72 वर्षीय श्री रूआन ई-सान विख्यात थुंग-ची विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और चीनी राजकीय प्राचीन नगर अनुसंधान-केंद्र के प्रमुख भी हैं। उन का जन्मस्थान "मनुष्यों का स्वर्ग" के नाम से मशहूर सू-चो शहर है,जहां के खूबसूरत मकान और बाग-बगीचे प्राचीन चीनी वास्तुकला की ठेठ मिसाल हैं।श्री रूआन ई-सान को इस शहर से बेहद प्यार रहा है।
रूआन ई-सान अपनी युवावस्था के शुरू में चीनी नौसेना में भर्ती हुए।सेनानिवृत्त होने के बाद सन् 1956 में उन्हें राष्ट्रीय परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद शांघाई स्थित थुंग-ची विश्वविद्यालय में दाखिला मिला। उन्होंने इस विश्वविद्यालय के वास्तुकला विभाग में 4 सालों तक पढ़ाई की।
स्नातक होने के बाद वह इसी विश्वविद्यालय में अध्यापक बने।पिछली शताब्दी के 7वें दशक में उन्हों ने अपने अध्यापक रहे प्रोफेसर तुंग चैन-हुंग के साथ सहयोग कर के 《चीनी नगरों के निर्माण का इतिहास》लिखा,जो आज भी पाठ्य पुस्तक के रूप में लोकप्रिय है।यह पुस्तक लिखने के लिए उन्हों ने देश के लगभग सभी छोटे-बड़े नगरों का दौरा किया और वहां बिखरी विभिन्न शैलियों वाली वास्तु सामग्री ने उन की दृष्टि को व्यापक बनाया।उन्हों ने कहाः
"यह पुस्तक लिखने में कोई 4 साल का समय लगा। इतने समय में मैं ने हर साल के ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन अवकाशों का लाभ उठाकर देश का दौरा किया।पूर्व
से पश्चिम तक और उत्तर से दक्षिण तक देश के लगभग सभी नगरों में हमारे पदचिंह छूटे हुए हैं । दौरे के दौरान मुझे अक्सर महसूस होता था कि मैं किसी सु्न्दर उद्यान में घूम रहा हूं।हमारा देश सचमुच महान है।उस के ज्यादातर नगर आश्चर्यजनक रूप से सु्न्दर है खासकर उन में से प्राचीन संस्कृति को हूबहू अपनी आदिम अवस्था में सुरक्षित रखने वाले नगर और जिन की विशेष व विविध संस्कृति जस की तस बनी हुई है।"
पिछली सदी के 8वें दशक में चीन में सुधार व खुलेपन की नीति का क्रियान्वयन होने के चलते बुनियादी सुविधाओं का निर्माण बड़े पैमाने पर होने लगा।सभी नगरों को संवारने के साथ उजाडने का काम भी चला। नतीजतन बहुत से विशेष प्राचीन नगर तबाह हो गए। इस बात का श्री रूआन ई-सान को बहुत दुख है।
रुआन ई-सान तभी प्रसिद्ध हो गए थे जब फिंग-याओ नामक एक प्राचीन नगर के संरक्षण का काम शुरू हुआ। यह प्राचीन नगर पश्चिमोत्तर चीन के शनशी प्रांत में स्थित है और उस का कोई 4 हज़ार सालों का इतिहास है। इस नगर के प्रवेश-द्वार,चारदीवारी और उस में स्थित आवासीय मकान व दुकानें आदि वास्तु सब की सब प्राचीन शैली में अच्छी तरह सुरक्षित हैं।श्री रूआन ई-सान ने अनेक बार इस नगर का दौरा किया है। एक दिन जब वह शांघाई से किसी काम के लिए दूसरे स्थान जाने के रास्ते में इस नगर से गुजर रहे थे,तो उन्हों ने देखा कि इस की चारदीवारी में एक बड़ी दरार पड़ी है और पूरा नगर किसी निर्माण-स्थल सा लग रहा है,जो जगह-जगह धूल से ढंका दिखाई पड़ता है। इस दृश्य से उन्हें आभास हुआ कि इस प्राचीन नगर का अंत निकट आ रहा है।उस समय की याद ताजा करते हुए उन्हों ने कहाः
" उस समय मैं छात्रों के लिए फील्डवर्क का प्रबंध करने के उद्देश्य से किसी दूसरे शहर जा रहा था।फिंग-याओ प्राचीन नगर के बरास्ता वहां पहुचा जा सकता था। इस नगर में मैं ने देखा कि जगह-जगह निर्माण-कार्य चल रहा है। पूछने पर पता चला कि मिंग राजवंशकाल के कोई 30 मकान और छिंग राजवंशकाल के 100 से अधिक मकान ढहाए जा चुके हैं। यह खबर सुनकर मैं सकते में आकर काठ सा बन गया था।"
इस प्राचीन नगर को बचाने के लिए रूआन ई-सान ने यह योजना बनाई,जिस के तहत नगर को नए और पुराने दो भागों में विभाजित किया जाएगा,पुराने भाग को पूर्ण रुप से सुरक्षित रखा जाएगा और नए भाग में नए निर्माण-कार्य किए जाएगें।देश के संबंधित विभाग ने इस योजना पर संजीदगी से विचार करने के बाद माना कि यह व्यवाहारिक और सकारात्मक है। इसलिए इस योजना को जल्द ही अमल में लाया गया। इस तरह फिंग-याओ नगर बच गया।वरना वह कब का तबाह हुए प्राचीन नगरों की पांत में शामिल हो गया होता।