23 अप्रैल को पेइचिंग में आयोजित प्रथम मानवाधिकार मंच में भाग लेने वाले चीनी व विदेशी विशेषज्ञों ने पेइचिंग का दौरा किया। संवादताताओं के साक्षात्कार में फिलिपिंग के उप विदेश मंत्री की विशेष सहायक सुश्री लापिंग ने कहा कि तिब्बत सवाल चीन का अंदरुनी मामला है और किसी भी व्यक्ति को इस में दखल देने का अधिकार नहीं है।
उन्होंने यह बात ऐसे मौके पर कही , जबकि उन्हें पता चला कि अमरीकी उप विदेश मंत्री डोब्रियांस्की ने चीन के डटकर विरोध की परवाह न कर दलाई लामा से भेंट की ।
अल्जीरियाई विदेश मंत्रालय के बहुपक्षीय विभाग के उपप्रभारी श्री साडी ने भी उक्त विचार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि तिब्बत चीन का एक भाग है। अन्य देशों को चीन की राजकीय प्रभुसत्ता का सम्मान करना और चीन के अंदरुनी मामलों में दखल नहीं देना चाहिए।
चीनी केंद्रीय जातीय विश्वविद्यालय के उपप्रधान श्री शेसराप निमा ने पेरिस संसद द्वारा दलाई लामा को पेरिस के माननीय नागरिक की उबाधि प्रदान करने पर नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने कहा कि लम्बे अर्से से मानवाधिकार कुछ पश्चिम व्यक्तियों का एक साधन मात्र रहा है । उन्हों के द्वारा तथाकथित तिब्बत का मानवाधिकार सवाल वास्तव में तिब्बती स्वाधीनता का मतलब ही है।
चीन के नानकैई विश्वविद्यालय के मानवाधिकार अनुसंधान केंद्र के उप प्रधान श्री रेन छांग जेन ने कहा कि कुछ पश्चिमी देशों ने तिब्बत सवाल जो अपना रवैया व्यक्त किया है , उस से जाहिर है कि वे शक्तिशाली चीन देखना नहीं चाहते और मानवाधिकार सवाल पर दोहरे मापदंड अपनाते हैं। लेकिन ये लोग अपने देशों की जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं, सिर्फ कुछ राजनीतिक शक्तियों के हितों का है ।(रूपा)
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