नम्वबर दो हज़ार छह में चीन के शांगहाई स्थित गिजनी मुख्यालय में तिब्बती भाषा में नव संकलित विश्व की सब से बड़ी तिब्बती ग्रंथावली यानी तिब्बती शास्त्र दशम विश्वकोष गिजनी विश्व रिकार्ड बुक में शामिल किया जाने का भव्य समारोह आयोजित हुआ और इस ग्रंथावली को प्रमाण पत्र प्रदान कर सम्मानिक किया गया ।
तिब्बती शास्त्र दशम विश्वकोष अब तक विश्व से सब से ज्यादा शब्दों व विषयों वाली तिब्बती भाषी ग्रंथावली है , जिस में एक करोड़ 85 लाख शब्द और 16 हजार तीन सौ 13 पृष्ठ हैं , जिस में तिब्बती जाति की हजार वर्ष लम्बी पुरानी संस्कृति के उत्कृष्ट विषय संगृहित है और तिब्बती जाति की लम्बी संस्कृति व इतिहास का श्रृंखलाबद्ध उल्लेख उपलब्ध है । तिब्बती शास्त्र दशम विश्वकोष में तिब्बती जाति के शिल्प कला , चिकित्सा व औषधि , भाषा , दर्शन शास्त्र , नीति शास्त्र , पंचांग, काव्य, लेखन, संगीत और आपेरा आदि दस विषयों के ज्ञान विज्ञान शामिल हैं , जो तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रमुख ग्रंथ तिब्बती पिटक के मुख्य विषयों पर आधारित है । इस ग्रंथावली में तिब्बती जाति द्वारा सदियों से विकसित किए गए और संजोए गए जीवन , उत्पादन व विकास के तमाम विज्ञान , सामाजिक ज्ञान तथा विभिन्न किस्मों के उद्योग संगृहित हैं । इन विषयों में तिब्बती जाति के मूल दर्शन व नीति अर्थात दया व बुद्धि की अभिव्यक्ति हुई है । इस महान ग्रंथावली के संकलन, संपादन व प्रकाशन ने तिब्बती जाति के सांस्कृतिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है और तिब्बती जातीय संस्कृति को विरासत में लाने तथा उसे आगे विकसित करने में असाधारण योगदान किया है । साथ ही उस ने तिब्बत विद्य के अनुसंधान को भी प्रबव बढावा दिया है ।
आचार्य गसिखछ्ये.छिचीमु ने कहा कि मैं ने 15 सालों का समय इस्तेमाल कर तिब्बती शास्त्र दशम विश्वकोष संकलित व संपादित किया है , इस महा कार्य के लिए मैं ने तिब्बती जाति बहुल सभी क्षेत्रों का चप्पा चप्पा कर दौरा किया था और विभिन्न स्थानों में रह रहे प्रसिद्ध भिक्षुओं और धर्माचार्यों से साक्षात्कार किया और उन की रायें सुनीं । इस के आधार पर मैं ने बेशुमार तिब्बती पुस्तकों में से तिब्बत के प्रकृति विज्ञान व समाज विज्ञान से संबद्ध श्रेष्ठ विषयों का संकलन किया , अंत में इस विशाल ग्रंथावली को संपादित कर प्रकाशित किया , जिस ने गिजनी विश्व रिकार्ड जीता है ।
आचार्य गसिखछ्ये के मुंह से अपने इस महान कार्य का काफी संक्षिप्त उल्लेख हुआ है , लेकिन असल में करोड़ों शब्दों वाली इस महा ग्रंथावली के लेखन व संकलन का काम निसंदेह बहुत कठिन और कड़ी मेहनत का है । जब हम ने उन के मुंह से उन के अपने काम पर सिर्फ इतना संक्षिप्त समीक्षा की , तो अनायास मन में उन के प्रति अपार सम्मान करने का भाव उत्पन्न हुआ ।
हमें बताया गया है कि तिब्बती बौद्ध धर्म के आचार्य गसिखछ्ये . छिचीमु का मूल नाम गसिरनपोछे है । वर्ष 1984 में अपनी 15 साल की आयु में उन्हें उत्तर पश्चिम चीन के कांसू प्रांत के कांनान तिब्बत जातीय स्वायत्त प्रिफेक्चर के लाबुलङ मठ में दिक्षित किए गए । पिछले 20 सालों की कड़ी मेहनत से उन्हों ने तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रकाश शाखा के सभी पांच शास्त्रों और तंत्र शाखा के तमाम चार शास्त्रों में महारत हासिल की । 22 साल की उम्र में उन्हों ने कांसू बौद्ध धर्म प्रतिष्ठान में बौद्ध धर्म की शिक्षा देने का काम आरंभ किया , अपनी 12 सालों के शिक्षा काम में उन्हों ने बड़ी संख्या में बौद्ध धर्म व तिब्बत विद्य में पारंगत व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया । वर्ष 2001 में आचार्य गसिखछ्ये ने पेइचिंग विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र विभाग में गहन अध्ययन के लिए पढ़ाई की और स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की । गसिखछ्ये के कहने में उन की ये सभी उपलब्धियां उन के निरंतर अध्ययन का सुफल है । इस पर उन्हों ने कहाः
"13 साल की उम्र में मैं मठ में प्रवेश कर भिक्षु बन गया और बौद्ध धर्म की शिक्षा लेने लगा । मेरे विचार में बौद्ध शास्त्र के ये तीन शब्द अत्यन्त महत्वपूर्ण है यानी पूछना , विवेचन करना तथा अमल करना । पूछने का मतलब है ज्यादा से ज्यादा पढ़ना और गुरू जी के पाठों व उपदेशों को ज्यादा से ज्यादा सुनना । इस से हमारा ज्ञान और बुद्धि बढ़ जाएगा । विवेचन करने से हम धर्म में गहन गर्भित सत्य समझने में समर्थ हो सकते हैं और उन के तर्क जान सकते हैं । मठ में हम न केवल सूत्र पढ़ते हैं और गुरू के पाठ लेते हैं , साथ ही हमें उन के उपदेशों पर गहन व विस्तृत रूप से सोच विचार करना चाहिए । लेकिन सब से अहम बात यह है कि उन शिक्षाओं को अमल में लाया जाए । यानी सिद्धांतों को व्यहारिक कामों के साथ जोड़ना चाहिए । धार्मिक सूत्रों में निर्देशित उपदेशों पर अमल करने से सिद्धि प्राप्त हो सकती है ।"
आचार्य गसिखछ्ये का विचार है कि बौद्ध धर्म के लाखों उपदेशों का मर्म है दया और बुद्धि । ये दोनों चरित्र आचारण का सारतत्व है और तरीके भी। चरित्र के लिए दया सर्वोपरि है और आचारण के लिए बुद्धि अत्यावश्यक है । इसलिए दया और बुद्धि बौध धर्म के गुण हैं । आचार्य गसिखछ्ये के अनुसार भिक्षु और धर्माचार्य को अपनी कथनी व करनी में दया व बुद्धि दोनों शीलों के विकास पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए । वे खुद ही तिब्बती जाति के आम लोगों के जीवन का बहुत ख्याल करते हैं और तिब्बती किसानों और चरवाहों को गरीबी से छुटकारा दिलाने में भरसक सहायता देते हैं । उन के नेतृत्व में तिब्बती चरवाहों ने पारिस्थितिकी संरक्षण के आधार पर बहुमुखी आर्थिक विकास किया , कांनान तिब्बत स्वायत्त प्रिफेक्चर की शा ह काऊंटी के खछ्ये टाउनशिप में खछ्ये पठारी गरीबी उन्मूलन केन्द्र कायम किया गया और टाउनशिप के 12 गांवों के गरीबों को जीवन की बुनियादी गारंटी दिलायी गयी । अपनी इस दयालु भावना से आचार्य गसिखछ्ये ने बौद्ध धर्म के दया देने के उपदेश को अमल में लाया है ।