2008-03-06 10:15:07

हू क्वांग सोसाइटी में पेइचिङ ओपेरा का आनन्द

शुरू में हू क्वांग सोसाइटी का क्षेत्रफल 43 हजार वर्गमीटर था और वह पेइचिंग में सब से बड़ी सोसाइटियों में से एक माना जाता है । पर इस सोसाइटी का नाम हू क्वांग क्यों रखा गया और उस की क्या भूमिका थी । इन सवालों का उल्लेख करते हुए पेइचिंग औपरा म्युजियम के जनरल मेनेजर हो च्येन छिंग ने कहा कि हू क्वांग सोसाइटी का नाम तत्कालीन प्रांत के नाम पर आधारित हुआ था , उस समय छिंग राजवंश काल की परीक्षा प्रणाली के अनुसार सरकारी पदों के लिये राष्ट्रीय परीक्षा में भाग लेना जरूरी था , यह राष्ट्रीय परीक्षा तत्कालीन राजधानी पेइचिंग में आयोजित की जाती थी , अतः परीक्षा देने वाले लोग विभन्न प्रकार वाली सोसाइटियों में रहना ज्यादा पसंद करते थे ।

अब हमारा साप्ताहिक कार्यक्रम चीन का भ्रमण आरम्भ होता है , आज के इस कार्यक्रम में हम आप को दक्षिण पेइचिंग शहर स्थित श्वान ऊ डिस्ट्रिक्ट की हु क्वांग सोसाइटी में पेइचिंग ओपेरा का आनन्द उठाने ले चलते हैं ।

पेइचिंग हु क्वांग सोसाइटी की स्थापना 1807 में हुई । यह चीनी छिंग राजवंश काल में हूनान व क्वांगतुंग प्रांतों से आये बंधुओं का एक दूसरे से मिलने का केंद्र है , सोसाइटी में गांवबंधु भवन , वन छांग भवन जैसे बहुत से प्रसिद्ध निर्माण खड़े हुए हैं । आज का पेइचिंग औपेरा म्युजियम भी यहां पर अवस्थित है ।

शुरू में हू क्वांग सोसाइटी का क्षेत्रफल 43 हजार वर्गमीटर था और वह पेइचिंग में सब से बड़ी सोसाइटियों में से एक माना जाता है । पर इस सोसाइटी का नाम हू क्वांग क्यों रखा गया और उस की क्या भूमिका थी । इन सवालों का उल्लेख करते हुए पेइचिंग औपरा म्युजियम के जनरल मेनेजर हो च्येन छिंग ने कहा कि हू क्वांग सोसाइटी का नाम तत्कालीन प्रांत के नाम पर आधारित हुआ था , उस समय छिंग राजवंश काल की परीक्षा प्रणाली के अनुसार सरकारी पदों के लिये राष्ट्रीय परीक्षा में भाग लेना जरूरी था , यह राष्ट्रीय परीक्षा तत्कालीन राजधानी पेइचिंग में आयोजित की जाती थी , अतः परीक्षा देने वाले लोग विभन्न प्रकार वाली सोसाइटियों में रहना ज्यादा पसंद करते थे । इसी प्रकार चीन के सभी प्रांतों ने अपने अपने प्रांत में रहने वाले लोगों के लिये सोसाइटी जैसे विशेष स्थल स्थापित किये और सोसाइटियों का नाम आम तौर पर अपने प्रांत या विशेष स्थल के नामों पर आधारित है , ताकि सरकारी पदों की राष्ट्रीय परीक्षा देने वाले बंधु अपनी अपनी सोसाइटी में ठहर सके । कहा जाता है कि तत्काल में पेइचिंग शहर में इसी प्रकार वाली सोसाइटियों की संख्या पांच सौ से अधिक थी और अधिकतर सोसाइटियां दक्षिण पेइचिंग के श्वान ऊ डिस्ट्रिकट में स्थापति हुए हैं । पर चीन के प्रांत पांच सौ से अधिक कम हैं , सोसाइटियां इतना ज्यादा क्यों हैं । बात यह है कि उस समय लोग पेइचिंग आने के बाद राष्ट्रीय परीक्षा की तैयारी व संबंधित सूचनाएं प्राप्त करने के लिये विभिन्न सोसाइटियों में ठहरते थे , जब उन में से कुछ लोग परीक्षा में उत्तीर्ण होकर सरकारी अधिकारी बने , तो उन्हों ने भी और अधिक लोगों के लिये सुविधा उपलब्ध कराने के लिये इसी प्रकार वाली सोसाइटियां स्थापित करने में धन राशि जुटायी । इस तरह पेइचिंग शहर में अधिकाधिक ऐसी किस्मों वाली सोसाइटियां प्रकाश में आ गयीं ।

बीसवीं शताब्दी के 80 वाले दशक में पेइचिंग नगर पालिका और श्वान ऊ डिस्ट्रिक्ट की सरकार के समर्थन में हू क्वांग सोसाइटी का पुनर्निर्माण हुआ । पेइचिंग औपेरा म्युजियम के जनरल मेनेजर हो च्येन छिंग ने कहा कि हालांकि वर्तमान में इस सोसाइटी का पैमाना पहले से कुछ छोटा हो गया है , पर अतीत के अधिकतर पुराने भवनों की बहाली हो गई है , जिन में बड़ा औपेरा मंच आज की दुनिया में दस विश्वविख्यात काष्ठ थिएटरों में से एक माना जाता है ।

आज के हू क्वांग सोसाइटी का क्षेत्रफल तीन हजार पांच सौ वर्गमीटर है और उस का निर्माण क्षेत्रफल है दो हजार 8 सौ वर्ग मीटर । मौजूदा सोसाइटी रहने के लिये नहीं है , उस आगन में मकान भी ज्यादा नहीं हैं , प्रमुख निर्माण औपेरा थियेटर और औपेरा म्यजियम मात्र ही हैं , इस के अतिरिक्त खाने पीने जैसे सेवा संस्थापन भी हैं । उल्लेखनीय है कि वर्तमान में हू क्वांग सोसाइटी का औपेरा थियेटर पेइचिंग शहर की सोसाइटियों में एक ऐसा मात्र थियेटर की गिनती में आता है , जो देशी विदेशी दर्शकों के लिये खुला हुआ है और दुनिया में दस प्रसिद्ध काष्ठ से बने बड़े थियेटरों में से एक जाना जाता है ।

सोसाइटी के मुख्य गेट में कदम ऱखते ही साफसुथरे आंगन में नकाशीदार लाल दीवारों व हरी खपरैलों से बने पुराने ढंग वाले मकान नजर आते हैं । आंगन के बीचोंबीच एक पुराना कुआं भी है । इस हू क्वांग सोसाइटी में कार्यरत कर्मचारी वांग श्वे वी ने इस कुएं का परिचय देते हुए कहा कि इस कुए को ची वू कुआं पुकारा जाता है , छिंग राजवंश के सुप्रसिद्ध महान साहित्यकार ची श्याओ लान ने अपनी रचना में इस विशेष कुए का उल्लेख किया था ।