2008-02-21 10:52:56

प्रसिद्ध बौद्ध चित्रकार—शी क्वो-ल्यांग

चीनी चित्रकला के इतिहास में अनेक बौद्ध चित्रकार उल्लेखनीय हैं। उन की समान विशेषता है कि वे सुरम्य प्रकृति औऱ बुद्ध की जातक-कथा पर चित्र बनाते थे,ताकि मानव की दुनिया छोड़ अपनी शुद्ध आध्यात्मिक आस्था अभिव्यक्त की जा सके। लेकिन शी क्वो-ल्यांग उन से अलग हैं। वह कभी वर्तमान दुनिया से नहीं भागते हैं। वह मानव के जीवन और साधारण लोगों के जीवन की स्थिति पर ध्यान देते हैं। उन की सभी कृतियां यथार्थवादी शैली में बनी हैं। वह एक बौद्ध की दृष्टि से साधारण लोगों के जीवन और उन के जीने के तरीके को देखते हैं और तूलिका से अपनी विशेष शैली में सच्चाई,दया और सौंदर्य का प्रचार करते हैं।उन्हों ने कहा कि वह घर छोड बौद्ध बन गए हैं,तो भी समाज औऱ जन साधारण के लिए कुछ करने की आशा करते हैं। उन का कहना हैः

"मेरा घर छोड़ बौद्ध बनने का उद्देश्य न केवल अपने को वर्तमान दुनिया से निजात दिलाना है,बल्कि जन साधारण को मेरा निजात पाने का अनुभव बताना भी है।क्योंकि जन साधारण को बहुत सी परेशानियां सताती हैं। मैं उन्हें इन परेशानियों से मुक्त कराने में मदद करना चाहता हूं। मेरे विचार में अगर आप सच्चाई,दया और सौदर्य का प्रचार करते हैं,तो आप को समाज और जन साधराण के प्रति दायित्व निभाना चाहिए।"

शी क्वो-ल्यांग चित्रांकन के लिए अनेक बार तिब्बत गए।तिब्बत तिब्बती बौद्धधर्म का प्रमुख केंद्र है।शी क्वो-ल्यांग ने तिब्बती संस्कृति और तिब्बतियों की जिन्दगी पर बहुत से चित्र बनाए हैं। उन्हों ने कहा कि वह तिब्बती बौद्ध अनुयाइयों को तीर्थ-यात्रा के लिए एक एक कदम पर साष्टांग प्रणाम करने के तरीके से सैंकड़ों किलोमीटर लम्बा सफर करते देखकर बहुत प्रभावित हैं। उन के आवास के अतिथि-गृह की दीवार के बीचोंबीच उन के द्वारा बनाया गया ऐसा एक बड़ा चित्र टंगा हुआ है,जिस में तिब्बती बौद्धधर्म के अनुयाइयों की तीर्थ-यात्रा के लिए ल्हासा पहुंचने के रास्ते में विभिन्न आकृतियां सजीव रूप से रेखांकित की गई हैं।शी क्वो-ल्यांग की कृतियां निहारने के समय दर्शक उन की चित्रांकन की शैली और ढंग से ज्यादा उन में व्याप्त वातावरण से इस तरह प्रभावित होते हैं कि उन में चित्रित व्यक्तियों की आत्मा से बातचीत करने की इच्छा उत्पन्न होने लगती है।

टिप्पणीकारों का मानना है कि शी क्वो-ल्यांग की कृतियां भारी रेखाओं और गहरे रंगों में मानव की विभिन्न आकृतियों और भाव-भंगिमों के जरिए लोगों की आध्यात्मिक दुनिया चित्रित करती हैं। इन चित्रों से दर्शक आत्मिक और भावनात्मक संतुष्टि प्राप्त कर सकते हैं।

कुछ समय पहले मीडिया ने शी क्यो-ल्यांग को चीनी ललितकला जगत में ऐसा प्रथम व्यक्ति कहकर पुकारा है,जिस ने नकली चित्रों पर प्रहार के लिए इंटरनेट पर ब्लोग खोला है।बात यह है कि किसी एक नीलामी कंपनी ने शी क्वो-श्यांग नाम के कुछ चित्र नीलाम किए थे।बाद में खुद शी क्वो-ल्यांग ने पाया कि ये चित्र उन की कृतियां नहीं हैं,बल्कि किसी और के द्वारा उन के नाम पर बनाए गए फर्जी चित्र हैं। इसलिए उन्हों ने इंटरनेट पर ब्लोग खोलकर अपने बनाए चित्रों के साथ इन फर्जी चित्रों को भी लगाया और संबंधित व्याख्या भी की। इस पर शी क्वो-ल्यांग ने विचार व्यक्त कियाः

"नकली या फर्जी करना लोगों को नुकसान पहुंचाता है।यह एक भद्दा मामला है।एक बौद्ध के नाते मुझे अच्छाइयों को विकसित करने और बुराइयों को दूर करने का काम करना चाहिए।

वास्तव में यह हरेक बौद्ध-भिक्षु का एक बुनियादी कर्तव्य है। "

अपने ब्लोग पर शी क्वो-ल्यांग समय-समय पर नई कृतियां भी लगाते हैं और पाठकों के साथ जीवन के महत्व पर विचार-विमर्श करते हैं।उन्हों ने आशा जताई कि यह ब्लोग उन के और पाठकों के बीच विचारों के आदान-प्रदान का एक स्थाई मंच बनेगा।

शी क्वो-ल्यांग कहा करते हैं `बौद्धधर्म और चित्रांकन का मेरे मन में साझा महत्व है। दरअसल चित्रांकन मेरे लिए एक धर्म भी है। मैं उस से प्यार करता हूं औऱ उस का दीवाना भी हूं। मैं आजीवन उस के साथ रहूंगा और उस में जान अर्पित करूंगा। `

शी क्वो-ल्यांग ने अनेक वर्षों तक सोच-विचार करने के बाद एक बड़ी योजना बनाई है कि वह तिब्बत के जुखला खां मठ में बुद्ध की पूजा का भव्य दृश्य दर्शाने के लिए श्रृंखलाबद्ध दसियों चित्र बनाएंगे और हरेक चित्र 4 मीटर लम्बा और 4 मीटर चौड़ा होगा। इस योजना को पूरा करने किए वह जल्द ही फिर एक बार तिब्बत जाएंगे।