2008-04-02 10:08:53

चीन में प्रथम नेत्रहीन महिला पियानो समस्वरण कर्ता--छन-यान

मित्रो,सुश्री छन-यान न केवल चीन की प्रथम नेत्रहीन महिला पियानो समस्वरण कर्ता हैं,बल्कि चीनी नेत्रहीनों में अन्य अनेक आश्चर्यजनक कार्य भी उन्होंने किए हैं। वह वर्ष 1973 में उत्तरी चीन के हपे प्रांत में जन्मीं और पेइचिंग में पली-बढी हैं।जन्म से ही वे मोतियाबिंद रोग से ग्रस्त हो गईं थीं। बाल्यावस्था में ऑपरेशन करवाने के बाद उन की मात्र बाईं आंख में थोड़ी सी रोशनी वापिस आई ,पर दाईं आंख जस की तस पूरी तरह बेकार ही रही । जन्मजात विकलांग होने के कारण सिर्फ 5 महीने की आयु में उस के मां-बाप ने उसे छोड़ दिया।इस तरह उन की परवरिश उन की दादी द्वारा की गई। सामान्य बच्चों की तरह स्वस्थ रूप से विकास हो सके, इसलिए दादी ने उन की सुनने की शक्ति और स्पर्श-शक्ति का विकास करने की बड़ी कोशिश की।

4 साल की उम्र में छन-यान ने अपनी दादी के विशेष निर्देशन में चलना सीखना शुरू किया। उन की दादी विभिन्न मूल्यों के विभिन्न प्रकार के सिक्के एक-एक करके जमीन पर फेंकती थीं,उन के नीचे गिरने की आवाज को पहचानने और इन आवाज़ों का पीछा करने के लिए कहती थीं। थोड़ी बड़ी होने के बाद उन्हों ने दादी के निर्देशन में सिलाई का काम सीखना शुरू किया। सीखने के दौरान उन्हें न जाने कितने दुख व दर्द झेलने पड़े। उन के दोनों हाथों पर सुइयों से घाव का जाल सा बन जाता था।लेकिन दुख के बाद सुख आता है।कड़े अभ्यास से उन के भावी जीवन में और पियानो को समस्वरित करने की तकनीक पर अधिकार पाने में इस अनुभव से उन्हें बडी मदद प्राप्त हुई। उन्हों ने कहा कि उन के देश में एक मशहूर पियानो समस्वरण कर्ता बनने का श्रेय उन की दादी को जाता है। अपनी दादी की याद करते हुए उन का कहना हैः

"मेरी दादी का मेरे जीवन पर सब से अधिक प्रभाव पड़ा है। दादी की स्नेहपूर्ण देखरेख में मैं पली-बढी हूं। जब मैं छोटी थी,तो दादी मेरे भूखों मर जाने की आशंका से परेशान रहती थीं। इसलिए उन्हों ने जी-जान से मुझे कोई न कोई कौशल सिखाने की कोशिश की। वह मुझ से कहा करती थीं कि तुम जो करना चाहते हो,वह करो और सफलता पा सकने या न पा सकने की मत सोचो। काम करने की प्रक्रिया कभी कभार खुद काम के महत्व से कहीं अधिक उपयोगी है। सच्चे दिल औऱ कड़ी मेहनत से शुरू किए गए काम से अंततः सफलता मिलती है। यही मेरे साथ हुआ है।"

छन-यान का बचपन टेढ़े-मेढे रास्ते से गुजरा। नेत्रहीन होने के कारण उन्हें बहुत से स्कूलों ने दाखिला देने से इन्कार कर दिया। 13 साल की आयु में उन्हें पेइचिंग के एक नेत्रहीन स्कूल में पढने का मौका मिला। क्योंकि उन की संगीत में ज्यादा दिलचस्पी थी और उन्हें अनेक प्रकार के संगीत-वाद्य बजाने का प्रारंभिक कौशल प्राप्त हुआ,इसलिए उन्हों ने स्कूल में पियानो समस्वरण कक्षा की छात्रा बनना तय किया। स्कूल में पढने के अनुभवों की चर्चा करते हुए उन्हों ने कहाः

"शुरू में मैं ने सोचा कि पियानो को समस्वरित करना उसे बजाने की तरह अपेक्षाकृत सरल है, पर वास्तविकता यह है कि एक ही पियानो 8000 से अधिक कल-पुर्जों से बनता है। हमें हर कल-पुर्जे के निश्चित स्थान से परिचित होने और उसे लगाने व हटाने की तकनीक पर महारत हासिल करने की जरूरत थी,कभी-कभार हमें खुद पूरक कल-पुर्जे बनाना था। इस के अलावा बढई का काम सीखना भी हमारे के लिए अनिवार्य था।यह काम करना हमारे लिए सब से कठिन है। हथौडियां,खूंटियां,पेच और काष्ठ लड़कियों के लिए क्या मतलब रखते हैं ? हां,कठोर है। स्कूल में पढने के दौरान मेरे और मेरे जैसी अन्य लड़कियों के हाथों पर घाव ही घाव बन गए और कभी भी हमारे हाथ सामान्य लोगों के हाथों जैसे भले-चंगे नहीं रहे"

8000 से अधिक कल-पुर्जों की याद करना सामान्य लोगों के लिए भी बहुत कठिन काम है।कल्पना कीजिए छन-यान जैसे नेत्रहीनों के लिए यह कितना कठिन होगा ? पर छन-यान ने कभी हार नहीं मानी। वह अपने को सामान्य व्यक्ति समझकर प्रतिदिन पियानो को समस्वरित करने के अभ्यास में 14.15 घंटे लगाती थीं। आखिरकार कड़ी मेहनत और आत्मविश्वास के सहारे छन-यान ने पियानो को समस्वरित करने और खराब पियानो की मरम्मत करने की उच्च तकनीक पर अधिकार प्राप्त कर लिया।