चीनी राष्ट्रीय संवाद समिति शिंगहवा न्यूज एजेन्सी ने 6 तारीख को एक आलेख जारी कर कहा कि इतिहास का पन्ना पलटें और तिब्बत की शान्ति मुक्ति के प्रारम्भिक काल में दलाई लामा की कथनी व करनी का सिंहावलोकन करें तो आप पाएगें कि वह आगे पीछे दो किस्म के आदमी रहे हैं।
1951 में चीनी केन्द्रीय सरकार और तिब्बत स्थानीय सरकार ने एक समझौता संपन्न किया और समझौते में तिब्बत में जातीय स्वायत्त क्षेत्र निश्चित करने व तिब्बत के विदेशी मामलों को केन्द्रीय सरकार प्रबंधन करेगी आदि विषय शामिल थे।
1954 में दलाई लामा चीन लोक गणराज्य की पहली राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा में भाग लेने पेइचिंग गए और सम्मेलन में उन्होने अपने व्याख्यान में कहा कि तिब्बती जनता ने अपने अनुभवों से यह महसूस किया है कि तिब्बत में धार्मिक विश्वास स्वतंत्र है। इस सम्मेलन में दलाई लामा राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा की स्थायी कमेटी के उपाध्यक्ष भी चुने गए।
तिब्बत की शान्ति मुक्ति से पहले तिब्बत में समान्तवादी गुलाम दास व्यवस्था जारी थी। तिब्बत के उच्च स्तर के प्रशासन गुट के चन्द लोगों ने इस व्यवस्था में सुधार लाने का विरोध किया, 1959 में तिब्बत के प्रतिक्रांतिकारी गुलाम दास मालिकों ने विदेशों के चीन विरोधी शक्तियों के साथ मिलकर तिब्बत के ल्हासा में सशस्त्र उपद्रव मचाया, उपद्रव के सरगना दलाई लामा का अपहरण कर भारत में फरार हो गए।
दलाई लामा के विदेश में निष्कासित होने के बाद, केन्द्रीय सरकार ने उनके पूर्व पद को पांच साल तक बरकरार रखा, लेकिन दलाई लामा ने विदेशों की चीन विरोधी शक्तियों व विभाजनवादियों के भड़काव में पूरी तरह अपने देश प्रेम के सभी वचनों को त्याग दिया और तिब्बत एक स्वतंत्र देश है का बिगुल बजाना शुरू कर दिया और तब से भारी संख्या में मातृभूमि विभाजन की गतिविधियों में बढ़ चढ़ कर भाग लेने लगे, उनके आगे पीछे की कार्रवाईयों को देखें तो वह एकदम दो किस्म के आदमी लगते है।
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