दर्शकदीर्घा में बैठे ज़्यादातर लोग ग़ैरहिन्दी भाषी क्षेत्र से थे। नाटक के संवाद क्लष्ट हिन्दी में होने के बावजूद दर्शकों ने इसे ख़ूब सराहा और आनंद उठाया। नाटक के अंतिम दृश्य में कालिदास और मल्लिका के संवाद ने दर्शकों की आंखे नम कर दी। लंबे समय से चीन में रह रहे मराठी मूल के श्री तुषार भानुशाली का कहना है कि नाटक की सबसे बड़ी सफलता की वजह स्वयं यह नाटक ही रहा। महान नाटककार मोहन राकेश की इस कृति का मंचन ही दर्शकों को दो घंटे तक बाँधे रखने के लिए काफी था। मल्लिका, मातुल और विलोम की भूमिका ने उन्हें सबसे ज़्यादा प्रभावित किया। साहित्य और रंगमंच में दिलचस्पी रखने वाली श्रीमती अनीता शर्मा के मुताबिक़ रंगमंच से व्यवसायिक तौर पर जुड़े ना होने के बावजूद सभी कलाकारों की कोशिश सराहनीय रही। संगीत और प्रकाश व्यवस्था उन्हें पसंद आया लेकिन कलाकारों के संवाद में उतार-चढ़ाव और भाव-भंगिमा की कमी नज़र आयी। संगीत के साथ कलाकारों के अभिनय में तालमेल की कमी भी दिख रही थी। उनके मुताबिक़ मंचसज्जा को और बेहतर किया जा सकता था।
शांगहाई जैस व्यस्त शहर में "आषाढ़ का एक दिन" का सफल मंचन और दर्शकों की उपस्थिति यही दर्शाती है कि वर्षों से अपनी मिट्टी, अपनी भाषा-बोली से दूर रहने के बावजूद उससे प्रेम करने वालों और हिन्दी रंगमंच से लगाव रखने वालों की संख्या अभी खत्म नहीं हुई है। शांगहाई में इसकी सफलता के बाद अब चीन की राजधानी बीजिंग और व्यवसायिक शहर ग्वॉगजौ से भी इसके मंचन का आग्रह आया है। अपने ही देश में अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हिन्दी-रंगमंच के लिए यह खुशी की खबर है।
(लेखक ,रीना गुप्ता, सूजौ, चीन में काम करते हैं )