2008-03-28 10:50:58

चीन-अफ्रीकी मैत्री की प्रचारक सुश्री चू मिंग-ईन

चीन में गायक-गायिकाओं की संख्या बहुत ज्यादा है। उन में से सिर्फ लोकप्रियता व ख्याति प्राप्त हस्तियों की गणना की जाए,तो घंटे तक का समय लगेगा। पर गायन और नाच दोनों में व्यवसायिक तौर पर निपुण कलाकारों की संख्या तो उंगलियों पर गिनी जा सकती है और ऐसे कलाकारों में चू मिंग-ईन की गिनती पहले पायदान पर है।उन्हें चीन-अफ्रीकी मैत्री की प्रचारक की संज्ञा भी दी गई है।

चू मिंग-ईन 1966 में पेइचिंग नृत्य-कालेज से स्नातक होकर सीधे पेइचिंग स्थित चीन के प्रतिष्ठित पूर्वी नाचगान मंडली में भर्ती हुईं।उस समय चीन "सांस्कृतिक क्रांति-अभिनय "के दौर से गुज़र रहा था।सो लगभग सभी व्यवसाय विकृति की दिशा में चलाए जा रहे थे।सांस्कृतिक मंडलियों को समाज के हाशिए पर धकेल दिया गया था।चू मिंग-ईन और अन्य बहुत से युवा कलाकारों का यौवन 10 साल तक चले इस विपत्ति स्वरूप वाले अभिनय द्वारा बर्बाद किया गया।1976 में केंद्र सरकार ने इस अभिनय का अंत किया और चीन सामान्य विकास की पटरी पर लौटा।2 साल बाद चीन में सुधार व खुलेपन की नीति लागू की गयी और विदेशों के साथ चीन का सांस्कृतिक आदान-प्रदान का पुनरूद्धार भी शुरू हुआ। 1979 में पूर्वी नाचगान मंडली ने पेइचिंग के एक सब से बड़े थिएटर में देशी व विदेशी दर्शकों के लिए अपने एक विशेष व नये सांस्कृतिक समारोह का आयोजन किया,जिस में चू मिंग-ईन ने धूम मचाकर ख्याति प्राप्त की।दर्शकों ने अफ्रीकियों के रंगरूप के मेक-अप में चू मिंग-ईन द्वारा प्रस्तुत गाने के साथ-साथ उन के ऩृत्यृ की भी भूरि-भूरि प्रशंसा की। एक समय तक चू मिंग-ईन पूर्वी नाचगान मंडली की एक ब्रांड बनी रही। हमारे संवाददाता से बातचीत में उन्होंने तब की याद ताजा करते हुए कहाः

"मुझे ऐसी कतई अपेक्षा नहीं थी कि मैं सिर्फ एक ही नृत्य और गाने से विख्यात हो जाऊंगी।

और तो और उस समय मेरी उम्र 32 साल की थी और नर्तकियों में मैं बूढ़ी बहन हो चली थी।पर मैं नाचगान से बहुत प्यार करती हूं औऱ काफी मेहनती हूं। मुझे दसियों सालों का नृत्य करने का अनुभव है। और इस दौरान मैं ने संगीत के जरिए गीतों की विषेशताओं का पता लगाना सीख लिया।बाद में मैं ने पाया कि मैं इसलिए प्रसिद्ध हो गई हूं,क्योंकि दर्शक गाने के साथ-साथ नृत्य देखना भी पसन्द करते है और प्रदर्शन का वह ढंग उस समय देश में बहुत कम देखने को मिलता था "

चू मिंग-ईन ने कहा कि मेरे पूर्वी नाचगान मंडली में भर्ती होने के बाद पहले अनेक सालों में प्रदर्शन करने का मौका करीब नहीं के बराबर था। इस पर उन्हें और उन के साथियों को बड़ी निराशा हुई थी।कई साल बाद देश के तत्कालीन प्रधान मंत्री चो एन-लाई ने पूर्वी नाचगान मंडली का दौरा करने के समय सभी कलाकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आप लोग कलाकार ही नहीं,बल्कि राजनयिक भी हैं।आप लोगों की भूमिका से चीन और अन्य एशियाई देशों,अफ्रीकी देशों व लातिन अमरीकी देशों की जनता एक दूसरे के नजदीक आ सकती है,उन के बीच सांस्कृतिक व कलात्मक आदान-प्रदान बढ सकते हैं तथा चीन-विदेश मैत्री मजबूत हो सकती है।श्री चो एन-लाई ने यह भी कहा कि कलाकारों को अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभाने के लिए विदेशी भाषाएं सीखनी चाहिएं।चू मिंग-ईन उन के बयान से काफी उत्साहित और प्रभावित हुईं।घर लौटकर उन्हों ने मंडली की पूरी व्यावसायिक स्थिति गंभीरता से सोचने के बाद पाया कि एशिया,अफ्रीका और लातिन अमरीका की सांस्कृतिक कला एक प्रकार की गाने के साथ-साथ नाचने की कला भी है,न कि सरल नाच-गान की। और उन की मंडली में कोई ऐसा अभिनेता या अभिनेत्री नहीं है,जिसे नाच-गान दोनों में महारत हासिल हो।उन्हों ने सोचा कि अगर वह अपने जन्मजात मधुर गले और सर्वमान्य नृत्य-कौशल का साथ-साथ इस्तेमाल करे,तो मंडली की इस कमी की पूर्ति हो सकेगी।

इसलिए उन्होंने विदेशी गीत सीखने का फैसला किया।उस समय चीन और अफ्रीकी देशों के बीच राजनयिक संबंध बहुत सक्रिय थे और सांस्कृतिक आदान-प्रदान की बहुत गतिविधियां हुआ करतीं थीं।इसलिए चू मिंग-ईन ने अफ्रीकी गीत सीखने को प्राथमिकता दी।इस के लिए वह पेइचिंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय और हमारी संस्था—चाइना रेडियो इटरनेशनल का चक्कर काटने लगी।उल्लेखनीय है कि चीन में अफ्रीकी भाषाएं जानने वाले लोग हमारी संस्था में केंद्रित रहे हैं। सो चू मिंग-ईन उन से अफ्रीकी भाषाएं सीखने के लिए अक्सर यहां आती थीं।

कांगो के लोकगीत《ईयायाओलेओ》की प्रस्तुति से नाम कमाने के बाद के 5 सालों के भीतर चू मिंग-ईन ने दर्शकों के लिए बीसेक विदेशी भाषाओं में सैकड़ों विदेशी गीत गाए और हर बार दर्शकों को नयेपन का एहसास कराया।किसी समारोह में वह कभी किसी भारतीय सुन्दरी के रूप में या कभी किसी अफ्रीकी युवती के रूप में गाते-नाचते दिखाई दीं,जिस से दर्शकों का उत्साह अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गया।