चन-छ्वान 1950 में पूर्वी चीन के शांघाई शहर में जन्मे थे और एक परंपरागत बुद्धिजीवी परिवार में पले-बढे। उन के पिता जी एक विख्यात रासायनिक इंजीनियर थे औऱ मां मीडिल स्कूल की एक अध्यापिका थीं।वे दोनों ज्ञान से समाज की सेवा करते हुए ईमानदारी से अपना सामाजिक दायित्व निभा रहे थे।जीवन और कार्य के प्रति उन के सकारात्मक रवैय़े का चन-छ्वान के विकास पर गहन प्रभाव पड़ा।
चन-छ्वान ने बचपन से ही वायलन बजाना सीखना शुरू कर दिया था।पिछली सदी के 8वें दशक में वे वायलन-वादक के रूप में आनह्वई प्रांत के छी-चो क्षेत्र के एक सांस्कृतिक कला-मंडली में भर्ती हुए।उस समय चीनी समाज एक विशेष दौर से गुजर रहा था और सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करने के मौके ज्यादा नहीं थे।चन-छ्वान ने अपना ज्यादा से ज्यादा अवकाश का समय संगीत के सिद्धांत और वायलन-निर्माण के तरीकों के अनुसंधान में लगाया।अपनी प्रतिभा का प्रयोग उन्होंने सांस्कृतिक प्रोग्रामों की प्रस्तुति के लिए जरुरी आवश्यक साज-सामान बनाने में भी किया। कला-मंडली के सदस्य यह कहकर उन की प्रशंसा करते कि चन-छ्वान के दोनों हाथों में जादू है,जो आप चाहते हैं,वह आप के लिए बना सकते हैं।चन-छवान वायलन बनाने में विशेष रूचि रखते थे।उन का कहना हैः
"वायलन-निर्माण में लगना मानो मेरी किस्मत में लिखा हुआ था।इस में मेरी जन्मजात दिलचस्पी रही है और मुझे संबंधित तकनीकों का बोध जल्द ही प्राप्त हो गया।वायलन
-निर्माण के क्षेत्र में बहुत कम लोग ऐसे हैं,जो वायलन बजाने में भी निपुण होते हैं।जबकि मुझे वायलन-वादक के रूप में काम करते हुए दसेक साल हो चुके है औऱ मैं वायलन की नस-नस से वाकिफ़ हूं ।इसलिए वायलन बनाने में दूसरों की तुलना में मेरी स्थिति अलग है"
सांस्कृतिक कला मंडली में श्रेष्ठ प्रदर्शन के कारण चन-छवान वर्ष 1978 में पेइचिंग के वाद्ययंत्र अनुसंधान शाला में अध्ययन के लिए भेजे गए।यह उन के कार्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ कहा जा सकता है।दो साल बाद वह केंद्रीय संगीत प्रतिष्ठान में आगे अध्ययन हेतु चुने गए।औऱ संबद्ध कोर्स पूरा करने के पश्चात वह वहीं के वायलन-निर्माण अनुसंधान-केंद्र में रह गए।
चन-छवान का विचार है कि कला के क्षेत्र में विभिन्न अकादमिक पक्षों से सीखने की जरूरत है।इसलिए वह सीखने के लिए क्रमशः शांघाई और क्वांगचो जैसे महानगरों की नामी-गिरामी वायलन-निर्माण कंपनियों में गए। कड़ी मेहनत की बदौलत उन के वायलन बनाने के स्तर को देश के वायलन-निर्माण जगत से मान्यता प्राप्त हुई। 1983 में उन्हें इटली के क्रेमोना अंतर्राष्ट्रीय वायलन-निर्माण प्रतिष्ठान में भेजा गया।
अंतर्राष्ट्रीय वायलन-निर्माण जगत में इटली के इस प्रतिष्ठान की खासी पहचान है।चन-छ्वान इस में अपने प्रवास के 4 वर्षों के दौरान प्रतिदिन केवल 5 घंटें सोते थे और बाकी समय में खाना खाने को छोड़ वे पूरी तरह अध्ययन में लगे रहते थे। 1987 में उन्हें इटली की प्रथम राष्ट्रीय वायलन-निर्माण प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक मिला,जिस से उन की ओर अंतर्राष्ट्रीय वायलन-निर्माण जगत का ध्यान गया और उन के बने वायलनों का दुनिया की अनेक प्रसिद्ध सिम्फोनी आँक्स्ट्र मंडलियों के संगीतकारों द्वारा उपयोग होने लगा।इस के अलावा उन के बने अनेक वायलन इटली और बल्गारिया के संग्रहालयों द्वारा संग्रहित भी किए गए।इस की वजह से अंतर्राष्ट्रीय वायलन-निर्माण संघ ने उन्हें "अंतर्राष्ट्रीय वायलन-
निर्माण के उस्ताद" की संज्ञा दी।
उन का मानना है कि वायलन बनाने की चीनी शैली वाली पद्धति के विकास के लिए अभी काफी लम्बा रास्ता तय करना बाकी है।उन्हें आशा है कि वायलन जैसे पाश्चात्य वाद्ययंत्र बनाने में पूर्वी संस्कृति को समेटा जाएगा।