2008-04-23 18:19:27

मानवाधिकार विशेषज्ञों के विचार में कुछ पश्चिमी देश तिब्बत सवाल के बहाने चीन के भीतरी मामलों में दखल देते हैं

पेइचिंग में आयोजित प्रथम मानवाधिकार मंच में भाग लेने वाले चीनी व विदेशी विशेषज्ञों के विचार में कुछ पश्चिमी देशों ने हाल में तिब्बत के मानवाधिकार सवाल के बहाने चीन पर जो आरोप लगाया है , वह वास्तव में तिब्बत सवाल से चीन के भीतरी मामलों में दखलंदाजी है ।

चीनी केंद्रीय जातीय विश्वविद्यालय के उपप्रधान श्री शेसराप निमा ने कहा कि चीन विरोधी पश्चिमी शक्तियों ने इसीलिये तिब्बत के मानवाधिकार सवाल में दिलचस्पी दिखायी है , क्योंकि वे नैतिकता के बजाये अपनी बल राजनीति व अधिपत्य का ख्याल रखते हैं । पश्चिम द्वारा प्रस्तुत तथाकथित तिब्बत के मानवाधिकार सवाल का मतलब तिब्बती स्वाधीनता ही है।

भारतीय नयी दिल्ली नीतिगत अनुसंधान केंद्र के प्रधान श्री गुरुस्वामी ने गत वर्ष में तिब्बत की एक हफ्ते की यात्रा की। उन्होंने कहा कि तिब्बत का तेज विकास हुआ है और वहां जनता अपने जीवन स्तर से संतुष्ट है।

उन्होंने कहा कि कुछ पश्चिमी देश तिब्बत सवाल से चीन के गृह मामलों में दखल देते हैं।

रूसी जन मैत्री विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय कानून अनुसंधान के प्रधान श्री अबाशिज ने कहा कि तिब्बत सवाल चीन का गृह मामला है और ऐसे व्यक्ति को तिब्बत मामले पर चर्चा करने का अधिकार नहीं है जो तिब्बती इतिहास की जानकारी नहीं रखता।

अमरीकी कोलम्बिया विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय संबंध कालेज की प्रोफेसर सुश्री कोर्पेला ने कहा कि जिन व्यक्तियों ने तिब्बत सवाल को लेकर चीन के मानवाधिकार पर आरोप लगाया है , वे वास्तव में अतीत व वर्तमाम तिब्बत से परिचित नहीं हैं।

हिंदू अखबार के प्रधान सम्पादक श्री राम ने कहा कि अर्थतंत्र के विकास और क्षेत्रीय भाषा, संस्कृति, धर्म को समान रुप से बढ़ाने आदि से तिब्बत का चौतरफा विकास साकार होगा।(रूपा)