2008-03-28 11:01:52

जनवादी सुधार के बाद तिब्बत के मानवाधिकार को पूर्णतः सुनिश्चित

तिब्बत की राजधानी ल्हासा में हुई मारपीट व लूटपाट की हिंसक घटना को लेकर कुछ समुद्रपारीय मीडियाओं और व्यक्तियों ने तथ्यों की परवाह न कर तिब्बत के मानवाधिकार पर मनमाने ढंग से लांछन लगाय़ी । इस बात का खंडन करते हुए तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के अभिलेखागार के इतिहास विभाग ने प्रधान सोनाम ग्याल ने कहा कि तिब्बत के ऐतिहासिक फाइलों में सुरक्षित बड़ी तादाद में सामग्री से तिब्बती सामंती भूदास व्यवस्था तले समाज की क्रुरतापूर्ण व अंधकारमय असलियत और शोचनीय मानवाधिकार स्थिति पूर्ण रूप से साबित कर दिखायी गयी है ।

उन्हों ने कहा कि 50 साल पहले के तिब्बत में सामंती भूदास व्यवस्था तले विश्व की छत पर बसे विशाल तिब्बती भूदास विश्व के सब से नीचले तबक में थे । तत्कालीन तिब्बती समाज में आंख , हाथ व पैर काटने जैसी दंडविधि अत्यंत धृष्ट और खुंख्वार थी । केवल तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद समाज का मालिक बनने वाली विशाल तिब्बती जातीय जनता को राजनीतिक सार्वभौमिकता , आर्थिक विकास . सांस्कृतिक विकास व धर्म पर स्वतंत्र रूप से विश्वास करने का अधिकार प्राप्त हो गया है ।

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के सांख्यकि ब्यूरो की सामग्री से जाहिर है कि तिब्बतियों की औसत उम्र 50 वाले दशक के 35.5 सास से बढ़कर 67 तक हो गयी है । जबकि तिब्बती जाति की आबादी 1964 की 12 लाख से बढकर अब की 25 लाख हो गयी है , जो तिब्बत की कुल जनसंख्या का 95 प्रतिशत बनती है ।

वर्तमान में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में विभिन्न प्रकार वाली धार्मिक गतिविधियां सामान्य रूप से चलायी जाती हैं , जनसमुदाय की धार्मिक मांग पूरी हुई है और धार्मिक स्वतंत्रता को सम्मान प्राप्त है।

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