2008-03-28 14:07:44

थाई विद्वानों ने कहा कि पश्चिमी मीडिया तिब्बत सवाल के बारे में रिपोर्टिंग देने पर व्यवसायिक आचारी नहीं है

14 मार्च को चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश और उस के आसपास क्षेत्रों में दगे हुए हैं , कुछ बदमाशों ने मारपीट , लूट पाट और आग जलाने की कुत्सित हरकतें की हैं , जिस पर विश्व का ध्यान गया हुआ है । इस घटना को लेकर चाइना रेडियो इंटरनेशनल के बैंकाक में स्थित पत्रकार चांग तुंग मई ने हाल ही में थाइलैंड के चीनी सवाल विशेषज्ञ श्री छ्येन फंग के साथ बातचीत की । उन का मानना है कि पश्चिमी मीडिया तिब्बत सवाल के बारे में रिपोर्टिंग देने पर व्यवसायिक आचारी नहीं है ।

श्री छ्येन फंग थाई चीनी भाषी अखबार एशियाई दैनिक एजेंसी के उपाध्यक्ष हैं । उन की निगाह ल्हासा दंगे पर बराबर टिकी हुई है । इस घटना की चर्चा में उन्हों ने कहा कि पश्चिमी मीडिया ने समय से पहले इस घटना की रिपोर्ट पेश की ।

मीडिया के लिये ताजी खबर देना जरूरी तो है ही , पर हमें खबर को तोड़ मरोड़कर पेश नहीं करना चाहिये । आप को नेपाली पुलिसकर्मियों द्वारा निष्कासित तिब्बती फूट परस्तों को भगाये जाने की कार्यवाही को चीनी पुलिसकर्मियों की कार्यवाही नहीं कहना चाहिये । वह कार्यवाही वास्तव में नेपाल में हुई है , पर चीनी तिब्बत से क्या वास्ता है ।

श्री छ्येन फंग ने उदाहरण देते हुए कहा कि पश्चिमी मीडिया ने जिन चीनी पुलिसकर्मियों द्वारा व्यक्तियों की गिरफ्तारी के बारे में रिपोर्ट पेश की है , वास्तव में वे घायल लोगों की वाहन पर चढाने में मदद कर रहे थे और वह वाहन कोई पुलिस कार के बजाये एक बचाव कार ही है । पश्चिमी मीडिया व टी वी पर बार बार यह दृश्य भी दिखाया गया है कि चीनी पुलिस ने जिस तिब्बती युवा को पीटा , वास्तव में वह तिब्बती युवा एक डाक्टर है और एक बीमार हान जातीय बच्चे को बचाने में बदमाशों द्वारा उस के सिर को चोट लगायी गयी । तत्काल में तिब्बत में ल्हासा दंगे के कुछ प्रत्यक्षदर्शी पश्चिमी पर्यटकों ने वास्तविक स्थिति अपने कैसरों व वीडियो कैमरों में बंद कर ली है और सामने आकर अपनी आंखों देखा हाल भी बता दिया है ।

श्री छ्येन फंग ने कहा कि संबंधित खबरों से साफ साफ देखा जा सकता है कि ल्हासा घटना की पूरी प्रक्रिया एक हिंसक प्रक्रिया ही है , न कि है कोई शांतिपूर्ण प्रदर्शन । उन का कहना है कि अब जर्मनी के कुछ मीडिया ने अपनी गलती मान ली है , पर उन्हों ने माफी नहीं मांगी है , सिर्फ खेद कहा है , यह मीडिया में कार्यरत व्यक्तियों का आचारण नहीं है । इस से जाहिर है कि सचमुच ही कुछ व्यक्तियों ने तिब्बत सवाल को तोड मरोड़कर रिपोर्टिंग की है और 14 मार्च घटना के बारे में यह रिपोर्ट पेश की है कि स्थानीय तिब्बती जनसमुदाय के शांतिपूर्ण प्रदर्शन को चीनी अधिकारियों द्वारा बल प्रयोग से दबाया गया है । यह ही सफेद को काला कहा गया है ।

श्री छ्येन फंग ने कहा है कि ल्हासा दंगे का परिणाम इसीलिये गम्भीर है , क्योंकि तिब्बती स्थानीय सरकार को जातीय सवाल पर सयम रखने से प्रतिक्रिया करने में देरी हो गयी है , यह कतई पश्चिमी मीडिया का मानना जैसा नहीं है कि तेजी से बलप्रयोग के माध्यम से दंगे फसाद का दमन किया गया है । 

मैं चीन सरकार की जातीय नीति से खूब जानता हूं । चीन सरकार जातीय सवाल पर अत्यंत सावधान रहती आयी है और जातीय क्षेत्र में होने वाली किसी भी अप्रत्याशित घटना पर सावधान रूख भी अपनाये हुए है । उसी समय ठीक दो चीनी प्रमुख वार्षिक सम्मेलनों के दौरान तिब्बत के प्रमुख नेता भी पेइचिंग में थे । इतनी गम्भीर आकस्मिक घटना में तत्काल में ल्हासा में नेतृत्वकारी व्यक्तियों ने बदमाशों की गिरफ्तारी करने का साहस नहीं दिखाया है , नहीं तो बदमाशों को जुल्म करने का पर्याप्त समस नहीं मिल सका । यदि पश्चिमी मीडिया का कथन सही हो , तो मुझे विश्वास है कि इस घटना का परिणाम इतना गम्भीर कतई नहीं हो सकेगा ।