वर्ष 2007 में चीन के अनेक टी. वी. चैनलों में सैनिक जीवन पर आधारित श्रंखृला टी. वी. ऑपेरा "सैनिकों की झपट" दिखाई पड़ा। वांग पौ छ्यांग ने इस ऑपेरा के प्रमुख पात्र, गांव से आए एक सीधा-सादे सैनिक शू सैन डो की सफलतापूर्ण भूमिका निभाई। नव सैनिक शू सैन डो दूसरों की तुलना में अदक्ष है। लेकिन उस ने अपनी ईमानदारी और सहनशीलता से अथक प्रयास कर श्रेष्ठ सैनिक का खिताब जीता है। देश के अनेक टी. वी. स्टेशनों ने रात को प्राईम-टाईम पर ऑपेरा "सैनिकों की झपट" प्रसारित किया, और अभिनेता वांग पौ छ्यांग का नाम भी हवा के साथ देश के कोने-कोने तक पहुंच गया। ऑपेरा में इतना बढ़िया प्रदर्शन करने से दर्शकों ने अभिनेता वांग पौ छ्यांग को सीधे शू सैन डो कहना शुरू कर दिया। अपने पात्र की चर्चा में वांग पौ छ्यांग ने कहाः
"मैं खुद ही सैनिक शू सैन डो की तरह हूं। मैं ने खुद अपने बचपन में अपमान झेला है। जब मैं ने दूसरों को बताया कि मैं फिल्म सितारा बनना चाहता हूं, तो दूसरों ने इसे मजाक और मूर्खता कहा। लेकिन आज मुझे महसूस हो रहा है कि वास्तव में मूर्ख बनने से फायदा उठाया जा सकता है। "
वर्ष 1984 में वांग पौ छ्यांग का उत्तरी चीन के हपेइ प्रांत की नान-ह कांऊटी के एक गांव में जन्म हुआ। आठ साल की उम्र में उस ने गांव के मैदान पर जानी-मानी फिल्म "शाओलीन मठ" देखी। फिल्म में विश्व मशहूर सितारे जेत ली के अतुल्य फैशन और शानदार कूंफू अभिनय से उसे आकर्षित किया। वांग पौ छ्यांग ने उस समय से ही एक कूंफू सितारा बनने का संकल्प ले लिया। लेकिन उस समय वांग पौ छ्यांग को कूंफू यानी मार्शल आर्ट की कोई जानकारी नहीं थी। कूंफू सीखने के लिए उस ने कूंफू के तीर्थस्थल शीर्षक शाओलीन मठ जाना चाहा। वांग पौ छ्यांग ने अपनी योजना माता-पिता को बार बार बताई, अंततः मां-पाप ने उस का साथ दिया। इस तरह वांग पौ छ्यांग ने दूसरे प्रांत स्थित शाओलीन मठ जाकर भिक्षुओं से कूंफू सीखना शुरू किया। कई साल बीत गए, वांग पौ छ्यांग ने भी कूंफू के सीखने में कुछ प्रगति हासिल की। तब उसे लगा कि शाओलीन मठ में रहने से फिल्मी सितारे का रास्ता नहीं खुलेगा।
वर्ष 1997 में वांग पौ छ्यांग नाराज़ मन के साथ अपनी जन्मभूमि वापस लौटे। पर दूसरों ने उपहास में कहा कि वांग पौ छ्यांग ने अब नई कल्पना की है कि वह राजधानी पेइचिंग में अभिनेता बनने का स्वप्न पूरा करने जाएगा। गांववासियों के ख्याल में वांग पौ छ्यांग का स्वप्न उपहास का एक नया शगूफा ही था। लेकिन वांग पौ छ्यांग एक ऐसा आदमी है, जिस ने अगर कुछ करने का बीड़ा उठाया, तो वह कभी पीछे नहीं हटेगा, वह हमेशा अपने लक्ष्य पर टिका रहेगा। वर्ष 1999 में वांग पौ छ्यांग फिल्मी सितारा बनने के स्वप्न के साथ राजधानी पेइचिंग पहुंचा।
बेशक शुरू में वांग पौ छ्यांग के लिए कोई मुख्य भूमिका नहीं थी। उस ने फिल्म कंपनी के विभिन्न ग्रुपों में आम पात्र की भूमिका करने के लिए कड़ी प्रतिस्पर्द्धाओं में भाग लिया। अपने उस समय के जीवन की याद करते हुए वांग पौ छ्यांग ने कहाः
"हम पांच युवक किराए पर एक छोटे से कमरे में रहते थे। रोज़ सुबह हम बाहर जाते, फिल्म ग्रुप में काम पाने का प्रयास करते। कभी एक दिन में दर्जन य्वान कमा लेते, कभी दिन-भर कुछ भी नहीं मिल पाता।"
उस समय वांग पौ छ्यांग ने किसी भी फिल्म में सिर्फ एक वाक्य बोलने की भूमिका पानी चाही, लेकिन बहुत लम्बे समय तक उस के सामने आशा की कोई किरण नहीं चमकी। वांग पौ छ्यांग को वर्कसाइट पर श्रम करना पड़ा।
वांग पौ छ्यांग कहते हैं "पेइचिंग में मुझे कोई औपचारिक नौकरी नहीं मिली। मैं ने अपना स्वप्न साकार करने के लिए आम पात्रों की भूमिका की। पर इस से भी कुछ नहीं हुआ। इसलिए मुझे श्रम करना पड़ा। लेकिन मैं श्रम करने के लिए पेइचिंग नहीं आया था, मेरा अपना स्वप्न था। दिन के बाद दिन बीतते गए, मैं कुछ भी नहीं कर पाया। उस समय मैं ने सोचा कि कल्पना साकार करना बहुत कठिन है।"
इस लेख का दूसरा भाग अगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े।