इधर के दिनों में कुछ देशी विदेशी मीडियाओं ने अलग अलग तौर पर लेख जारी करके तिब्बती स्वाधीनता की आलोचना की और पश्चिमी दुनिया तथा मीडियाओं के संबंधित रूखों पर नए सिरे से विचार किया।
हांगकांग के अखबार शींग ताओ रिपाओ ने 18 तारीख को कहा कि तिब्बती युथ कांग्रेस के अध्यक्ष सीरन वांगजडं ने हाल में हांक लगायी कि वह आत्मघाती हमले समेत हिंसक कार्यवाई से किसी भी कीमत पर तिब्बत की स्वाधीनता प्राप्त करने की कोशिश करेगा।
लेखक श्री सेउमस मिलने ने 17 तारीख को ब्रिटिश अखबार गार्दियन में समीक्षा जारी करके कहा कि अमरीका व युरोप की मीडियाओं ने तिब्बत समस्या पर जबरदस्त प्रतिक्रियाएं की हैं, जबकि दुनिया में कुछ गंभीर मुठभेड़ होने वाले क्षेत्रों को नजरअंदाज किया। यह न केवल पाखंडतापूर्ण है साथ ही दोहरे मापदंड की समस्या भी है, जबकि इसी समस्या पर कुछ पश्चिमी देशों की भागीदारी ने निर्णायक भूमिका अदा की है। उन्होंने कहा कि पश्चिमी बड़े देशों को अपना हस्तक्षेप बंद करना चाहिए, क्योंकि उपनिवेशवाद का प्रभुत्व जमाने का युग सदा के लिए लद हो चुका है।
जर्मनी के हंदेलस्ब्लाट की 15 तारीख की रिपोर्ट में कहा गया कि जर्मनी के अर्थतंत्र जगत को चिंता है कि गर्मागर्म की गयी तिब्बत पर बहस और जर्मन प्रधान मंत्री मर्केल की दलाई लामा से फिर मुलाकात करने की इच्छा से चीन में जर्मनी के हितों को नुकसान पहुंचाया जाएगा। (श्याओयांग)