2008-03-06 12:16:12

चीनी पुलिस लेखक छाओ नाई-छैन

उत्तरी चीन के शनशी प्रांत के ताथुंग शहर में एक पुलिस अफसर हैं,जिन का नाम है छाओ नाई-छैन।अन्य पुलिसकर्मियों से वे इस अर्थ में अलग हैं कि वे एक प्रसिद्ध लेखक भी हैं। उन की 30 से अधिक कहानियां जापान,अमरीका,कनाडा और स्वीडन आदि देशों में भी लोकप्रिय हो चुकी हैं। सूत्रों के अनुसार नोबेल साहित्य पुरस्कार चयन कमेटी के सदस्य श्री गोरान मालम्क्विस्ट को आशा है कि वे यह पुरस्कार पाने के एक बड़े उम्मीदवार हैं।

छाओ नाई-छैन का जन्म शनशी प्रांत की ईंश्यान काऊंटी के एक गांव में हुआ था।पिछली सदी के 60,70 वाले दशकों में उन्होंने कोयले की खदान में और एक सांस्कृतिक मंडली में भी काम किया। बाद में वह एक पुलिसकर्मी बने।

हमारे संवाददाता को इंटरव्यू देने के समय वह परंपरागत सादे कपड़ों में थे और उन के झुरियों से भरे चेहरे पर एक किसान की तरह स्नेहपूर्ण मुस्कान तैर रही थी।वे ज्यादा नहीं बोले,पर किंतु एक उत्साह की भावना उन के चेहरे पर छाई रही।उन्होंने कहा कि सन् 1987 में उन्हों ने कहानी लिखनी शुरू की थी और अब तक उन की करीब 10 लाख शब्दों वाली कृतियों का प्रकाशन हो चुका है। उन्हों ने बताया कि उन के लेखक बनने का कारण वास्तव में उन के एक मित्र के साथ लगी एक शर्त थी।उन के एक मित्र ने कहा था कि वह कभी कहानी नहीं लिख सकते ,और उन्होंने इस शर्त को एक चुनौती के रुप में स्वीकार किया और कहानियां लिख-लिख कर स्थानीय अखबारों व पत्रिकाओं में भेजनी शुरु कीं।उन की अधिकतर कहानियां प्रकाशित हुईं।फिर उन्होंने पेइचिंग के एक साहित्य प्रकाशनगृह को अपनी कहानियां भेजीं।पेइचिंग के एक विख्यात लेखक को उन की लिखी कहानियां बहुत पसंद आईं और उन्होंने उन्हें विशेष निर्देशन दिया। इस तरह छाओ नाई-छैन लेखक बने और उन्होंने गंभीरता से एक लेखक के रूप में काम करना शुरू किया।

छाओ नाई-छैन का पहला उपन्यास उन के और एक बौद्ध-भिक्षु के बीच के अनुभवों पर आधारित है,जिस का नाम है `बौद्ध का अकेलापन`।कहानी ऐसी है कि उन का घर एक टूटे-फूटे पुराने मंदिर के पास था।9 वर्ष की उम्र से ही मंदिर में रहने वाला एक वृद्ध बौद्ध उन का साथी बन गया ।वे एक साथ ध्यान करते थे,शतरंज खेलते थे और पुस्तकें पढते थे।छाओ नाई-छैन ने कहा कि उन्होंने इसलिए यह उपन्यास लिखा है,क्योंकि उन्हें ऐसा महसूस होता है कि हो न हो, उन का उस बौद्ध के साथ पुराने जन्म का कोई संबंध रहा है।उन का कहना हैः

"मैं उस मंदिर के पास कोई 40 साल तक रहा।उस मंदिर में रहने वाले बौद्ध-भिक्षुओं और वहां स्थापित बुद्ध-मूर्तियों से मैं बहुत अच्छी तरह परिचित हूं और उन के प्रति मेरी गहरी भावना है। इसलिए मैंने अपने दिल की सच्ची भावना से अपने इन अनुभवों के बारे में कुछ लिखना चाहा है।"

छाओ नाई-छैन ने कहा कि उन का पहला अध्यापक उसी मंदिर का वही वृद्ध बौद्ध था। उन्हों ने उसे पढ़ना,लिखना सिखाया और बौद्धसूत्रों की व्याख्या करके सुनाई । छोटी उम्र में ही उन्हें बौद्धसूत्रों की बहुत सी ज्ञान की बातें समझ में आईं,लेकिन उन का मन वृद्ध बौद्ध के साथ ध्यान करने और गपशप करने में अधिक लगता था।आज भी छाओ नाई-छैन की बोलचाल में उस वृद्ध बौद्ध का असर दिखता है। बैठते समय वह हमेशा ध्यानासन की मुद्रा में बैठते हैं और किसी मेहमान को बिदा करते समय दोनों हाथ जोड़कर आशीर्वाद देते हैं।

छाओ नाई-छैन का स्वभाव और विचार भी बौद्धधर्म से प्रभावित हैं।वह जो काम करते हैं,वह हमेशा उस के प्राकृतिक नियम के अनुसार करते है और ज़रा भी प्रकृति के विपरित जा कर काम करने की कोशिश नहीं करते। प्रतिष्ठा और धन-दौलत का उन के लिए कुछ खास अर्थ नहीं है।उन्हें सीधा-सादा जीवन बहुत अच्छा लगता है।उन के अनुसार उन का पुस्तकें लिखने का उद्देश्य सिर्फ अपने कुछ विचार और भावनाएं प्रकट करना है।वे प्रकाशित हों या न हों इस बारे में वह जरा भी चिंतित नहीं होते।जहां तक उन की कृतियों पर हुई टिप्पणियों की बात है,वह यों ही पढ़कर छोड देते हैं। अगर पाठकों को उन की कृतियां पसंद आती हैं,तो वह जरुर प्रसन्न होते हैं।यदि नापसंद है,तो भी उन्हें कोई खास बुरा नहीं लगता और वह अपना लेखन करते रहते हैं।

अब तक छाओ नाई-छैन के 3 उपन्यास और दसियों कहानियों का विमोचन हो चुका है। इन कृतियों के विषय पूरी तरह उन के जीवन में अर्जित अनुभवों पर आधारित हैं।पुलिसकर्मी बनने से पहले उन्हों ने कोयले की एक खदान में एक साल तक खनन करने का काम किया था।इस कठोर जीवन के आधार पर उन्हों ने `सूर्य का ठंडा पत्थर ` नाम का एक उपन्यास लिखा,जिस में कोयला खान-मजदूरों के ढृढ़ मनोबल और सख्त स्थितियों से जूझने की असाधारण हिम्मत की अभिव्यक्त हुई है।