2008-03-26 19:39:33

तिब्ब्त शास्त्र के विशेषज्ञों का कहना है कि ल्हासा में हुई हिंसा घटना दलाई गुट का हिंसा से राजनीतिक लक्ष्य पाने का हथकंडा है

चीनी तिब्बत शास्त्र अनुसंधान केन्द्र के विशेषज्ञों ने 26 तारीख को पेइचिंग में देशी विदेशी मीडिया से इंटरव्यू में कहा कि ल्हासा में 14 मार्च को हुई हिंसा घटना की असलियत दलाई गुट द्वारा चंद कुछ अपराधियों को भड़का कर सामाजिक स्थिरता को भंग करने और तिब्बत स्वावधीनता का राजनीतिक लक्ष्य पाने का हथकंडा है ।

चीनी तिब्बत शास्त्र अनुसंधान केन्द्र में तिब्बत शास्त्र के अनुसंधान में लगे बहुत से विशेषज्ञ हैं । 26 तारीख को केन्द्र के चार विशेषज्ञों ने पेइचिंग में देश विदेश की मीडिया को साक्षात्कार दिया । ल्हासा की हिंसा घटना की एतिहासिक पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए केन्द्र के महा निदेशक श्री लापाफिंगछु ने कहा कि ल्हासा हिंसा घटने के पीछे गहरी एतिहासिक पृष्ठभूमि है । उन्हों ने कहा कि इस प्रकार का उपद्रव बरपाने का दलाई गुट का मकसद तिब्बत की पुरानी प्रशासनिक व धार्मिक मिश्रण वाली राजनीति व्यवस्था को बहाल करना है । वर्तमान विभाजनवादी तिब्बत में इस प्रकार की सामंती राजनीतिक व्यवस्था के खात्मे पर नाखुश हैं । तिब्बत की पुरानी समंती भूदास व्यवस्था खत्म की गयी है , 95 प्रतिशत के लोगों के भूदास होने की जमाना समाप्त हुई है , लेकिन विभाजनवादी इस पर खुश नहीं हैं । तिब्बत का पिछड़ा हुआ समाज आज नहीं रहा और बाहरी दुनिया से अलग होने की हालत नहीं रही , इस पर भी वे संतुष्ट नहीं हैं , वे उसे पलटने की कोशिश करते हैं । एक शब्द में तथाकथिक तिब्बती स्वानधीनता की असलियत है कि दलाई गुट अपनी पुरानी सामंती भूदास व्यवस्था को पुनः जीवित करना चाहता है ।

20 वीं शताब्दी के पचास वाले दशक में दलाई गुट के शासन के तले तिब्बत सामंती भूदास समाज का था , तिब्बत की जन संख्या के 95 प्रतिशत भूदासों और दासों के पास न उत्पादन संसाधन था , न ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता थी । वे दुखमय जीवन बिताते थे और सरकारी अधिकारियों , कुलीन लोगों और मठों के ऊपरी स्तर के भिक्षुओं से गठित तीन सरदारों वाला तिब्बती शासक वर्ग की संख्या केवल वहां की कुल जन संख्या का पांच प्रतिशत थी , लेकिन उस के पास तिब्बत के सभी उत्पादन संसाधन और भूदास थे । 1951 में चीन की केन्द्रीय सरकार ने तिब्बती स्थानीय सरकार के साथ तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के तरीके पर समझौता संपन्न किया , जिस के अनुसार तिब्बती स्थानीय सरकार को खुद सुधार करना चाहिए था । लेकिन तिब्बत में आम लोगों में जनवादी सुधार करने की मांग दिन ब दिन बढ़ने के कारण अपने सामंती भूदास व्यवस्था की रक्षा करने के लिए 10 मार्च 1959 को दलाई लामा गुट ने तिब्बत में सशस्त्र विद्रोह छेड़ा । विद्रोह के विफल होने के बाद 14 वें दलाई लामा और उन के कुछ सहचरी विदेश में फरार गए । श्री लापाफिंगछु ने कहा कि इस साल ल्हासा में हुई हिंसा घटना ठीक दलाई गुट द्वारा अपने 1959 सशस्त्र विद्रोह की याद में आयोजित और भड़कायी गयी घटना है ,उस का मदसक मूल रूप से तिब्बत को चीन से अलग करना है।

आंकड़ों के अनुसार ल्हासा हिंसा घटना में कुल 18 बेगुनाह लोगों की मृत्य हुई , 120 रिहाइशी मकान आग से जलाए गए , 908 दुकानें लूट की गयीं और तोड़ी गयीं । इस के अलावा सात स्कूलों और पांच अस्तपालों को नुकसान पहुंचाया गया और प्रत्यक्ष आर्थिक नुकसान 25 करोड़ य्वान तक पहुंचा । विशेषज्ञ तङ वी ने कहा कि ल्हासा हिंसा घटना दलाई गुट द्वारा जातीय सवाल की आड़ में अपनी राजनीतिक उद्देश्य साधने की हरकत है । उन्हों ने कहा कि इस हिंसा घटना में हमले के शिकार हान व ह्वी जातीय लोगों के अलावा तिब्बती भी है । इस से जाहिर है कि यह घटना कोई जातीय अन्तरविरोध नहीं है , धार्मिक मामला भी नहीं है । वह एक राजनीतिक मामला है । जाहिर है कि कुचेष्टा रखने वाले जातीय अन्तरविरोध के बहाने जातीय एकता भंग करना और मातृभूमि का विभाजन करना चाहते हैं ।

तिब्बत के आर्थिक विकास में सात सालों तक 12 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई , किसानों व चरवाहों की आय पांच साल दो अंकों पर बढ़ी । विशेषज्ञ तानजनलुंजु ने कहा कि सुधार व खुलेपन के पिछले 30 सालों में तिब्बत में बुनियादी सुविधाओं , जन जीवन , चिकित्सा और शिक्षा में सच्चे सुधार और प्रगित हुई , यह तिब्बत में हर जगह देखने को मिलते हैं । अब तिब्बती लोग सुधार की उपलब्धियों का उपभोग कर रहे हैं । दलाई गुट जो तिब्बती स्वाधीनता की कोशिश करता है , वह तिब्बती जनता के इरादे के विरूद्ध है और उसे कोई समर्थन नहीं मिलेगा।