कहानी है।