चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के दक्षिणी छोर पर जो एक काऊंटी है, उस का नाम आप ने शायद सुना हो। उस का नाम है यातुंग। वह एक मशहूर काऊंटी है, क्योंकि वह पूर्व में भूटान और पश्चिम में सिक्किम से सटी हुई है। कुछ समय पूर्व हमारे संवाददाता ने इस काऊंटी की यात्रा की।
जब हमारे संवाददाता यातुंग काऊंटी के मरकजी इलाके की एक सड़क पर घूम रहे थे,तो सड़क के ऊपर लटके एक पट्टे पर उन की नजर पड़ी ,जिस पर लाचू को छिंगह्वा विश्वविद्यालय में दाखिला मिलने पर बधाई के शब्द लिखे हुए थे।यह पट्टा बहुत से राह-चलतों को आकर्षित कर रहा था।चीन के इतने दूर-दराज के क्षेत्र में किसी के चीन के उच्च विश्वविद्यालय का छात्र बनना निस्संदेह एक बेहद उत्साहवर्द्धक बात है।
छिंगह्वा विश्वविद्यालय चीन के सुप्रसिद्ध उच्च शिक्षालयों में से एक है।राष्ट्रीय परीक्षा में उत्तीर्ण और सूची में सब से ऊपर रहने वाले छात्रों को ही इस विश्वविद्यालय में दाखिला मिल सकता है।लाचू यातुंग काऊंटी के एक साधारण किसान-परिवार की संतान है।चालू साल की उच्च स्तरीय राष्ट्रीय परीक्षा में वह श्रेष्ठ अंकों से पास होकर छिंगह्वा विश्वविद्यालय के जल-संरक्षण व पन-बिजली इंजीनियरिंग विभाग का एक छात्र बना है।यातुंग काऊंटी के इतिहास में वह छिंगह्वा विश्वविद्यालय में दाखिल होने वाला इस काऊंटी का पहला छात्र है।उन्हें बधाई देने के लिए उन के संबंधियों और मित्रों ने उक्त पट्टा बना कर टांगा है। स्थानीय स्कूलों के अनेक छात्र उन्हें अपने आदर्श के रुप में देख रहे हैं।12 साल के जाशीतची ने कहाः
"वह हमारा गौरव है,क्योंकि उन्हों ने हमारे स्कूल के लिए सम्मान प्राप्त किया है। मैं उन की ही भांति अच्छी तरह सीखूंगा और अन्य एक सुप्रसिद्ध उच्च शिक्षालय-- पेइचिंग विश्वविद्यालय का छात्र बनने की कोशिश करूंगा। "
स्थानीय लोगों की नजर में लाचू को यह सफलता बहुत ज्यादा मुश्किल से मिली है।यातुंग काऊंटी समुद्र की सतह से कोई 4000 मीटर ऊंचे पहाड़ी क्षेत्र में अवस्थित है।जब हमारे संवाददाता कीचड़ भरी टेढी-मेढ़ी पगडंडी से लाचू के घर पहुंचे,तो वह अपनी मां और छोटे भाई के साथ पेइचिंग में स्थित छिंगह्वा विश्वविद्यालय के लिए रवाना हो रहा था।उन के घर में सिर्फ उन के पिता और मंदबुद्धि चाचा रह गए हैं।घर में बहुत कम फर्निचर है,पर घर साफ-सुथरा है।एक मकान की दीवार पर लाचू के बहुत से प्रशस्ति-पत्र लगे हुए हैं।
लाचू के पिता तानजंगवांगबु बहुत दुबले-पतले हैं।लाचू की चर्चा करते हुए उन की आंखें भर आईं। उन्हों ने कहाः
"मैं बूढ़ा हो गया हूं।तबीयत भी खराब है। सो घर में श्रमिकों की कमी है और जीवन बहुत कठिन है। पूरे परिवार का जीवनयापन लाचू की मां द्वारा पहाड पर जाकर लकड़ियों और जुड़ी-बूटियों को जुटाने पर आश्रित है।यह मकान काऊंटी सरकार की मदद से बनाया गया है।कम्युनिस्ट पार्टी की अच्छी नीति और काऊंटी सरकार के भारी समर्थन के बगैर मेरा बेटा इतने वर्षों तक पढाई नहीं कर सकता है।"
लगभग 3000 य्वान की वार्षिक आय वाले इस परिवार का जीवन समृद्ध नहीं है,लेकिन पढ़ने का प्रगाढ माहौल है।लाचू और उन का छोटा भाई बचपन से ही कड़ी मेहनत से पढ़ रहे हैं।सन् 2000 में लाचू प्राइमरी स्कूल की पढ़ाई पूरी कर शानतुंग प्रांत की राजधानी चिनान शहर के तिब्बती मिडिल स्कूल में भर्ती हुआ था,फिर 2004 में इस प्रांत के प्रमुख हाई स्कूल—तुंगइन न0.1 हाई स्कूल का छात्र बना।उन्हों ने देश के भीतरी इलाके में जूनियर और सीनियर की शिक्षा प्राप्त की और वर्षो तक अच्छे अंकों से श्रेष्ठ छात्र का सम्मान प्राप्त किया।उन का छोटा भाई ओचू उन से जरा भी कम नहीं है। इस साल वह मध्यम स्तर की प्रदेशीय परीक्षा में 583 अंकों से उत्तीर्ण हुआ और च्यांगसू प्रांत के नानथुंग शहर स्थित तिब्बती मिडिल स्कूल में दाखिल हुआ। पढाई में लाचू और उन के छोटे भाई ओचू की मेहनत से पूरी यातुंग काऊंटी बहुत प्रभावित हुई है।
यातुंग काऊंटी के शिक्षा ब्यूरो के उपप्रभारी श्री तछिंगचोमा ने कहाः
"केंद्रीय सरकार तिब्बत में शिक्षा-कार्य को हमेशा से भारी महत्व देती आई है।उस ने तिब्बत के लिए अनेक उदार नीतियां बनाकर लागू की हैं। वर्ष 1985 में भीतरी इलाके के अधिकांश प्रांतों व शहरों में तिब्बती कक्षाएं शुरू की गईं थीं।तिब्बत के बच्चे प्राइमरी स्कूल की पढाई पूरी करने के बाद प्रदेशीय स्तर की परीक्षा में भाग ले सकते हैं और परीक्षा में श्रेष्ठ अंकों से उत्तीर्ण होकर भीतरी इलाके के प्रांतों व शहरों में स्थापित तिब्बती मिडिल स्कूल जा सकते हैं । लाचू तिब्बत के श्रेष्ठ छात्रों में से एक है।"
इस लेख का दूसरा भाग अगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े।(श्याओ थांग)