तिब्बती जाति गाने नाचने में निपुण हैं । लम्बे समय में तिब्बती जाति में प्रचुर नृत्य गान व वस्त्र संस्कृति पैदा हुई है । तिब्बती जाति की इस विशेष श्रेष्ठता का लाभ उठाकर सानच्यांगय्वान से स्थानांतरित करने वाले तिब्बती चरवाहे अपने घर में"गांववासी के घर में आनंद"वाले पर्यटन उद्योग का विकास कर रहे हैं । वे यहां की यात्रा करने आने वाले शहरी पर्यटकों को तिब्बती शैली वाला विशेष तिब्बती खाना परोसते हैं और साथ ही तिब्बती नृत्य-गान और परम्परागत वस्त्र प्रदर्शनी आयोजित करते हैं । पर्यटन उद्योग के विकास से उन की आय बड़ी हद तक उन्नत हुई है।
तिब्बती बंधु निमा के पिता का नाम सामज़ुप है । तीन वर्ष पूर्व वे अपने बेटे के साथ नए गांव में आए । पठारीय घास मैदान में सारा जीवन बिताने वाले बूढ़े सामजुप को आज का जीवन बहुत अच्छा लगता है । उन का कहना है ;
"पहले हम पशुपालन क्षेत्र में रहते थे और पशु पालन पर निर्भर थे । इस नए गांव में स्थानांतरित होने के बाद हम बिजली व पेयजल का प्रयोग करते हैं और रिहायशी मकान भी सुधर गया है । विशेष कर बीमारी के इलाज में बहुत सुविधा मिली है । पहले किसी डॉक्टर को देखने के लिए हमें 70-80 किमोमीटर दूर स्थित अस्पताल में जाना पड़ता था। लेकिन आज हमारे गांव में ही चिकित्सालय है । बहुत सुविधाजनक है। मैं स्कूल में नहीं गया था , मेरा बेटा निमा भी । लेकिन आज मेरे पौत्र शिक्षा ले सकते हैं । मुझे लगता है कि बाद में विश्वश्विद्यालय में पढ़ना सब से अच्छी बात होगी ।"
सच है, स्थानांतरण से तिब्बती चरवाहों के जीवन में एक और महत्वपूर्ण बात हुई है कि उन के बच्चे स्कूली शिक्षा पा सकते हैं । छांगच्यांगय्वान जातीय स्कूल गांव के मध्य में स्थित है । यहां के विभिन्न प्रकार के संस्थापन शहरी स्कूलों के बराबर हैं । वर्ष दो हज़ार छह की जुलाई माह में स्कूल का निर्माण पूरा किया गया और इसी साल के सितम्बर माह में प्रथम खेप वाले विद्यार्थियों ने दाखिला लिया । गांव के छह से बारह वर्षीय उम्र वाले बच्चों ने स्कूल में प्रवेश लिया है।
तिब्बती बंधु निमा का आठ वर्षीय बेटा सोइनाम कोंपो इसी स्कूल में पढ़ता है । स्कूल से घर वापस लौट कर सोइनाम ने संवाददाता को देखा । उसे बहुत खुशी हुई । उस ने हमारे संवाददाता से कहा कि वह सच्चे माइने में यहां का नया जीवन पसंद करता है । नन्हे सोइनाम ने कहा:
"पहले स्कूल न होने के कारण मैं शिक्षा नहीं ले सकता था । लेकिन आज मैं स्कूल जाकर पढ़ता हूँ । हम छांगच्यांगय्वान जाति के स्कूल में चीनी हान भाषा, तिब्बती भाषा और गणित पढ़ते हैं । हमारा क्लासरूम बहुत विशाल और स्वच्छ है ।"
स्थानांतरित चरवाहों के बच्चों को शिक्षा पाने का अवसर मिला है। आज तक स्थानांतरित न हो पाने वाले अनेक चरवाहे भी अपने बच्चों को गांव में रह रहे रिश्तेदारों के यहां स्कूल में पढ़ने के लिए छोड़ने आते हैं। अधिकांश तिब्बती चरवाहों के लिए शिक्षा पाना उन के ऊंचे पठार से नीचे आने का प्रमुख लक्ष्य है और आशा भी । छांगच्यांगय्वान पारिस्थितिकी नए गांव की जिम्मेदार सुश्री चांग श्याओवन ने जानकारी देते हुए कहा:
"सरकार ने विद्यार्थियों को पढ़ाई की फ़ीस और पाठ्य पुस्तकों की फ़ीस मुआफ कर दी है , साथ ही गरीब परिवार के विद्यार्थियों को भत्ता भी प्रदान किया है । मुझे लगता है कि इन तिब्बती चरवाहों के बच्चों का सांस्कृतिक स्तर उन्नत होने के बाद भविष्य में उन का जीवन और सुनहरा होगा।"
छिंगहाई प्रांत की यात्रा के दौरान हमारे संवाददाता ने देखा कि इधर के कई सालों में पशुपालन का स्थान घास मैदान की वापसी तथा पारिस्थितिकी उत्प्रवास आदि परियोजनाएं लागू की जाने के बाद सानच्यांगय्वान क्षेत्र के पारिस्थितिकी संरक्षण में प्रारंभिक उपलब्धि हासिल हुई है। भावी कई सालों में चीन सरकार सानच्यांगय्वान पारिस्थितिकी संरक्षण तथा किसानों व चरवाहों के उत्पादन व जीवन के बुनियादी संस्थापनों के निर्माण पर जोर देगी । विश्वास है कि लोगों की अथक कोशिशों के जरिए सानच्यांगय्वान क्षेत्र का प्राकृतिक पर्यावरण और तिब्बती चरवाहों का जीवन और अच्छा होगा । (श्याओ थांग)