2008-02-05 09:54:50

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा में जोखान मठ का दौरा

जोखान मठ तिब्बत में सुरक्षित सब से पूराना तिब्बती व हान शैली वाला काष्ठ निर्माण है, इस का निर्माण सातवीं शताब्दी के शुरु में हुआ। और बाद में कई बार विस्तार और मरम्मत के परिणामस्वरूप अब तक इस मठ का क्षेत्रफल 25 हज़ार वर्ग मीटर पहुंच गया ।

जोखान मठ में भगवानबुद्ध शाक्यमुनी की मूर्ति के अलावा मठ के संस्थापक राजा सोंगज़ान कानबू की मूर्ति भी रखी हुई है । तिब्बती जनता के दिल में राजा सोंगज़ान कानबू और उन की दो रानियां राजकुमारी भृकुती और राजकुमारी वनछङ तीनों बौद्धिसत्व के अवतार माने जाते हैं । हमारी गाइड सुश्री ली श्याओ ह्वा ने कहा:

"जोखान मठ के पहला मंजिला और दूसरा मंजिला भवनों की छत छज्जों में सातवीं शताब्दी में खोदी गयी लकड़ी की बौद्ध मूर्तियां देखने को मिलती हैं । इन मुर्तियों की खुदाई मठ के निर्माण के दौरान खुद तत्कालीन तिब्बती राजा सोंगजान कानबू द्वारा की गयी थी । बगल में राजकुमारी वनछङ का एक आसन पत्थर का पायदान है, तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी अकसर अपनी ऊंगलियों से इसे छू लेते हैं , इस तरह अब इस पत्थर पायदान पर घी की मोटी परत मढ़ी है ।"

इन के अलावा, जोखान मठ में सातवीं शताब्दी में चंदन की लकड़ी से बने हुए द्वार और प्राचीन अलंकृत लकड़ी स्तंभ भी अच्छी तरह सुरक्षित हुए हैं । हमारी गाइड सुश्री ली श्याओ ह्वा ने जानकारी देते हुए कहा कि जोखान मठ के निर्माण के वक्त एक चंदन की लकड़ी से बना हुआ ऐसा स्तंभ अब तक सुरक्षित है , जिसे तिब्बती लोग बहुत दिव्य समझते हैं । इस लिए वे अकसर अपने-अपने हाथों से इस स्तंभ को भी छू लेते हैं । समय गुज़रते ही इस स्तंभ पर भी घी की मोटी परत चढ़ी है और देखने में वह बहुत चिकनी व समतल दिखाई देती है । आश्चर्य की बात यह है कि इस चंदन की लकड़ी से बने हुए स्तंभ में मनुष्य के दांत भी जड़े हुए हैं । इस का रहस्योद्घाटन करते हुए सुश्री ली श्याओ ह्वा ने कहा

"तिब्बती बौद्ध धर्म के बहुत से अनुयायी पूजा प्रार्थना के लिए किसी भी किस्म के वाहन के इस्तेमाल के बिना दूर दूर पैदल से ल्हासा आते हैं और कुछ लोग तो घर से ल्हासा तक षष्टांग नतन देते रहते हैं , जिस से उन्हें घर से ल्हासा तक जा पहुंचने में एक साल , यहां तक पांच छै साल का समय लगता है । कुछ बुढ़े अनुयायी कमज़ोर थे और रास्ते में बीमारी के कारण चल भी बसे थे । दम तोड़ने से पहले आम तौर पर उन्हों ने अपने साथी से अपना एक दांत निकाल कर जोखान मठ के इस स्तंभ पर जड़ित करने का अनुरोध किया । उन का विश्वास है कि दांत के रूप में वे खुद जोखान आ पहुंचे है, क्योंकि दांत मानव शरीर का एक मजबूत अवयव है, जो लम्बे समय तक खराब नहीं होता । ये दांत उन अनुयायियों की अमिट आस्था दिखाई देते हैं ।"

हर रोज़ जोखान मठ का बेशुमार तिब्बती लोग बौद्ध सूत्र पढ़ते हुए परिक्रमा करने आते हैं । दक्षिण पश्चिमी चीन के सछ्वान प्रांत की लड़की छिंगछिंग ल्हासा में तीन साल ठहरी है । छिंगछिंग कभी कभार अपने कैमरे से जोखान मठ आकर फोटो खींचती है । उस ने कहा कि जोखान मठ में पूजा प्रार्थना करने आए तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायियों की आस्था को देख कर उस का दिल बारंबार पिघल जाता है । सुश्री छिंगछिंग ने कहा

"वे लोग दूर-दूर से यहां आते हैं । उन में से बहुत से लोग तिब्बती चरवाहे हैं । ल्हासा आने के पूर्व वे अपने पशुओं को बेच देते है और पैदल से यहां आते हैं । उन्हें इस सफ़र को कष्ट के बजाए बहुत आनंददायी व फलदायक महसूस होता है ।"

पूजा प्रार्थना करने वाले तिब्बती बौद्ध अनुयायी आयेदिन जोखान मठ आते हैं । उन के पद चिह्न सदा के लिए जोखान मठ में छोड़े गए हैं, उन की पवित्र भावना से इस तीर्थ स्थल का दौरा करने आने वाला हरेक व्यक्ति प्रभावित हुए बगैर नहीं रह सकता है ।(श्याओ थांग)