लाचू तिब्बत की यातुंग काऊंटी के एक साधारण किसान-परिवार की संतान है।चालू साल की उच्च स्तरीय राष्ट्रीय परीक्षा में वह श्रेष्ठ अंकों से पास होकर चीन के मशहूर उच्चशिक्षालय-- छिंगह्वा विश्वविद्यालय के जल-संरक्षण व पन-बिजली इंजीनियरिंग विभाग का एक छात्र बना है।यातुंग काऊंटी के अन्य 26 छात्र भी इस साल भीतरी इलाके के तिब्बती स्कूलों में भर्ती हुए हैं।और ज्यादा छात्रों को मेहनत से पढने की प्रेरणा देने के लिए इस काऊंटी की सरकार ने ऐसी एक संगोष्ठी का आयोजन किया,जिस में लाचू और भीतरी इलाके के तिब्बती स्कूलों में दाखिल हुए अन्य छात्रों ने भाग लिया।काऊंटी सरकार ने लाचू को 3000 य्वान का इनाम दिया और निर्णय लिया कि उन के परिवार की वस्तुस्थिति के अनुसार उन के लिए चंदा जुटाने की कोशिश की जाएगी।लेकिन लाचू ने इसे अस्वीकार किया।उन्हों ने कहा कि वह सरकार से पढाई का कर्ज लेने के लिए आवेदन कर सकते हैं।स्नातक होने के बाद वह कर्ज का भुतगान करेंगे। अगर वह ऐसा करने में अक्षम रहे,तो समाज में योगदान करना मात्र खोखली ही बात होगी।
कसांगवांगचू लाचू के अध्यापक रहे।उन के अनुसार जब लाचू यातुंग के प्राइमरी स्कूल में पढ रहा था,तो वह हर साल परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करता था।वह अध्यापकों का बहुत समादर करता था और अक्सर सहपाठियों की सहायता करता था।ज्ञान के प्रति उस की जिज्ञासा बहुत अधिक थी।वह न सिर्फ खुद मेहनत से पढता था,बल्कि पढाई में कमजोर सहपाठियों की भी मदद करता था।उस की उल्लेखनीय सांगठनिक शक्ति भी है और अक्सर कक्षा में कहानियां सुनाने और अन्य मनोरंजन-गतिविधियों का आयोजन करता था ।
भीतरी इलाके के तिब्बती स्कूल में पढने के दौरान लाचू ने अपना सारा समय ढेर-सारे अध्ययन के कामों में लगाया।पर अवकाश के समय वह घर लौटकर मां के साथ जड़ी-बूटियों को इकठ्ठा करने पहाड़ पर जाता था,ताकि पारिवारिक खर्च की कुछ पूर्ति हो सके।स्थानीय लोगों ने कहा कि उन्हों ने अनेक बार लाचू को बाजार में जड़ी-बूटियां बेचते देखा है।
लाचू के मां-बाप की सब से बड़ी अभिलाषा लाचू और उस के छोटे भाई दोनों को अच्छे स्कूलों में भर्ती कराना है।इन दोनों के एकाग्रता से पढ सकने के लिए उन की मां ने उन्हें पिता के बीमार होने की बात भी नहीं बताई।
लाचू के पिता तानजंगवांगबू ने कहाः
"2004 के अंत में मुझे गंभीर बीमारी हुई। उस समय मैंने जीवन का अंत नजदीक आने का एहसास किया और पत्नि से कहा कि दोनों बच्चे भीतरी इलाके में पढ़ रहे हैं । अकेले तुम्हारे परिश्रम से उन की पढाई पूरी नहीं होगी। अपनी मदद के लिए लाचू को वापस बुला लो,सिर्फ उस के छोटे भाई को स्कूल में रहने दो ।"
हर बार जब लाचू के पिता इस बात का जिक्र करते हैं,उन के चेहरे पर पछतावे का भाव साफ झलकता हैं। उन्हों ने कहा कि अगर उस समय लाचू को स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर किया गया होता,तो उस की आज जैसी अच्छी स्थिति नहीं होती।
तिब्बत से लौटने के बाद हमारे संवाददाता ने पेइचिंग में लाचू को देखा।वह छिंगह्वा विश्वविद्यालय में प्रथम वर्ष के नियमित कार्यक्रम के अनुसार अन्य नए चेहरों के साथ सैन्य ट्रेनिंग ले रहा था।चिलचिलाती धूप में उसका चेहरा लाल हो गया था,जिस से वह ज्यादा स्वस्थ और ओजस्वी दिखाई पड़ रहा था।उस ने कहाः
"छिंगह्वा विश्वविद्यालय में पढना मेरा एक सपना रहा है।भीतरी इलाके के हाई स्कूल में पढ़ते समय मैं ने खूब अधिक मेहनत की।स्कूल में मुझ से दो वर्ष बड़ी एक बहन को छिंगह्वा विश्वविद्यालय में दाखिला मिला था। मैं ने उस का पीछा करने की ठान ली।"
लाचू के अनुसार प्राइमरी व जूनियर मिडिल स्कूल में पढ़ने के दौरान उन्हें 9 वर्षीय अनिवार्य शिक्षा-व्यवस्था की सुविधा मिली है। इस व्यवस्था के तहत शिक्षा मुफ्त रूप से दी जाती है अथार्त शिक्षा संबंधी कोई भी फीस देने की जरूरत नहीं है। भीतरी इलाके के हाई स्कूल में श्रेष्ठ प्रदर्शन के कारण उन्हें पढ़ने के साथ-साथ खाने और रहने की फीस में भी छूट दी गई।ऐसे में वे स्कूल के सभी पाठ्यक्रम पूरे कर सके। छिंगह्वा विश्वविद्यालय में आते ही उन्हों ने पढने के अवकाश में वेतनयुक्त काम करने की अर्जी दी,जिसे स्वीकार कर लिया गया है।पाठ्यक्रम शुरू होने से पहले उन्हों ने अपने लिए अध्ययन की योजना बनाई,जिस के अनुसार पहले वर्ष में वह अपना पूरा समय अध्ययन में लगाएंगे,ताकि अध्ययन की पुख्ता नींव पड़े।दूसरे वर्ष में वह अपने कुछ समय को व्यावहारिक गतिविधियों में लगाएंगे,ताकि समाज में घुलने-मिलने की उन की शक्ति बढे।तीसरे और चौथे वर्ष में वह आगे अध्ययन यानी कि एमबीए-डिग्री पाने के लिए तैयारी करेंगे।पर उन्हों ने यह भी कहा कि अपने परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति को देखते हुए उन्हें लगता है कि स्नातक होने के बाद सीधे एमबीए पढना उन के लिए कठिन होगा।इसलिए यह भी संभव है कि वह स्नातक होने के बाद पहले तिब्बत लौटकर कोई काम करें, एक, दो वर्ष बाद फिर आगे अध्ययन करें।(श्याओ थांग)