2008-05-08 10:38:48

स्कूल ही मेरा घर है – गांव से बाहर मजदूरी कर रहे माता पिता द्वारा गांव में छोड़े बच्चों का बोर्डिंग स्कूल

ग्रामीण श्रमिक शक्तियों के शहरों में प्रवेश करने की तेज रूझान के बढ़ते , वर्तमान चीन में करीब 2 करोड़ ग्रामीण बालक हैं जिन के माता पिता गांव से बाहर मजदूरी कर रहे हैं, उन्होने अपने अपने बच्चों को अपने रिश्तेदारों के यहां रहने के लिए छोड़ा है या तो वह घर में अकेले जीवन व्यतीत कर रहे हैं। किस तरह माता पिता द्वारा गांव में छोड़े इन बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जाए, और वे किस तरह स्वास्थ्य व खुशी खुशी बढ़े होते जांए, फिलहाल यह चीन के शिक्षा विभागों के कार्य का एक महत्वपूर्ण काम बन गया है। कृषि प्रधान प्रांत होने के नाते, मध्य चीन के आनहुए प्रांत ने इस समस्या पर बड़ा अच्छा अनुभव हासिल किया है।

चंचल व फुरतीले बच्चे रोशनीदार व चौड़ी क्लासों, साफ सुथरी बोर्डिंग के भोजनालयों में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं, जब हम इस स्कूल में गए तो बच्चे स्कूल के खेलकूद मैदान में खेल रहे थे। स्कूल के प्रिंसिपल चओ छांग पिंग ने हमें बताया कि कुछ साल पहले ही इस स्कूल को एक आम राजकीय स्कूल से आज का एक बोर्डिंग स्कूल बनाया गया है, उन्होने इस का कारण बताते हुए कहा 2004 में हमारे स्कूल में परिवर्तन आने लगा, एक छात्र था जो हमेशा स्कूल में देर से आता था और उसकी पढ़ाई नीचे फिसलने लगी, हमने उसकी स्थिति की जानकारी हासिल की तो पता चला कि उसके माता पिता गांव से बाहर मजदूरी कर रहे हैं, वह अपने दादा और दादी के साथ रहे रहा है, लेकिन दादा, दादी उसका ज्यादा ख्याल नहीं कर पा सकते हैं।

हमारे स्कूल ने आगे नयी जांच पड़ताल की, तो हमे मालूम हुआ कि हमारे स्कूल के बहुत से छात्रों के माता पिता गांव से बाहर मजदूरी कर रहे हैं और घर में छोड़े बच्चों को आम तौर पर उनके दादा दादी पाल रहे हैं। परिवार शिक्षा की कमी की वजह से काफी घर पर छोड़े बच्चों को बुरी आदतें पड़ गयी हैं, कुछ बच्चों को तो पढ़ने से नफरत होने लगी है और वे लगातार स्कूल से निकल जाते हैं या तो स्कूल छोड़ देते हैं।

इस स्थिति को देखते हुए हमारे छांनथांग केन्द्रीय स्कूल के नेताओं ने इस समस्या को हल करने के लिए स्कूल की शिक्षा में नया परिवर्तन लाने के लिए कदम उठाने का फैसला लिया, ताकि अधिकाधिक गांव में छोड़े अकेले बच्चों को स्कूल में पढ़ने का मौका प्रदान किया जा सके। 2005 में स्कूल ने गांव में छोड़े बच्चों के लिए एक बोर्डिंग परियोजना तैयार की, और स्कूलों में बच्चों को आम तौर से छह घन्टे ठरहने के बदले उन्हे स्कूल में 24 घन्टों तक पढ़ने, खाने व रहने वाला एक बोर्डिंग स्कूल में बदल दिया । इस पर चर्चा करते हुए प्रिंसिपल चओ ने कहा हमने इस परिवर्तन के लिए बहुत से साजसामानों की तैयारी की, अध्यापकों के मकानों को बोर्डिंग स्कूल में बदल दिया और कुछ क्लासों व भोजनालयों में समायोजन कर छात्रों के खाने पीने व रहने के सवाल को हल किया। इस के अलावा, हम ने बच्चों का ख्याल रखने के लिए विशेषतौर से पांच अध्यापकों को आमंत्रित किया जो पूरी तरह छात्रों के जीवन व रहने ,यहां तक कि उनके कपड़ो को धोने व बच्चों के साथ सोने, बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखने की जिम्मेदारी संभालते हैं। सभी महिला अध्यापिकांए हैं, जो स्कूल के बच्चों की मां की तरह उनका ख्याल करती हैं।

प्रिन्सिपल चओ ने जानकारी देते हुए कहा कि स्कूल ने स्थायी रसोइयों को नौकरी में रखा है जो बोर्डिंग के बच्चों के खाने पीने का ख्याल रखते हैं।

दादा वांग का बेटा और बेटी कुछ साल पहले गांव से बाहर मजदूरी करने चले गए थे, उन्होने अपने बच्चों को दादा के यहां छोड़ दिया। शुरू शुरू में दादा जी भी शंका की नजर से स्कूल के इस परिवर्तन को खुद देखने आए, उन्होने पाया कि स्कूल की शिक्षा व जीवन का इन्तेजाम बहुत ही बढ़िया है, और अपने चार पोतों व पोतियों को वहां पढ़ने के लिए भेज दिया। 2005 में मैने अपने चार पोतों व पोतियों को स्कूल में भेजने का फैसला लिया। यहां पर आने के बाद सचमुच बच्चों की पढ़ाई में अच्छी उन्नति हुई है। रात को वहां की अध्यापिका बच्चों को रजाई तक उढाती है, उनका हर प्रकार का ख्याल रखती हैं।

इस के अलावा, स्कूल ने नियमित टेलीफोन बातचीत की व्यवस्था का भी इन्तेजाम किया, बच्चे नियमित समय पर अपने परिजनों के साथ टेलीफोन कर सकते हैं , यहां तक कि गांव से बाहर मजदूरी कर रहे अपने माता पिता से भी टेलीफोन पर बातचीत कर सकते हैं। एक छात्र के परिजन ने कहा कि इस कार्रवाई ने दूर जगह में नौकरी कर रहे अभिभावकों को भारी तसल्ली मिली है। इस के अलावा, स्कूल ने नियमित टेलीफोन व्यवस्था कायम की है , बच्चे नियमित समय में अपने अभिभावकों , यहां तक कि गांव से बाहर मजदूरी कर रहे अपने माता पिता के साथ भी टेलिफोन पर बातचीत कर सकते हैं। इस की चर्चा करते हुए एक छात्र के अविभावक ने कहा बच्चों की पढ़ाई में पहले से बहुत तरक्की हुई है, बच्चे स्कूल में मन लगाकर पढ़ सकते हैं उनकी जीवन स्थिति भी बेहतर है, हम बच्चों के अभिभावक होने के नाते वाकई बहुत खुश हैं।

बच्चों की पढ़ाई में तरक्की होने के साथ सामूहिक जीवन ने बच्चों के बीच मैत्री को बढ़ाया है और उनकी समझदारी भी उन्नत हुई है। छठी क्लास की छात्रा चांग फिंग फिंग को दूसरे स्कूल से इस बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने आये तीन साल हो चुके हैं, उसने कहा मेरी पढ़ाई में पहले से कहीं उल्लेखनीय उन्नति हुई है, यहां बहुत आराम है, हमारे साथी भी बहुत हैं, क्लास के बाद हम एक साथ खेल सकते हैं। मेरी पढ़ाई और जीवन नियमित होने लगी है। हम एक दूसरे का भाईयों बहनों की तरह ख्याल रखते हैं ।

इस पर भी प्रिन्सीपल चओ व अध्यापकों को चिन्ता बनी रहती है कि स्कूल के साजसामानों के अभाव के कारण स्कूल के विकास में बाधा बनी रही है। इस बात को सरकार के विभागों ने भारी ध्यान दिया। हुए पी काउंटी के शिक्षा ब्यूरो के निदेशक ल्यू चाए पिंग ने कहा कि सरकार के संबंधित विभागों ने अनेक माध्यमों से बोर्डिंग स्कूल के निर्माण को सुदृढ़ करने के लिए अनेक कारगर कदम उठाए हैं। उन्होने कहा मौजूदा आधार पर बोर्डिंग स्कूल को अधिक अच्छा बनाए रखने के लिए , 2006 में केन्द्रीय सरकार ने बोर्डिंक स्कूल के लिए 20 लाख से अधिक य्वान धनराशि का अनुदान किया है, इस के अलावा, कुछ गिरने वाले मकानों की मरम्मत के लिए केन्द्रीय सरकार ने स्थानीय सरकार के साथ मिलकर 7 करोड़ य्वान धनराशि का समर्थन प्रदान किया है।

इन नीतियों के अन्तर्गत छांगथांग केन्द्रीय स्कूल ने नये भोजनालय , नए खेल मैदान व बोर्डिंग इमारत का निर्माण किया। इस के साथ इस स्कूल के कर्मचारियों और अध्यापकों की संख्या पहले के 20 से बढ़ कर 30 तक जा पहुंची है। प्रिन्सिपल चओ ने हमे बताया कि फिलहाल अधिकाधिक गांव से बाहर मजदूरी करने गए अभिभावकों ने बच्चों के बोर्डिंग में भर्ती करने की अभिलाषा व खुशी प्रकट की है। 2005 से बोर्डिंग स्कूल की शुरूआत के समय के 146 बच्चों से अब 414 तक जा पहुंचे हैं, इन में 90 प्रतिशत गांव से बाहर मजदूरी कर रहे लोगों के गांव में छोड़े बच्चे हैं, इस से कहीं ज्यादा बच्चे हमारे बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने के लिए आना चाहते हैं।

गांव से बाहर मजदूरी कर रहे लोगों के बच्चों को लम्बे समय तक माता पिता का प्यार नहीं मिल पाता है, जबकि इस स्कूल में वह प्यार भरे माहौल में पढ़ते लिखते और पल रहे हैं। उन्होने हमे बताया स्कूल ही उनका असली घर है। हम स्कूल के माहौल में पल रहे हैं, यह हमारा घर है, हमे यह घर बहुत पसंद है।